समानांतर सरकार चला रहे हैं खनन माफिया
भारत में संगठित अपराध बन गया है अवैध खनन
वैश्विक रिपोर्ट ने पर्यावरण पर गंभीर खतरा बताया
नई दिल्ली, 20 जुलाई (एजेंसियां)। बिहार, झारखंड, ओड़ीशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कर्नाटक, पंजाब और महाराष्ट्र से लेकर हिमालयी राज्यों तक फैले खनन माफिया नेटवर्क सरकार की आंखों के सामने समानांतर सत्ता चला रहे हैं। अवैध खनन अब जंगलों और वन्य समुदायों को निगलता जा रहा है। भारत सहित दुनिया के कई देशों में अवैध खनन पर्यावरणीय आपदा का रूप ले चुका है। यह संगठित अपराध, मानवाधिकार उल्लंघन और हिंसक संघर्षों की बड़ी वजह भी बन गया है। भारत में कोयले से लेकर रेत तक खनिजों की बेहिसाब लूट ने इस संकट को और गंभीर बना दिया है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और पर्यावरण समूह ग्रीनपीस व रेनफॉरेस्ट एक्शन नेटवर्क की रिपोर्ट ने इस खतरे को उजागर करते हुए भारत सरकार और संबद्ध राज्य सरकारों को आगाह किया है। इस वैश्विक जांच रिपोर्ट में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उन देशों की पड़ताल की गई है जहां खनन अब जंगलों और समुदायों को निगलता जा रहा है। भारत में अवैध खनन न सिर्फ एक पारिस्थितिक संकट है बल्कि यह भ्रष्टाचार और प्रशासनिक मिलीभगत की जीती-जागती मिसाल भी बन चुका है। झारखंड के रांची, चतरा और दुमका में कोयला और लौह अयस्क की अवैध खुदाई हो रही है जबकि ओड़ीशा के क्योंझर और सुंदरगढ़ जैसे जिलों में करोड़ों के लौह अयस्क की चोरी सामने आई है। कर्नाटक के बेल्लारी में रेड्डी बंधुओं के कोयला घोटाले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। मध्य प्रदेश की नर्मदा, चंबल और बेतवा नदियों में अवैध रेत खनन इतना प्रचलित है कि इन्हें खनन युद्धभूमि कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के यमुना, चंबल और घाघरा नदी के किनारों पर खनन माफिया खुलेआम हथियारबंद होकर शासन को चुनौती देते हैं और उनका माफिया राज चल रहा है।
महाराष्ट्र में रायगढ़ और पालघर जिलों में समुद्री रेत का अवैध दोहन पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रहा है, जबकि राजस्थान में संगमरमर और चूना पत्थर के खनन से पहाड़ियां बिखरती जा रही हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में नदी घाटियों में मशीनों से की जा रही खुदाई हिमालयी पारिस्थितिकी पर खतरे का संकेत है। वर्ष 2024 की एक स्वतंत्र रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल लगभग 10,000 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के खनिज अवैध रूप से निकाले जाते हैं।
रेनफॉरेस्ट एक्शन नेटवर्क और ग्रीनपीस के पर्यावरण विश्लेषकों के मुताबिक भारत में कोयला, बॉक्साइट, ग्रेनाइट और बालू के अवैध खनन को सिस्टमिक करप्शन का अंग माना जाना चाहिए क्योंकि यह स्थानीय नेताओं, अधिकारियों और ठेकेदारों के गठजोड़ से पनपता है। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की सख्ती के बावजूद जमीनी हालात में कोई ठोस बदलाव नहीं आया है। कांगो कोबाल्ट, सोना और टैंटलम जैसे दुर्लभ खनिजों का बड़ा भंडार है। किंतु यहां के अधिकांश खनिज असंगठित और अवैध खनन के माध्यम से निकाले जाते हैं, जहां बच्चे और महिलाएं खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं।