नेहरू ने अंबेडकर की देशभक्ति पर उठाया था सवाल
कांग्रेस के नेताओं को 1946 का जवाहरलाल नेहरू का पत्र पढ़ना चाहिए
अनुच्छेद 370 को लेकर भी किया था बाबा साहेब का अपमान
शुभ-लाभ विमर्श
पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस पार्टी और उसके नेता बाबा साहेब अंबेडकर के प्रति अपना अतिशय प्रेम दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे जता रहे हैं कि जैसे उनके अतिरिक्त बाबा साहेब का कोई सम्मान ही नहीं करता। जबकि असलियत और प्रदर्शन दोनों एक दूसरे के विपरीत है। संविधान पर बहस के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो कुछ कहा उसका प्रसंग कुछ और है, लेकिन कांग्रेस उसे तोड़ मरोड़ कर सियासत कर रही है। लेकिन कांग्रेस पार्टी उन कृत्यों को भूल जाती है जो उसने बाबा साहेब के प्रति किया था। बाबा साहेब के प्रति कांग्रेस और उसके नेता जवाहरलाल नेहरू द्वारा किए गए अपमान के तो प्रामाणिक दस्तावेज मौजूद हैं, जिस पर कांग्रेस को सियासत करने के बजाय सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए और अपने गलत कृत्यों के लिए प्रायश्चित करना चाहिए।
जवाहर लाल नेहरू का वह पत्र भी सार्वजनिक फोरम पर है, जिसमें उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर की देशभक्ति और देश के प्रति उनकी वफादारी को लेकर संदेह जताया था। उस पत्र को सामने रख कर कांग्रेस के मौजूदा नेता यह कैसे कह सकते हैं कि उनके मन में बाबा साहेब के प्रति अतिशय सम्मान और प्रेम है? यह गंभीर सवाल सामने है, जिसका जवाब देश सुनना चाहता है। जवाहरलाल नेहरू का संदर्भित पत्र अमृत कौर के नाम है, जो नेहरू ने 20 जनवरी 1946 को लिखा था। यह पत्र नेहरूसेलेक्टेडवर्क्स.कॉम पर उपलब्ध है, कोई भी उसे पढ़ सकता है। राहुल गांधी को पढ़ने-लिखने से कोई मतलब नहीं, लेकिन संविधान पॉकेट में रखने और अंबेडकर के प्रति सम्मान दिखा कर सांसदों को धक्का देने के पहले उन्हें अपने पूर्वज नेहरू का वह पत्र पढ़ लेना चाहिए था।
उक्त पत्र में जवाहर लाल नेहरू ने बाबा साहेब के बारे में चर्चा करते हुए लिखा था, मुझसे पूछा गया कि आखिर कांग्रेस क्यों अंबेडकर के पास नहीं जाती और उनसे सुलह कर लेती। मैंने उनसे कहा कि कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं करने वाली। अंबेडकर ने लगातार कांग्रेस और कांग्रेस नेताओं का अपमान किया है। जब तक वह माफी नहीं मांगते तब तक कांग्रेस का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। मैंने निश्चित तौर पर ये नहीं कहा कि अनुसूतिच जाति के लोगों को पूना पैक्ट के तहत राजनीतिक लाभ नहीं मिलेंगे। लेकिन मेरा पूरा जोर इस बात पर था कि अंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार के साथ गठजोड़ किया था और कांग्रेस के खिलाफ थे। हम उनसे डील नहीं कर सकते।
नेहरू के पत्र के इस अंश को हाईलाइट करके अब सोशल मीडिया पर कांग्रेस से सवाल पूछे जा रहे हैं। भाजपा नेता अमित मालवीय ने लिखा, यह सोच से भी परे है कि नेहरू ने अमृत कौर को लिखे पत्र में बाबा साहेब को गद्दार कहा और उनपर ब्रिटिशों के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया। संविधान के रचयिता बाबा साहेब की इससे बड़ी बेइज्जती नहीं हो सकती। सोशल मीडिया पर अमिताभ चौधरी लिखते हैं, 1946 में अमृत कौर को लिखे गए पत्र में नेहरू ने अंबेडकर को गद्दार कहा था और उनपर ब्रिटिशों के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया था। आज उन्हीं का खून राहुल गांधी और कांग्रेस के लोग वीर सावरकर को भी ब्रिटिश एजेंट बोलते हैं।
सोशल मीडिया पर लोग ये सवाल भी कर रहे हैं कि कांग्रेस आज जितना प्यार बाबा साहेब के लिए दिखा रही है, तो उन्हें ये भी बताना चाहिए कि बाबा साहेब ने नेहरू के रवैये से तंग आकर 1951 में कानून मंत्री पद से इस्तीफा क्यों दिया था? क्या जब बाबा साहेब देश के पहले कानून मंत्री बने थे उस समय उन्हें रक्षा संबंधी, विदेश संबंधी और वित्त संबंधी हर प्रमुख निर्णय लेने में शामिल करने के बजाय, किनारे नहीं किया गया था? क्या नेहरू ने उनपर ब्रिटिशों के साथ गठबंधन करने का आरोप लगाकर गद्दार नहीं कहा था?
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू करने का भी बाबा साहेब अंबेडकर ने पुरजोर विरोध किया था। बाबा साहेब ने इस मसले पर पैरवी कर रहे शेख अब्दुल्ला को फटकार लगा कर अपने कक्ष से बाहर निकाल दिया था। इससे नेहरू इतने गुस्से में थे कि उन्होंने कानून मंत्री बाबा साहेब अंबेडकर को दरकिनार कर तत्कालीन रेल मंत्री अयंगार के जरिए अनुच्छेद 370 का मसला संसद के पटल पर रखवाया और सरदार पटेल ने नेहरू की प्रतिष्ठा का मसला बता कर इसे कांग्रेसी सदस्यों से पारित कराया था। बाबा साहेब जैसे देशभक्त की वफादारी पर संदेह करने वाली कांग्रेस पार्टी को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।