“प्रदेश में कफ सिरप निर्माण पर सरकार की सख्ती, 37 फार्मा यूनिट पर कार्रवाई ” 

— अब नहीं चलेगी मिलावट और लापरवाही”

“प्रदेश में कफ सिरप निर्माण पर सरकार की सख्ती, 37 फार्मा यूनिट पर कार्रवाई ” 

लखनऊ, 10 अक्टूबर 2025। उत्तर प्रदेश में नकली और अमानक दवाओं पर रोक लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने राज्यभर में विशेष निगरानी अभियान शुरू किया है। आयुक्त, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन के निर्देश पर पूरे प्रदेश में स्थापित औषधि निर्माण इकाइयों पर व्यापक निरीक्षण चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत अब तक 37 कफ सिरप बनाने वाली निर्माता फर्मों का निरीक्षण किया गया है, जिनसे 38 कच्चे माल (रॉ मटेरियल) और 31 तैयार दवाओं (फिनिश्ड गुड्स) के नमूने जांच हेतु एकत्र किए गए हैं।

निरीक्षण के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। जनपद लखनऊ, सहारनपुर, मथुरा और अलीगढ़ की चार औषधि निर्माण शालाओं में औषधि निर्माण अत्यंत अस्वच्छ और अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में किया जा रहा था। इन इकाइयों में औषधि प्रसाधन अधिनियम, 1940 में दिए गए मानकों का घोर उल्लंघन पाया गया। अधिकारियों ने मौके पर संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत न करने और निर्माण प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं मिलने पर संबंधित कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी करने का निर्णय लिया है।

विभागीय अधिकारियों के अनुसार यह कार्रवाई राज्य में औषधियों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ी पहल है। हाल के वर्षों में कई राज्यों में कफ सिरप से जुड़ी गंभीर घटनाओं के बाद यह निगरानी और भी कड़ी कर दी गई है। पिछले चार वर्षों में विभाग द्वारा लिए गए नमूनों की जांच के दौरान कई कंपनियों के उत्पादों में इथिलीन ग्लाइकॉल जैसी हानिकारक रासायनिक पदार्थों की सूक्ष्म मात्रा पाई गई थी। यह वही तत्व है जिसकी अधिक मात्रा बच्चों में किडनी फेल्योर और अन्य गंभीर विषाक्त प्रभावों का कारण बन सकती है।

विभाग ने बताया कि भारत सरकार की केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा भी इस प्रकार की औषधियों को लेकर चेतावनी जारी की गई थी। इसके बाद प्रदेश के सभी जिलों में फार्मा निर्माण इकाइयों, दवा विक्रेताओं, हॉस्पिटलों और नर्सिंग होम पर औषधियों की गुणवत्ता जांचने का अभियान तेज कर दिया गया। निरीक्षण के दौरान गुजरात और अन्य राज्यों में निर्मित कुछ कफ सिरप ब्रांडों जैसे थ्मकदमग चींतउंबमनजपबंस, थ्मेचपतिमेी ज् त्, तथा ैींचम च्ींतउं पर विशेष निगरानी रखी गई। इनमें से कुछ ब्रांडों को भारत सरकार ने पहले अलर्ट सूची में डाला था।

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हालांकि जांच के दौरान विभाग को इन ब्रांडों की किसी भी दवा का भंडारण प्रदेश में नहीं मिला, फिर भी विभाग ने एहतियात के तौर पर संबंधित कंपनियों के उत्पादों के नमूने एकत्र किए हैं। अधिकारियों ने बताया कि किसी भी परिस्थिति में मिलावटी या अमानक कफ सिरप को बाजार में पहुंचने नहीं दिया जाएगा।

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अब तक प्रदेश के औषधि विक्रय प्रतिष्ठानों, निर्माण इकाइयों, नर्सिंग होम्स और विशेषकर बच्चों के अस्पतालों से कुल 595 कफ सिरप के नमूने परीक्षण एवं विश्लेषण के लिए एकत्र किए जा चुके हैं। इन नमूनों को राज्य की सरकारी प्रयोगशाला में भेजा गया है, जहां विशेषज्ञ वैज्ञानिक इनके रासायनिक और जैविक घटकों की जांच कर रहे हैं। जांच रिपोर्ट प्राप्त होते ही दोषी फर्मों के खिलाफ औषधि अधिनियम के तहत सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

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विभागीय सूत्रों ने बताया कि यह अभियान फिलहाल अनिश्चितकाल तक जारी रहेगा। सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि किसी भी स्तर पर औषधि निर्माण में मिलावट, निम्न गुणवत्ता या अस्वच्छ उत्पादन पाए जाने पर संबंधित इकाई का लाइसेंस तत्काल निरस्त किया जाए और दोषियों के खिलाफ अभियोजन चलाया जाए। औषधि प्रशासन विभाग का यह अभियान राज्य में औषधियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ नागरिकों के स्वास्थ्य संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

आयुक्त, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन ने कहा कि राज्य सरकार नागरिकों को शुद्ध, सुरक्षित और मानक गुणवत्ता वाली औषधियां उपलब्ध कराने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि फार्मा सेक्टर में कार्यरत सभी कंपनियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि औषधियों का निर्माण केवल साफ-सुथरे वातावरण में और वैज्ञानिक मापदंडों के अनुरूप ही किया जाए। किसी भी प्रकार की अमानक, नकली या अपमिश्रित औषधि न केवल उपभोक्ता के जीवन के लिए खतरा है, बल्कि यह देश की चिकित्सा प्रणाली पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।

विभाग ने जनता से भी अपील की है कि वे किसी भी संदिग्ध औषधि, नकली पैकिंग या घटिया गुणवत्ता वाले सिरप की जानकारी तुरंत स्थानीय औषधि निरीक्षक या विभागीय हेल्पलाइन को दें। नागरिक सहभागिता से ही इस अभियान को सफल बनाया जा सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि हाल के वर्षों में बच्चों के लिए बनी कुछ सिरप के सेवन से कई देशों में हुई मौतों ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश का यह अभियान न केवल राज्य, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल साबित हो सकता है। यदि यह सख्ती लगातार बनी रही, तो भविष्य में फार्मा सेक्टर में पारदर्शिता और जवाबदेही का एक नया मानक स्थापित होगा।

विभागीय अधिकारियों ने यह भी बताया कि निरीक्षण के दौरान जिन इकाइयों में गंभीर लापरवाही मिली है, वहां आगे की उत्पादन प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगाई जा सकती है। दोषी पाए जाने पर संबंधित कंपनियों के लाइसेंस निरस्त कर दिए जाएंगे और जिम्मेदार व्यक्तियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा।

सरकार का यह रुख साफ है कि अब औषधि निर्माण के नाम पर किसी को भी नागरिकों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा। विभाग की टीमें प्रतिदिन प्रदेश के अलग-अलग जिलों में छापेमारी कर रही हैं और औषधि निर्माण से लेकर वितरण तक हर चरण की निगरानी की जा रही है।

राज्य औषधि विभाग ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई किसी भय या दबाव में नहीं, बल्कि पूरी तरह जनहित में की जा रही है। विभाग ने कहा कि “हमारा लक्ष्य लोगों को गुणवत्तापूर्ण औषधि उपलब्ध कराना है। प्रदेश में औषधि उद्योग की छवि पारदर्शी और विश्वसनीय बने, यह हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।”

सरकार का यह अभियान स्वास्थ्य सुरक्षा के क्षेत्र में एक ठोस और निर्णायक कदम माना जा रहा है। इससे न केवल उपभोक्ता संरक्षण को बल मिलेगा, बल्कि उत्तर प्रदेश देश के अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करेगा कि कैसे सतर्क प्रशासन और सशक्त निगरानी तंत्र से आमजन के जीवन की रक्षा की जा सकती है।

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