संघ के दो कार्यकर्ताओं को पुलिस ने मारी थी गोली

17 साल से कहां गायब है मालेगांव धमाके का अभियुक्त?

संघ के दो कार्यकर्ताओं को पुलिस ने मारी थी गोली

पूर्व पुलिस अधिकारी का सनसनीखेज हलफनामा

रामजी कलसांगरा और संदीप डांगे मारे गए थे

मुंबई, 02 अगस्त (एजेंसियां)। मालेगांव धमाके के बहाने हिंदू आतंकवाद का षडयंत्र रचे जाने की कई आश्चर्यजनक परतें खुल कर सामने आ रही हैं। महाराष्ट्र एटीएस के जांच अधिकारी रहे इंसपेक्टर महबूब मुजावर का सनसनीखेज हलफनामा सामने आया है जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता रामजी कलसांगरा को पुलिस हिरासत में यातनाएं देकर मारे जाने का खुलासा किया है। रामजी कलसांगरा को मालेगांव विस्फोट मामले में गिरफ्तार कर गंभीर यातनाएं दी गईं, जिससे उनकी हिरासत में ही मौत हो गई। उसके बाद पुलिस ने कलसांगरा का शव गायब कर दिया। आज तक कलसांगरा का पता नहीं चला। उनकी पत्नी लक्ष्मी कलसांगरा आज भी अपने पति का इंतजार कर रही हैं। क्योंकि उन्हें कभी आधिकारिक तौर पर बताया ही नहीं गया कि उनके पति, रामजी कलसांगरा की मृत्यु हो चुकी है।

मालेगांव ब्लास्ट की जांच कर रही महाराष्ट्र एटीएस की टीम में शामिल रहे पुलिस अधिकारी महबूब मुजावर ने दिसंबर 2016 में ही सोलापुर की एक अदालत में एक हलफनामा दाखिल कर कहा था कि रामजी कलसांगरा और उनके साथी संदीप डांगे की 2008 में कस्टडी में ही हत्या कर दी गई थी। उन्होंने अपने हलफनामे में दावा किया कि दोनों के शवों को मुंबई 26/11 के आतंकी हमलों में मारे गए अज्ञात लोगों के रूप में पेश किया गया था। मुंबई आतंकी हमला डांगे और कलसांगरा को हिरासत में लिए जाने के कुछ महीनों बाद हुआ था।

मुजावर ने दावा किया था कि कलसांगरा और डांगे को एटीएस ने भोपाल से पकड़ा था लेकिन 26 नवंबर 2008 को (मुंबई आतंकी हमले के दिन) दोनों को मुंबई में गोली मार दी गई थी। मुजावर का दावा था कि मारे जाने से पहले उन्हें कालाचौकी स्थित एटीएस ऑफिस में अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था। मुजावर ने दावा किया कि उन्हें लापता आरोपियों की तलाश में कर्नाटक भेजा गया था लेकिन वे दोनों मारे जा चुके थे। उनका कहना था कि वह इन हत्याओं के खिलाफ थे और उन्हें चुप कराने के लिए उनके खिलाफ आर्म्स एक्ट के तहत एक फर्जी केस दर्ज किया गया था।

लक्ष्मी बेशक सुहागन की तरह जी रही हैं लेकिन उनका कहना है कि ये सिर्फ जांच एजेंसी को ही पता है कि कलसांगरा जीवित हैं या नहीं। पति के लापता होने के बाद उन्होंने खेती-बाड़ी की और मजदूरी तक करनी पड़ी तब जाकर अपने तीनों बेटों का पालन-पोषण कर सकीं। रामजी कलसांगरा की गुमशुदगी का मामला कानून पर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है। उनकी पत्नी लक्ष्मी 17 वर्षों से सुहागन की तरह जी रही हैं और अपने पति की प्रतीक्षा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को या जांच एजेंसियों को यह बताना चाहिए कि उनके पति जीवित हैं या मर चुके हैं। उन्होंने कहाहर तीसरे दिन एनआईए और एटीएस के अधिकारियों ने जांच के नाम पर परेशान किया। उन्होंने ऐसे सुलूक किया जैसे हम अपराधी हों। यह सिर्फ जांच एजेंसी को ही पता है कि कलसांगरा जीवित हैं या नहीं। वह बताती हैं कि पति के लापता होने के बाद उन्होंने खेती-बाड़ी की और मजदूरी तक करनी पड़ी तब जाकर अपने तीनों बेटों का पालन-पोषण कर सकीं। उन्हें आज भी अपने पति के लौटने का इंतजार है।

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रामजी कलसांगरा के बेटे देवव्रत कलसांगरा का कहना है कि उन्हें अब भी न्याय का इंतजार है। उन्होंने इस मामले की जांच करने वाले एटीएस अधिकारियों से सवाल किया है कि क्या उनकी मां को खुद को विवाहित महिला मानना चाहिए या विधवा। देवव्रत बताते है कि 9 अक्टूबर 2008 को उन्होंने आखिरी बार पिताजी के साथ गांव में दशहरा मनाया था और उसके बाद फिर अपने पिता को कभी नहीं देखा। पिता के लापता होने के बाद की तकलीफों को लेकर देवव्रत ने कहा कि उनके लापता होने के बाद जांच एजेंसी के अफसर घर आकर उनकी मां को परेशान करते थे और समाज में हमारे परिवार को हीन नजरों से देखा जाता था। वे बताते हैं कि 2011 में इस मामले की जांच के दौरान अधिकारी उनके घर आए और उनके पिता के साथ के बचपन के फोटो और अन्य सामान ले गए। आज उनके पास पिता की कोई तस्वीर भी नहीं है।

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देवव्रत ने अपने पिता के लापता होने की जांच की मांग की है। उनका आरोप है कि उनके पिता को अवैध रूप से एटीएस ने हिरासत में लिया गया और उस दौरान उनके साथ अप्रिय घटना घटी। देवव्रत और उनके पूरे परिवार को अभी भी अभी रामजी कलसांगरा के बारे में कोई ठोस खबर मिलने की उम्मीद है। देवव्रत ने अपने चाचा के बारे में बताया कि मालेगांव केस में उनके चाचा शिवनारायण कलसांगरा को भी एटीएस ने गिरफ्तार किया था। 2008 में उन्हें हिरासत में लेने के 15 दिन बाद उनकी गिरफ्तारी दिखाई गई। देवव्रत बताते हैं कि उनके चाचा को टॉर्चर किया गया। वो 2014 तक जेल में रहे फिर साल 2017 में एनआईए ने उन्हें बरी कर दिया था।

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रामचंद्र उर्फ रामजी कलसांगरा लापता पहले इंदौर में रहते थे और वे इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्टर थे। रामजी 15 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए थे और उन्होंने 1992 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या जाकर कारसेवा में भी हिस्सा लिया था। कलसांगरा पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने मालेगांव में भीकू चौक पर शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट नाम की दुकान के बाहर बम बंधी हुई बाइक रखी थी। उन पर समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस में शामिल होने का भी आरोप लगाया गया था।

रामजी कलसांगरा के बेटे देवव्रत का कहना है कि मुजावर के कोर्ट में एफिडेविट देने और उनकी हत्या की खबर को सुनने के बाद हमने जांच एजेंसी और कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा था। देवव्रत ने कहाहमने उनसे गुजारिश की थी कि यदि मेरे पिता का शव उनके पास है तो वह हमें दे देंलेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।

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