उसने लखनऊ में खरीदी करोड़ों की जमीन
जिस थानेदार की छत्रछाया में बढ़ा धर्मांतरण गिरोह
लखनऊ, 06 अगस्त (ब्यूरो)। जिस थानेदार की छत्रछाया में छांगुर बाबा बढ़ा। उसने लखनऊ में करोड़ों की जमीन खरीदी। उसने ही छांगुर के विरोधियों पर मुकदमा दर्ज कराने से लेकर जमीनों और मकानों पर कब्जा तक कराया था। यह बात अब उजागर हो चुकी है कि बलरामपुर के तत्कालीन पुलिस अधिकारियों से अवैध धर्मांतरण के आरोपी जलालुद्दीन उर्फ छांगुर की मिलीभगत रही। आतंकवाद निरोधी दस्ता (एटीएस) ने छांगुर, नीतू, नवीन और महबूब सहित 10 के विरुद्ध दर्ज मुकदमों में इसका जिक्र किया है।
जिस कोतवाल की छत्रछाया में छांगुर बढ़ा, उसने लखनऊ में करोड़ों की जमीन खरीदी है। अपर मुख्य सचिव, गृह एवं गोपन विभाग को भेजी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि उतरौला में छांगुर ने करीब 2010 से ही जड़ जमाना शुरू कर दिया था। एक चर्चित कोतवाल ने छांगुर और उससे जुड़े लोगों को हर तरह से मदद की। उनके कहने पर विपक्षियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया। कुछ जमीनों और मकानों पर कब्जा भी कराया। इसके बदले छांगुर ने पानी की तरह पैसा बहाया। संबंधित कोतवाल ने इसी दौरान लखनऊ में करीब 15 हजार स्क्वायर फीट जमीन खरीदी। वह भी इकाना क्रिकेट स्टेडियम के पास। यहां अभी जमीन की औसत कीमत करीब चार हजार रुपये प्रति स्क्वायर फीट है। बाजार भाव के अनुसार जमीन की अभी कुल कीमत करीब छह करोड़ रुपए है।
अब सवाल यह है कि इतने गंभीर मामले में नाम जुड़ने के बाद भी उस चर्चित कोतवाल पर तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने कार्रवाई क्यों नहीं की? अब जब छांगुर के पूरे गिरोह से पर्दा हटना शुरू हुआ और कार्रवाई का दायरा बढ़ा तो वही कोतवाल देवीपाटन मंदिर में करीब रोज ही माथा टेकने पहुंच रहा है। धर्मांतरण के सादुल्लानगर कनेक्शन के बाद धीरे-धीरे बलरामपुर पुलिस और छांगुर का गठजोड़ सामने आने लगा है। यह अलग बात है कि तत्कालीन जिलाधिकारी अरविंद सिंह की जांच रिपोर्ट अब भी फाइलों में दबी शासन में धूल फांक रही है।
इसके इतर विशेष लोक अभियोजक धर्मेन्द्र कुमार त्रिपाठी की ओर से भी प्रस्तुत पुलिस और अपराधियों की साठगांठ की रिपोर्ट पर भी जिम्मेदारों ने गंभीरता नहीं दिखाई। दोनों जांच रिपोर्ट में और भी चौंकाने वाले खुलासे हैं, जो पूरे बलरामपुर जिले को संवेदनशील बनाते हैं। यहां के अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन को भी जाहिर करते हैं। वर्ष 2024 में सादुल्लानगर के तत्कालीन थाना प्रभारी पर गंभीर आरोप लगे। यहां पुलिस और अपराधियों के गठजोड़ की शिकायत अपर मुख्य सचिव गृह एवं गोपन विभाग के साथ ही अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री से भी की गई। 18 जून 2024 में दोनों अधिकारियों को पत्र लिखा गया।
प्रभारी निरीक्षक ने तत्कालीन अधिकारियों से मिलीभगत करके पूर्व सपा विधायक और गैंगस्टर आरिफ अनवर हाशमी को संरक्षण प्रदान किया। मजिस्ट्रेटी जांच में भी तत्कालीन थानाध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगे, लेकिन थानाध्यक्ष को न हटाया गया और न ही कार्रवाई ही की गई। वह अब भी अधिकारियों का चहेता बनकर दूसरे थाने की कमान संभाले हुए है। मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट के अनुसार एक अप्रैल 2024 को जब पुलिस ने आरिफ अनवर हाशमी व उसके भाई मारूफ अनवर हाशमी की गिरफ्तारी के लिए दबिश दी तब आरिफ अनवर हाशमी भी घर पर मौजूद था, लेकिन उसे तब गिरफ्तार नहीं किया गया। तत्कालीन थानाध्यक्ष ने तब अपनी रिपोर्ट में बताया था कि आरिफ कार्रवाई के दौरान घर पर नहीं था।
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