1800 करोड़ की उत्तरी कोयल परियोजना मंजूर
मोदी सरकार ने 1972 से ठप्प परियोजना की सुध ली
42000 हेक्टेयर जमीन की बुझेगी प्यास
नई दिल्ली, 17 जुलाई (एजेंसियां)। केंद्र सरकार ने झारखंड में उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना को मंजूरी दे दी है। यह एक अंतरराज्यीय सिंचाई परियोजना है जो दो राज्यों बिहार और झारखंड में विस्तृत है। 1972 से परियोजना की शुरुआत हुई थी, लेकिन यह अब तक पूरी नहीं हो पाई है। मोदी सरकार इसके लिए 1800 करोड़ रुपए से ज्यादा उपलब्ध करा रही है।
1972 में अखंडित बिहार के सूखा प्रभावित इलाकों की सिंचाई के लिए राज्य सरकार ने एक परियोजना बनाई थी। नाम है उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना। 53 साल बाद अब इस परियोजना के पूरे होने की उम्मीद जगी है, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। जब इस परियोजना की नींव रखी गई तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। केंद्र से राज्य तक कांग्रेस का एकछत्र शासन था। बाद के वर्षों में इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी भी प्रधानमंत्री बने। उनकी बहू सोनिया गांधी लगातार 10 सालों तक पर्दे के पीछे से सरकार हांकती रहीं। लेकिन इस परियोजना की किसी ने सुध नहीं ली।
आज इंदिरा के पोते राहुल गांधी में पीएम मटेरियल देखने वालों की कमी नहीं है। पोती प्रियंका गांधी के समर्थकों का दावा है कि वे अपनी दादी इंदिरा जैसी हैं। वे सांसद भी बन चुकी हैं। लेकिन कोयल परियोजना के भाग्य आजतक नहीं बदले। 5 दशक पहले शुरू हुई परियोजना के पूरा होने पर झारखंड और बिहार के चार सूखाग्रस्त जिलों में 42301 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। 1972 में शुरू की गई ये परियोजना राजनीति और लालफीताशाही का शिकार हो गई।
पीएम मोदी ने इस परियोजना समेत ऐसे लटके हुए दूसरे कई परियोजनाओँ को लेकर समीक्षा बैठक की। पीएम ने कहा कि परियोजनाओं की देरी से दोहरा नुकसान होता है। एक तो लागत बढ़ जाती है, वहीं दूसरी ओर लोग इतने समय तक लाभ से वंचित रह जाते हैं। इसलिए केंद्र और राज्य के अधिकारी दोनों को मिलकर ऐसी परियोजना को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए और लोगों को फायदा पहुंचाने पर काम करना चाहिए।
उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना एक अंतरराज्यीय सिंचाई परियोजना है जिससे बिहार और झारखंड जुड़े हुए हैं। इसमें झारखंड के लातेहार के कुटकू गांव से होकर बहने वाली उत्तरी कोयल नदी पर एक बांध बनाने की योजना है। बांध से 92 किलोमीटर दूर झारखंड के पलामू जिले के मोहम्मदगंज में बैराज बनेगा और फिर बैराज से दो नहरें निकलेंगी। दाहिनी मुख्य नहर (आरएमसी) और बैराज से बाईं मुख्य नहर (एलएमसी)। यह परियोजना 1972 में शुरू हुई थी, तब बिहार और झारखंड अलग नहीं हुए थे। परियोजना पर 1993 में वन विभाग ने रोक लगा दी थी क्योंकि बांध में पानी जमा होने पर झारखंड के बेतला नेशनल पार्क और पलामू टाइगर रिजर्व को खतरा हो सकता था। काम रुकने के बाद यह परियोजना 71,720 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए सालाना जल दे रही थी। 2000 में जब बिहार से झारखंड अलग हुआ तो परियोजना के दोनों बैराज और बांध झारखंड में आ गए। दो नहरों में से एक नहर झारखंड में रह गया जबकि दूसरा नहर बिहार और झारखंड दोनों में चला गया। बिहार में ये 79.08 किलोमीटर तक फैला हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना के बाकी बचे कामों के लिए संशोधित 2,430.76 करोड़ रुपए की लागत से पूरा करने के लिए परियोजना को मंजूरी दी। इसमें केंद्र का हिस्सा 1,836.41 करोड़ रुपए है। अगस्त 2017 में बचे काम के लिए पहले 1,622.27 करोड़ रुपए को मंजूरी दी गई थी। इसमें केंद्र का हिस्सा 1,378.60 करोड़ रुपए था। लेकिन अब इसे करीब 800 करोड़ रुपए बढ़ा दिया गया है।
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