भारत में वाम-आतंक खत्म होने की ओर
आरटीआई के जरिए मिले सरकारी आंकड़ों से खुलासा
वर्ष 2014 से हजारों सरेंडर, 2025 में सर्वाधिक नक्सली ढेर
वर्ष 2014 से अब तक 548 जवानों ने अपनी शहादत दी है
नई दिल्ली, 04 नवंबर (एजेंसियां)। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत गृह मंत्रालय से हासिल किए गए आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में वाम-आतंक खत्म होने की ओर तेजी से बढ़ रहा है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2014 से 6,000 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जबकि 1,100 नक्सलियों को मौत के घाट उतार दिया गया। भारत के नक्सल विरोधी अभियानों में छत्तीसगढ़ अग्रणी है। गृह मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक वामपंथी उग्रवाद के खात्मे का लक्ष्य रखा है।
पीएम मोदी की अगुवाई वाले पिछले 11 वर्षों के शासनकाल में नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। रेड कॉरिडोर में वामपंथी उग्रवाद में तेजी से कमी आई है। गृह मंत्रालय ने नक्सलवाद पर आरटीआई के जरिए जानकारी दी है कि मई 2014 से 30 सितंबर 2025 तक छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा नक्सलियों ने आत्मसमर्पण (6,153) किए और सबसे ज्यादा नक्सलियों की हत्या भी यहां (1,129) दर्ज की गईं। वर्ष 2016 में सबसे ज़्यादा आत्मसमर्पण (1,440) दर्ज किए गए, जबकि 2025 (30 सितंबर तक) में सबसे ज्यादा वामपंथी उग्रवादियों (311) को मौत के घाट उतारा गया। ये खुफिया जानकारी के आधार पर नक्सलियों के खिलाफ किए गए सफलतापूर्वक मिशन को दर्शाता है।
10 राज्यों पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ पारंपरिक रूप से नक्सल आंदोलन का मुख्य केंद्र रहा है। वामपंथी उग्रवादियों के आत्मसमर्पण के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा नक्सलवादियों की हत्या हुई है। ये राज्य-केंद्र के बीच बेहतर तालमेल और दूर-दराज के क्षेत्र में विकास की पहुंच को दर्शाता है। खास बात यह है कि मई 2014 से दिसंबर 2018 तक रमन सिंह के नेतृत्व में यहां भाजपा सरकार थी। उस वक्त राज्य में करीब 2697 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और 408 वामपंथी उग्रवादी मारे गए। इस चरण में केंद्र-राज्य के बीच मजबूत तालमेल देखने को मिला। यहां केंद्रीय गृह मंत्रालय के अभियान और राज्य पुलिस की कार्रवाइयां एक साथ काम कर रही थीं।
इसके विपरीत, कांग्रेस शासन (भूपेश बघेल और अजीत जोगी) के दौरान 7 दिसंबर 2018 से 13 दिसं
झारखंड और ओड़ीशा में इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश अपेक्षाकृत शांत हुआ है। पश्चिम बंगाल और केरल में हाल के वर्षों में घटनाओं की संख्या नगण्य दर्ज की गई है, जो रेड कॉरिडोर के सिकुड़ने को दर्शाता है। 2016 में नक्सलियों ने सबसे ज्यादा आत्मसमर्पण किया। इससे पता चलता है कि पुनर्वास कार्यक्रम सफल रहा। 2025 (30 सितंबर तक) में नक्सलियों की एक्टिविटी सबसे कम दिखी। ये बेहतर कार्रवाई, गुप्त जानकारी, अच्छा तालमेल और तकनीकी मदद से नक्सलवाद को समाप्त करने के केंद्र सरकार के दृढ़ संकल्प का संकेत है। समय के साथ आत्मसमर्पण की बढ़ती संख्या ये बताता है कि नक्सलवाद के रीढ़ अब टूट चुके हैं।
सुरक्षाबलों ने भी बड़ी तादाद में नक्सलवाद की कीमत चुकाई है। मई 2014 से अब तक 548 जवान शहीद हो चुके हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इसकी संख्या में कमी आई है। इस दौरान 1,630 नागरिकों की जानें गई हैं। हालांकि विद्रोहियों के नियंत्रण वाले क्षेत्रों के सिकुड़ने के साथ नागरिकों को निशाना बनाकर की जाने वाली घटनाओं में कमी आई है। ग्यारह वर्षों में 8751 आत्मसमर्पण हुए हैं। नक्सलियों में जो गंभीर अपराधों में शामिल नहीं हैं, उनके लिए परामर्श, आर्थिक प्रोत्साहन और कानूनी राहत देकर समस्या के निवारण की ओर कदम बढ़ाया गया।
गृह मंत्री शाह ने नक्सलियों के बातचीत को ठुकरा कर आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया है। इस दौरान सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ की संख्या भी बढ़ी, जिससे नक्सलियों के लिए अपने सशस्त्र आंदोलन को जारी रखने की कोई गुंजाइश नहीं बची। सभी वजहों ने मिलकर नक्सलियों के कमर तोड़ दिए। पिछले 11 वर्षों में 5,277 हथियार बरामद किए गए। इससे विद्रोहियों के पुनर्गठित होने की क्षमता और कम हो गई। लगातार हथियारों की बरामदगी और मुठभेड़ों की बढ़ती संख्या ने नक्सलियों के हौसले पस्त कर दिए। इससे जंगलों में छिपकर हमला करने की उनकी योजनाओं पर भी असर पड़ा है। नक्सलवाद की मौजूदगी अब चुनिंदा जंगल वाले क्षेत्रों तक सीमित रह गया है। मार्च 2026 तक नक्सलवाद को समाप्त करने की सरकार ने घोषणा की है। दूरसंचार का फैलता नेटवर्क, कल्याणकारी योजनाओं का असर और लगातार आत्मसमर्पण कर रहे नक्सलियों को देखकर उम्मीद की जा सकती है कि मार्च 2026 का टारगेट पूरा होगा और देश से नक्सलवाद हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
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