जम्मू-कश्मीर राज्यसभा चुनाव: एनसी की बड़ी जीत, भाजपा को एक सीट; क्रॉस वोटिंग से उठे सियासी सवाल
श्रीनगर, 24 अक्टूबर (एजेंसियां)। जम्मू-कश्मीर में 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण और राज्य के पुनर्गठन के बाद हुए पहले राज्यसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) ने तीन सीटों पर शानदार जीत दर्ज की, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को एक सीट पर जीत हासिल हुई। इन नतीजों ने न केवल क्षेत्रीय राजनीति में नई हलचल पैदा की है, बल्कि विधायकों के बीच क्रॉस वोटिंग की संभावना को लेकर सियासी तूफान भी खड़ा कर दिया है।
यह चुनाव जम्मू-कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों को भरने के लिए कराया गया था, जो फरवरी 2021 से खाली थीं। उस समय गुलाम नबी आजाद और नज़ीर अहमद लावे का कार्यकाल 15 फरवरी को समाप्त हुआ था, जबकि फ़ैयाज़ अहमद मीर और शमशेर सिंह मनहास का कार्यकाल 10 फरवरी 2021 को पूरा हुआ था। चारों सीटें लंबे समय से रिक्त रहने के बाद अब जाकर भरी गईं, जिससे जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में नई हलचल देखने को मिली।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन विजेता उम्मीदवारों में पूर्व मंत्री चौधरी मोहम्मद रमजान, पूर्व राज्य मंत्री सज्जाद अहमद किचलू और सरदार गुरविंदर सिंह (जिन्हें शम्मी ओबेरॉय के नाम से भी जाना जाता है) शामिल हैं। वहीं भाजपा की ओर से प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा ने जीत दर्ज की।
भाजपा को कुल 32 वोट मिले, जबकि उसके पास विधानसभा में केवल 28 सदस्य हैं। इससे यह संकेत स्पष्ट है कि कुछ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है। मतगणना अधिकारी मनोज पंडिता ने बताया कि मतदान "एकल हस्तांतरणीय मत" प्रणाली के तहत संपन्न हुआ। उन्होंने कहा कि कुल 88 मतदाताओं में से 87 ने मतदान किया, जिनमें से 86 मत वैध और एक अमान्य पाया गया। पहले अधिसूचना के तहत 44 वोट का कोटा तय किया गया था। चौधरी मोहम्मद रमजान (एनसी) को 58 वोट और भाजपा के अली मोहम्मद मीर को 28 वोट मिले। रमजान ने कोटा पार करते हुए पहला राज्यसभा टिकट अपने नाम किया।
दूसरी अधिसूचना के तहत 87 वोट पड़े, जिनमें 85 वैध और दो अमान्य रहे। 43 वोट के कोटे में भाजपा के राकेश कुमार को 29 और एनसी के सज्जाद अहमद किचलू को 56 वोट मिले। इस तरह किचलू ने सहज बढ़त के साथ दूसरी सीट जीत ली।
तीसरी अधिसूचना के अनुसार, कुल 87 वोट पड़े, जिनमें से 84 वैध और तीन अमान्य पाए गए। इस चरण में कोटा 28.01 वोट का था। भाजपा के सत शर्मा को 32 वोट मिले, जबकि एनसी के इमरान नबी डार को 21 और गुरविंदर सिंह ओबेरॉय को 31 वोट हासिल हुए। नतीजतन, सत शर्मा और गुरविंदर सिंह ओबेरॉय दोनों को निर्वाचित घोषित किया गया।
मतदान से पहले एनसी को कांग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का समर्थन प्राप्त था, हालांकि दोनों सहयोगी दलों के बीच कुछ मुद्दों पर असहमति बनी रही। परिणाम घोषित होने के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भाजपा को मिली अतिरिक्त वोटों पर सवाल उठाते हुए क्रॉस वोटिंग की आशंका जताई। उन्होंने कहा, “एनसी के सभी वोट चारों चुनावों में सुरक्षित रहे, जैसा कि हमारे निर्वाचन अभिकर्ता ने प्रत्येक मत-पर्ची देखकर पुष्टि की। हमारे किसी विधायक ने क्रॉस वोट नहीं किया, तो फिर भाजपा को चार अतिरिक्त वोट कहां से मिले? किन विधायकों ने जानबूझकर अपने मतों को अमान्य किया? क्या उनमें यह साहस है कि वे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करें कि उन्होंने भाजपा की मदद की?”
उमर अब्दुल्ला ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ने दबाव या प्रलोभन के जरिए कुछ विधायकों को प्रभावित किया। उन्होंने चुनौती दी कि अगर भाजपा की “गुप्त टीम” सच में मौजूद है, तो उसके सदस्य सामने आकर सच्चाई बताएं।
वहीं पीपुल्स कांफ्रेंस के अध्यक्ष और विधायक सज्जाद लोन ने मतदान प्रक्रिया से दूरी बनाए रखी और एनसी एवं भाजपा दोनों पर “फिक्स मैच” का आरोप लगाया। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “एनसी ने जानबूझकर अपने एक उम्मीदवार को अतिरिक्त वोट दिलवाकर भाजपा को चौथी सीट जिताई। यह पूरा खेल पहले से तय था।”
विशेषज्ञों के अनुसार, यह चुनाव केवल राजनीतिक समीकरणों का नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर की बदलती सियासी सोच का भी प्रतिबिंब है। यह पहली बार है जब अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद नई प्रशासनिक संरचना में राज्यसभा चुनाव संपन्न हुए हैं। इससे यह संकेत भी मिलता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में राजनीतिक गठजोड़ और क्रॉस वोटिंग का मुद्दा केंद्र में रह सकता है।
गौरतलब है कि 1952 से 2021 तक जम्मू-कश्मीर से कुल 37 सदस्य राज्यसभा भेजे जा चुके हैं, जिनमें से 70 प्रतिशत से अधिक नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस से रहे हैं। अब तक किसी महिला को राज्यसभा के लिए निर्वाचित नहीं किया गया है। गुलाम नबी आजाद (1996–2021) पांच बार सदस्य रहे, जो सबसे लंबा कार्यकाल है, जबकि तीरथ राम अम्ला चार बार और सैफुद्दीन सोज़ व ओम मेहता तीन-तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे।
इस बार के चुनाव परिणामों ने एक ओर जहां एनसी के आत्मविश्वास को बढ़ाया है, वहीं भाजपा को भी इस जीत के जरिए घाटी में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराने का अवसर मिला है। लेकिन क्रॉस वोटिंग के आरोपों ने इस चुनाव की पारदर्शिता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। अब सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि कौन विधायक “अंदरखाने के रहस्य” उजागर करता है और आने वाले चुनावों में यह सियासी समीकरण किस दिशा में जाते हैं।
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