तब सरदार पटेल पीएम बने होते तो भारत का भूगोल कुछ और होता
राष्ट्र-समर्पित लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति में विशेष
डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’
सशक्त राष्ट्र के रूप में स्वतंत्र भारत के निर्माण के इतिहास पर जब मैं नजर डालता हूं तो जो एक विराट व्यक्तित्व मेरी आंखों में उभर कर आता है, वह व्यक्तित्व है लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का। धीर-गंभीर और गरिमामय व्यक्तित्व का धनी, निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के प्रति पूर्णतः समर्पित, मजबूत इरादे और दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर होने वाला व्यक्त्तित्व। पहली नजर में देखने पर ऊंचे कद का एक देहाती सा दिखने वाला व्यक्ति, इस व्यक्ति का नाम था वल्लभभाई झवेरभाई पटेल। इनका जन्म आज ही के दिन अर्थात 31 अक्टूबर को 1875 में गुजरात के नाडियाड में हुआ था। इनके पिता झवेरभाई पटेल एक किसान थे और माता लाडबाई धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। लेकिन यह सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति एक बहुत बड़ा वकील भी था, जिसने लंदन से बार-एट-लॉ की डिग्री प्राप्त की थी।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सरदार पटेल ने 1918 में खेड़ा सत्याग्रह और 1928 में बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। 1928 में गुजरात में एक बहुत बड़ा किसान आंदोलन हुआ था। इस आंदोलन का नेतृत्व पटेल ने किया था, जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए अनुचित कर वृद्धि का विरोध किया था। बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद, वहां की महिलाओं ने पटेल को सरदार की उपाधि दी, जिसका अर्थ है नेता या प्रमुख। महात्मा गांधी ने भी पटेल को सरदार कहकर पुकारा था, जो बाद में उनके नाम का हिस्सा बन गया और वे सरदार वल्लभ भाई पटेल के रूप में विख्यात हो गए। इसके पश्चात इनके नेतृत्व में 1923 में नागपुर सत्याग्रह हुआ, जिसमें पटेल ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए लड़ाई लड़ी और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह किया। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। यह एक राष्ट्रीय आंदोलन था, जिसमें पटेल ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ-साथ सरदार पटेल की स्वाधीन भारत के एकीकरण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने 565 रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने के लिए जो प्रयास किए, उनसे भारत एक मजबूत और एकजुट देश बना। सरदार पटेल ने रियासतों के शासकों को समझाने के लिए अपनी सूझबूझ और कूटनीति का इस्तेमाल किया। भारत में रियासतों के एकीकरण में कई बड़ी समस्याएं थीं। कुछ रियासतें व रजवाड़े अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाए रखना चाहते थे। हैदराबाद की रियासत ने भारत में विलय करने से इनकार कर दिया था और निजाम ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। सरदार पटेल ने हैदराबाद में सैन्य कार्रवाई करने का फैसला किया और 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला कर दिया। इस कार्रवाई को ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया था। भारतीय सेना ने हैदराबाद की सेना को पराजित कर दिया और निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया। हैदराबाद की रियासत को भारत में विलय कर दिया गया और यह आंध्र प्रदेश राज्य का हिस्सा बन गया। जूनागढ़ की रियासत ने पाकिस्तान में विलय करने का फैसला किया था। सरदार पटेल ने जूनागढ़ में जनमत संग्रह करवाया, जिसमें लोगों ने भारत में विलय करने के पक्ष में मतदान किया। यहाँ भी भारतीय सेना ने 9 नवंबर 1947 को सैन्य कार्रवाई की भारतीय सेना ने जूनागढ़ की सेना को पराजित कर दिया और नवाब ने आत्मसमर्पण कर दिया। जूनागढ़ के नवाब पाकिस्तान भाग गए और फरवरी 1948 में जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया। इसी प्रकार त्रावणकोर की रियासत ने भारत में विलय करने से इनकार कर दिया था। सरदार पटेल ने त्रावणकोर के महाराजा से बातचीत की और अपनी सूझबूझ से कुशलतापूर्वक उन्हें भारत में विलय करने के लिए राजी किया।
जम्मू और कश्मीर की रियासत ने भारत में विलय करने से इनकार कर दिया था। सरदार पटेल ने जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह से बातचीत की और उन्हें भारत में विलय करने के लिए राजी किया। लेकिन जम्मू – कश्मीर में प्रधानमंत्री नेहरू और सरदार पटेल के बीच गहरे मतभेद थे। सरदार पटेल के गृह मंत्री होते हुए भी जवाहरलाल नेहरू ने गोपालस्वामी आयंगर को जम्मू और कश्मीर का प्रभारी बनाया, जो जवाहरलाल नेहरू के करीबी थे। पटेल चाहते थे कि कश्मीर का विलय भारत में हो, जबकि नेहरू कश्मीर को विशेष दर्जा देने के पक्ष में थे। पटेल कश्मीर में पाकिस्तानी कबाइलियों के खिलाफ सख्त सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे, जबकि नेहरू कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के पक्ष में थे। निश्चय ही नेहरू जी के ये दोनों निर्णय भारत के बजाए पाकिस्तान के पक्ष में जाते थे क्योंकि मुस्लिम जनसंख्या ज्यादा होने से जनमत संग्रह पाकिस्तान के पक्ष में होता। नेहरू की इच्छा के अनुसार जम्मू- कश्मीर को विशेष दर्जा देने का निर्णय, जिसका विरोध अंबेडकर ने भी किया था, अनुच्छेद – 370 के रूप में अस्तित्व में आया। इसके दुष्परिणाम देश देख चुका है। मोदी सरकार ने इसे हटाकर जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाया है। पटेल कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के विरोधी थे, जबकि नेहरू ने कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाया, जिस वक्तव्य का इस्तेमाल पाकिस्तान आज भी वैश्विक मंचों पर करता है, जो भारत के हितों के प्रतिकूल एक हथियार के रूप में इस्तेमाल होता है। पटेल कश्मीर में पाकिस्तानी कबाइलियों के खिलाफ सख्त सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे, जबकि नेहरू का रुख इस मामले में बहुत ढुलमुल था। पटेल के दबाव में जब भारतीय सेना ने कथित पाकिस्तानी कबायलियों पर हमला कर उन्हें खदेड़ना शुरू किया और सेना शीघ्र ही पूरा कश्मीर वापस लेने वाली थी, तब प्रधानमंत्री नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र संघ में जाकर युद्ध विराम कर दिया, जिसके कारण जम्मू–कश्मीर के बड़े भूभाग पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया, जिसे हम पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) के रूप में जानते हैं। यदि नेहरू ने सरदार पटेल की बात मानी होती तो पूरा जम्मू-कश्मीर प्रारंभ से भारत का अभिन्न अंग होता।
इसी प्रकार सरदार पटेल और नेहरू के बीच कई अन्य बिंदुओं पर विवाद था। नेहरू अपनी वैश्विक छवि को लेकर चल रहे थे। सरदार पटेल व्यावहारिक, यथार्थवादी और परंपरागत भारतीय मूल्यों पर आधारित नीति के पक्षधर थे। वे राष्ट्रीय एकता और आंतरिक सुरक्षा को प्राथमिकता देना चाहते थे। पटेल का मानना था कि भारत को अपनी सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए यथार्थवादी नीति अपनानी चाहिए, खासकर चीन और पाकिस्तान के संदर्भ में। उन्होंने नेहरू को कई बार चीन के खतरे के प्रति आगाह भी किया था। लेकिन नेहरू उनकी बातों को अनसुनी करते रहे और हिंदी-चीनी भाई-भाई का राग अलापते रहे, जिसका दुष्परिणाम हमने 1962 में भुगता। चीन ने भारत पर हमला कर एक बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया।
स्वतंत्र भारत में ऐसे महान, दूरदर्शी और दृढ़ व्यक्तित्व के धनी सरदार पटेल, जिन्होंने भारत के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाई, उनके साथ हुए घोर अन्याय और उपेक्षा का उल्लेख भी आवश्यक है। सबसे बड़ा अन्याय था लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रख कर गांधीजी द्वारा सरदार वल्लभभाई पटेल के बजाए नेहरू को प्रधानमंत्री बनवाना था। उस समय कांग्रेस के नियमों के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार होता था। 15 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों (पीसीसी) में से 12 ने सरदार पटेल के नाम की संस्तुति की थी, जबकि दो ने जे.बी. कृपलानी के नाम की संस्तुति की और एक ने अपना मत जाहिर नहीं किया। जवाहरलाल नेहरू के नाम की संस्तुति तक किसी प्रांतीय कमेटी ने नहीं की थी। यह भी कि 14 में से 12 वोट सरदार पटेल को मिले। लेकिन फिर भी गांधीजी ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को ताक पर रख कर जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दिया, जिसके कारण नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष पद मिला और वे भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। सरदार पटेल को उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद दिया गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि यदि लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुसार सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री बने होते तो भारत का क्षेत्रफल और स्थिति बहुत अलग होती। निश्चय ही पूरा जम्मू-कश्मीर प्रारंभ से ही भारत का अभिन्न अंग होता और चीन भी इतनी आसानी से भारत के इतने बड़े भूभाग पर कब्जा नहीं कर पाता।
यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं कि नेहरू ने लगातार सरदार पटेल की उपेक्षा की और उनके योगदान को महत्व नहीं दिया। जब सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया तो नेहरू ने उसका तीव्र विरोध किया लेकिन सरदार पटेल के संकल्प के कारण यह कार्य पूरा हुआ। नेहरू की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से भी सरदार पटेल आहत थे। संविधान निर्माण के दौरान एक बड़ा सवाल था, क्या सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू की जाए या धर्म आधारित व्यक्तिगत कानून (पर्सनल लॉ) को मान्यता दी जाए? मुस्लिम पर्सनल लॉ मुख्यतः विवाह, तलाक, विरासत, आदि मामलों में शरीयत के सिद्धांतों पर आधारित था। सरदार पटेल और कई अन्य नेताओं का मानना था कि भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य बनते हुए भी एक समान नागरिक कानून की ओर बढ़े, ताकि सामाजिक एकता बनी रहे। वहीं, पंडित नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आजाद मुस्लिम पर्सनल लॉ को बनाए रखने के पक्ष में थे। संविधान सभा में जब अनुच्छेद 35 (अब अनुच्छेद 44) समान नागरिक संहिता पर चर्चा हो रही थी, तब कई सदस्य, जिनमें केएम मुंशी और डॉ. अंबेडकर भी शामिल थे, वे भी इसके समर्थन में बोले लेकिन मुस्लिम सदस्य और नेहरू गुट सहमत नहीं थे। सरदार पटेल को लगा कि ये रियायतें देकर हम फिर से धर्म आधारित भेदभाव को स्थायी कर देंगे। जब नेहरू ने मुस्लिम पर्सनल लॉ को संविधान में बनाए रखने का समर्थन किया, तो पटेल ने कड़ा विरोध किया और कहा, अगर आप धर्म के आधार पर अलग कानून बनाए रखेंगे, तो हम उसी पुराने रास्ते पर लौटेंगे, जिसने देश को बांटा था। कथित रूप से उन्होंने नेहरू से कहा था कि अगर आप यह रुख नहीं बदलते, तो मैं मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दूंगा। अनेक इतिहासकारों का मानना है कि नेहरू ने पटेल की उपेक्षा की और उनके योगदान को कम आंका।
सरदार पटेल की कर्तव्यपरायणता और दृढ़ता को उनके जीवन की एक घटना से समझा जा सकता है। सरदार वल्लभभाई पटेल एक वकील थे और उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुकदमों की पैरवी की थी। जब उनकी पत्नी झावेरबा की मृत्यु हुई, तब वे एक महत्वपूर्ण मुकदमे की पैरवी कर रहे थे। एक पर्ची दे कर उन्हें उनकी पत्नी की मृत्यु का समाचार दिया गया। सूचना मिलने पर भी उन्होंने मुकदमे की पैरवी जारी रखी और कहा कि मुकदमा पूरा होने दीजिए, मैं बाद में शोक मनाऊंगा। यह घटना उनके मजबूत इरादों और कर्तव्यनिष्ठा को दर्शाती है। उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन की तुलना में अपने पेशेवर कर्तव्यों को प्राथमिकता दी। उनके उनके मजबूत इरादों, दृढ़ संकल्प और नेतृत्व क्षमता के कारण ही सरदार वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष कहा जाता है, जिसका अर्थ है लोहे का आदमी। उनकी दृढ़ता और नेतृत्व क्षमता के कारण ही उन्हें लौह पुरुष कहा जाता है, जो उनकी मजबूत और अडिग व्यक्तित्व को दर्शाता है। भारत सरकार द्वारा उनके व्यक्तित्व की इन्ही बातों को ध्यान में रखते हुए स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के रूप में भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा का निर्माण किया गया, जो गुजरात के नर्मदा जिले में स्थित है। इसका उद्घाटन उनके जन्म दिन पर 31 अक्टूबर 2018 में किया गया था, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट) है, यह विश्व का सबसे ऊंचा स्टैच्यू है, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट) है। यह स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग 4 गुना ऊंचा है और चीन के स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध से 23 मीटर अधिक ऊंचा है। जिसमें सरदार के व्यक्तित्व के अनुरूप बड़ी मात्रा में लोहे और कांसे का प्रयोग किया गया है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय जब भारत एक खंडित देश था, जिसके साथ 562 देसी रियासतें अस्तित्व में थीं, जिनके पास यह विकल्प था कि वे भारत या पाकिस्तान में मिलें या स्वतंत्र रहें। ऐसे कठिन समय में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपनी दृढ़ता, बुद्धिमत्ता और देशभक्ति से इन रियासतों को एक सूत्र में बांधकर भारत को एक अखंड राष्ट्र बनाया। भारत की एकता और राष्ट्र निर्माण का शिल्पकार जिसे पूरा देश श्रद्धा और सम्मान के साथ लौह पुरुष और सरदार के रूप में जानता है। बाह्य और भीतरी विरोधों के बावजूद राष्ट्रहित की राह पर निरंतर अटल इरादों के साथ आगे बढ़ते रहे।
सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के प्रतीक हैं, क्योंकि भारत एक विशाल और विविध संस्कृतियों वाला देश है, जहां अनेक धर्म, जाति, तथा समुदाय के लोग निवास करते है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अखंड भारत के राजनीतिक मानचित्र को एकता के सूत्र में पिरो कर रखा इसलिए उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में आज भी अंकित है। वे अग्रणी भूमिका निभाने वाले एक महान क्रांतिकारी नेता थे। उनके अनगिनत प्रयासों, संघर्षों और बलिदानों ने देश को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार पटेल की अखंड भारत के निर्माण में निभाई गई भूमिका को मैनचेस्टर गार्डियंस ने कहा की सरदार पटेल न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के संगठक थे, बल्कि संग्राम खत्म होने के बाद वे एक नए राष्ट्र निर्माण के वास्तुकार भी थे। सरदार पटेल द्वारा राष्ट्रीय एकता के लिए देश हित में लिए गए निर्णय तथा देशी रियासतों का एकीकरण कर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एकता की मिसाल कायम की जो की उनकी दृढ़ता, सतत प्रयास और कुशलता की मिसाल मानी जाती है। उनके महान कार्यों के प्रति कृतज्ञता स्वरूप हमारे देश में, सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती पर हर साल 31 अक्टूबर को भारत में राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के एक छोटे से गाँव में हुआ था। वे एक किसान परिवार से थे लेकिन अपनी कड़ी मेहनत और लगन से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। कानून में उनकी रुचि ने उन्हें ब्रिटिश कानूनों को समझने और देश की सेवा करने का अवसर दिया। वल्लभभाई पटेल को बारडोली सत्याग्रह (1927) के दौरान उनके प्रभावशाली नेतृत्व से अभिभूत होकर जनता द्वारा सरदार की उपाधि दी गई।
सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्र भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे। राष्ट्र निर्माण में उनकी सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़ी उपलब्धि भारतीय राज्यों का एकीकरण था। स्वतंत्रता के समय, देश में लगभग 565 छोटी-बड़ी स्वतंत्र भारतीय रियासतें थीं। उन्हें भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया था। लेकिन यह स्थिति भारत की अखंडता और अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा थी। सरदार पटेल ने वीपी मेनन के साथ मिलकर असाधारण राजनीतिक चतुराई, दूरदर्शिता और रणनीति का प्रदर्शन किया और देसी शासकों को यह विश्वास दिलाया कि भारत में विलय उनके और उनकी जनता के हितों के लिए आवश्यक है। उन्होंने अधिकांश रियासतों को बातचीत और शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से मुआहिद-उल-हक पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी कर लिया। जूनागढ़ हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में जहां भी प्रतिरोध हुआ, उन्होंने कड़े कदम उठाने में कोई संकोच नहीं किया। सरदार पटेल को लौह पुरुष की उपाधि इसलिए दी गई क्योंकि उनके नेतृत्व और दृढ़ संकल्प ने भारत के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया था, लेकिन सरदार पटेल ने स्थानीय लोगों की भावनाओं और सैन्य कार्रवाई के जरिए जूनागढ़ को भारत में शामिल कर लिया। हैदराबाद के निजाम ने स्वायत्तता की इच्छा व्यक्त की, लेकिन सरदार पटेल ने ऑपरेशन पोलो के जरिए इसे भारत का हिस्सा बना लिया। हालांकि कश्मीर का मुद्दा जटिल था, फिर भी सरदार पटेल ने इसे भारत का हिस्सा बनाने में अहम भूमिका निभाई। देश में एकता के लिए संघर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ तो शरणार्थी संकट और सांप्रदायिक दंगों के दौरान गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल ने कानून-व्यवस्था बहाल करने, शरणार्थियों की सहायता और उनके पुनर्वास के लिए ठोस और व्यावहारिक कदम उठाए।
सरदार वल्लभभाई पटेल आपातकालीन परिस्थितियों में भी उत्कृष्ट प्रशासनिक कौशल का प्रदर्शन किया और देश को दंगों से सुरक्षित रखने के लिए हर संभव प्रयास किया। अखिल भारतीय सेवाओं का गठन उनकी ही सोच का प्रतिफल है। देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री सरदार पटेल सिविल सेवाओं (आईएएस, आईपीएस, आईएफएस) को देश का इस्पाती ढांचा कहते थे। उन्होंने देश के लिए एक सुदृढ़ और निष्पक्ष अखिल भारतीय सिविल सेवाओं के पुनर्गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतंत्र भारत की प्रशासनिक व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए यह कदम आवश्यक था। सिविल सेवाओं का उद्देश्य संघीय व्यवस्था के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एकता और संवाद सुनिश्चित करना था। देश के संविधान निर्माण में भी सरदार पटेल की अभूतपूर्व भूमिका थी। सरदार पटेल संविधान सभा के एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली सदस्य थे। उन्हें कई महत्वपूर्ण समितियों विशेषकर मौलिक अधिकारों, बौद्धिक अधिकारों और प्रांतीय संविधानों से संबंधित समुदायों से संबंधित समितियों का अध्यक्ष भी बनाया गया था। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि संविधान एक मजबूत केंद्रीय सरकार के साथ-साथ अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों की भी रक्षा करे। सरदार पटेल की सबसे बड़ी विरासत एक अखंड और एकीकृत भारत गणराज्य का निर्माण है। जिसे उन्होंने अपने राजनीतिक यथार्थवाद अटूट दृढ़ संकल्प और अद्वितीय संगठनात्मक क्षमता से संभव बनाया।
सरदार वल्लभभाई पटेल के संवैधानिक योगदान भी उल्लेखनीय हैं। संविधान के ये तीन अनुच्छेद सरदार पटेल की पहल का परिणाम हैं, जिन्हें युवा पीढ़ी को जानना चाहिए। 1- धर्म के प्रचार और विकास का अधिकार, 2- भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार और 3- शिक्षण संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार। संविधान में इन अधिकारों के शामिल होने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है। संविधान सभा में खासकर गैर-हिंदुओं को धर्म प्रचार करने के अधिकार को लेकर, समिति के सदस्यों के बीच तीखी बहस हुई थी। ईसाई और मुसलमान इस बात पर अड़े रहे कि धर्म प्रचार उनके धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है। लेकिन हिंदू इस अधिकार के सख्त विरोधी थे। इसका परिणाम यह हुआ कि सरदार पटेल ने कड़े विरोध के बावजूद संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रचार शब्द जोड़ने के लिए अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव दांव पर लगा दिया। संविधान सभा ने अनुच्छेद 29 और 30 भी उन्हीं की बदौलत पारित किए।
सरदार पटेल एक यथार्थवादी महान नेता थे, जिनकी विचारधारा एक सशक्त, अखंड और समृद्ध भारत का स्वप्न थी। वे महात्मा गांधीजी के सिद्धांतों से प्रेरित थे इसके बावजूद उनकी अपनी अनूठी सोच और विचार भी थे। उनका मानना था कि स्वतंत्रता के बाद भारत को एक सशक्त नेतृत्व और स्पष्ट दिशा की आवश्यकता है। सरदार पटेल का योगदान आज भी भारत की राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। उनकी स्मृति में गुजरात में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण किया गया जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। यह प्रतिमा न केवल उनकी महानता को दर्शाती है, बल्कि भारत की एकता का भी प्रतीक है। सरदार पटेल का जीवन प्रत्येक भारतीय के लिए एक आदर्श है। उन्होंने आर्थिक विकास सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दी। पटेल का प्रसिद्ध कथन है। प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह यह न भूले कि उसकी मातृभूमि भारत है चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या समुदाय का हो। आज उनकी जयंती पर पूरा देश लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को सादर नमन करता है।
(लेखक गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग के क्षेत्रीय उपनिदेशक रहे। वर्तमान में वैश्विक हिंदी सम्मेलन के संस्थापक एवं निदेशक हैं)
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