थिएटर कमांड पर तीनों सेनाओं में आम सहमति नहीं
सेना के तीनों अंगों को फेंटने की कोशिश, बढ़ रहा विरोध
एक राष्ट्र एक सेना का सरकारी हठ व्यवहारिक नहीं
नई दिल्ली, 30 सितंबर (एजेंसियां)। सेना के तीनों अंगों को फेंटने की भारत सरकार की कवायद का सेना में विरोध हो रहा है। सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि सेना के तीनों अंगों का बेहतर समन्वय के साथ स्वतंत्र अस्तित्व बेहद जरूरी है। एक राष्ट्र एक सेना का सरकारी हठ व्यवहारिक नहीं है। थिएटर कमांड की स्थापन पर तीनों सेनाओं में आम सहमति नहीं है।
भारत सरकार ने तीनों सेनाओं का एक संयुक्त सैन्य स्टेशन (थिएटर कमांड) बनाने का फैसला सेना की अंदरूनी असहमतियों के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहा है। केंद्र सरकार कहती है कि यह देशभर में अपनी तरह का पहला ऐसा स्टेशन होगा। थिएटर कमांड के निर्माण से पहले सेना, नौसेना और वायुसेना के बीच एकजुटता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। इसके तहत उपकरणों का स्टैंडेराइजेशन, लॉजिस्टिक के लिए कॉमन सप्लाई चेन, सभी स्तरों पर संयुक्त प्रशिक्षण, अधिक क्रॉस-पोस्टिंग, अन्य सेवाओं का अनुभव और कर्मियों के बीच बेहतर सामाजिक संपर्क होगा। हालांकि, थिएटर कमांड पर तीनों सेनाओं में फिलहाल आम सहमति नहीं है।
इस महीने की शुरुआत में कोलकाता में हुए संयुक्त कमांडर सम्मेलन में इनमें से कुछ उपायों पर चर्चा हुई थी, जिसमें प्रधानमंत्री ने भी भाग लिया था। सशस्त्र बल एक-दूसरे की क्षमताओं और चुनौतियों के बारे में अपनी समझ को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं ताकि तीनों सेनाओं की जरूरतों को शुरू से ही समझा जा सके। थिएटर कमांड किसी भी बड़े सुधार के लागू होने से पहले तीनों सेनाओं के बीच एकीकरण बढ़ाने के व्यापक उपायों का एक हिस्सा है। तीनों सेनाओं के बीच थिएटर कमांड के निर्माण पर अभी आम सहमति नहीं बन पाई है। यह कदम पिछले हफ्ते कोलकाता में हुए संयुक्त कमांडर सम्मेलन में घोषित निर्णयों के बाद उठाया गया है, जिसमें पहले चरण में एक त्रि-सेवा शिक्षा कोर का गठन और तिरुवनंतपुरम, विशाखापत्तनम और गांधीनगर में तीन संयुक्त सैन्य स्टेशनों की स्थापना शामिल है।
अब सभी स्तरों पर इंटर-सर्विस ट्रेनिंग पर ज्यादा जोर दिया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी कर्मचारी एक-दूसरे के उपकरणों और क्षमताओं से परिचित हों और उनका बेहतर इस्तेमाल कर सकें। यह ज्ञान ऑपरेशनल प्लानिंग में अहम भूमिका निभाएगा जिसमें शुरुआत से ही तीनों सेनाओं की जरूरतों और क्षमताओं को शामिल किया जाएगा।
सेना से जुड़ी रिक्तियों और पाठ्यक्रमों में भी फेरबदल किया जा रहा है ताकि तीनों सेनाओं के कर्मी एक साथ प्रशिक्षण ले सकें, योगदान दे सकें और एक-दूसरे से सीख सकें। तीनों सेनाओं के संचार नेटवर्क को भी निर्बाध संचार और डेटा-शेयरिंग के लिए विस्तारित करने की योजना है। सभी स्तरों पर इंटर-सर्विस नियुक्तियों में वृद्धि की जानी है। इसके साथ ही, उपकरणों और प्लेटफार्मों के मानकीकरण के प्रयास भी चल रहे हैं ताकि अंतर-संचालन सुनिश्चित हो सके, आपूर्ति श्रृंखलाओं और पुर्जों के प्रबंधन को सुव्यवस्थित किया जा सके। सूत्रों के अनुसार, वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों के प्रारूप में भी बदलाव पर विचार किया जा रहा है ताकि वे सेवा-विशिष्ट और तीनों सेनाओं की आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित कर सकें।
भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना को एक छतरी के नीचे लाने की कोशिशें अब जोर पकड़ रही हैं। थिएटराइजेशन, यानि थिएटर कमांड्स की स्थापना से पहले, ये तीनों सेनाएं आपस में घुलमिल रही हैं ताकि जंग के मैदान में सब एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ सकें। पहले हर सेना अपने-अपने तरीके से काम करती थी, लेकिन अब संसाधनों का सही इस्तेमाल और तेज कार्रवाई के लिए सब कुछ साझा हो रहा है। कोलकाता में हाल ही में हुई संयुक्त कमांडर्स कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री ने खुद हिस्सा लिया, जहां बड़े फैसले हुए। जैसे, एक एकीकृत त्रि-सेवा शिक्षा कोर बनाना और पहले चरण में तिरुवनंतपुरम, विशाखापत्तनम व गांधीनगर में तीन संयुक्त सैन्य स्टेशन खोलना। ये कदम सेनाओं को मजबूत बनाने के लिए हैं, जहां उपकरणों को एक जैसा करना, खरीदारी का साझा चेन बनाना, ज्वाइंट ट्रेनिंग बढ़ाना और अफसरों की आपसी पोस्टिंग ज्यादा करना शामिल है। सोशल मेलजोल बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि सब एक-दूसरे की कार्य संस्कृति समझें।
थिएटर कमांड आने से पहले, तीनों सेनाओं को एक-दूसरे की ताकत और कमजोरियां अच्छे से समझनी पड़ रही हैं। किसी भी ऑपरेशन की प्लानिंग से ही त्रि-सेवा जरूरतों को शामिल किया जा रहा है। लेकिन अभी भी थिएटर कमांड्स की स्ट्रक्चर पर तीनों सेनाओं में सहमति नहीं बनी है। ये समझ बढ़ाने से भविष्य में गलतियां कम होंगी और सब मिलकर बेहतर रणनीति बना सकेंगे। पड़ोसी देशों जैसे चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य हलचल ने इसकी जरूरत और ज्यादा महसूस कराई है। अमेरिकी मॉडल से प्रेरित ये कॉन्सेप्ट लंबे समय से चर्चा में है, लेकिन अब एक्शन मोड में आ गया है।
अब जोर संयुक्त ट्रेनिंग पर है, ताकि हर अफसर और जवान एक-दूसरे के हथियारों और मशीनों से वाकिफ हो जाएं। जैसे आर्मी का अफसर नेवी के जहाज चलाने की ट्रिक सीखे, या एयर फोर्स वाला ग्राउंड ऑपरेशन समझे। इसके लिए कुछ कोर्सेज में सीटें बढ़ाई जा रही हैं और सिलेबस में बदलाव हो रहा है, जहां तीनों सेनाओं के लोग साथ-साथ पढ़ेंगे। ये बदलाव सेनाओं को इंटर ऑपरेबल बनाएंगे, यानि सबका सामान एक-दूसरे के साथ आसानी से जुड़ेगा। कहा जाता है कि जिस स्तर पर तीनों सेनाओं के बीच कम्युनिकेशन होना चाहिए, वो अभी भी सीमित है। लेकिन इसे बड़ा करने की योजना है ताकि डेटा शेयरिंग बिना रुकावट हो। कुछ पुरानी परंपराओं को धीरे-धीरे खत्म या स्टैंडर्डाइज किया जा रहा है। सोशल इंटरैक्शन बढ़ाने से अफसर एक-दूसरे की कामकाजी स्टाइल समझ रहे हैं। सभी लेवल पर क्रॉस-पोस्टिंग बढ़ेगी, उपकरण स्टैंडर्ड होंगे, सप्लाई चेन सरल बनेगी और स्पेयर पार्ट्स का मैनेजमेंट आसान होगा। कोलकाता कॉन्फ्रेंस में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, एक राष्ट्र, एक सेना का कॉन्सेप्ट साकार करने के लिए एकता जरूरी है। अफसरों की सालाना गोपनीय रिपोर्ट्स का फॉर्मेट बदलने पर विचार हो रहा है। अब इसमें सिर्फ अपनी सेना के काम नहीं, बल्कि त्रि-सेवा अनुभव और जरूरतें भी शामिल होंगी। पिछले कुछ सालों में क्रॉस-पोस्टिंग, जॉइंट लॉजिस्टिक्स नोड्स बनाना, ट्रेनिंग और रिक्रूटमेंट में कोऑर्डिनेशन बढ़ा है। ये सब एक कॉमन माइंडसेट, शेयर्ड स्ट्रैटेजी और इंटीग्रेटेड सिस्टम बनाने के लिए हैं।
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