टैरिफ की जंग में अमेरिका मात, चीन बना ट्रेड का सम्राट!

 ट्रंप के हथियार को कुचलते हुए 1 ट्रिलियन डॉलर पार कैसे हुआ ड्रैगन

टैरिफ की जंग में अमेरिका मात, चीन बना ट्रेड का सम्राट!


नई दिल्ली, 13 दिसम्बर,(एजेंसियां)।  दुनिया को टैरिफ की आग में झोंकने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सबसे बड़ा दांव आखिरकार उल्टा पड़ता दिख रहा है। जिस चीन को आर्थिक रूप से घुटनों पर लाने का सपना ट्रंप ने देखा था, वही चीन आज 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा के ग्लोबल ट्रेड सरप्लस के साथ दुनिया का निर्विवाद “ट्रेड किंग” बनकर उभरा है। अमेरिका की रणनीति थी कि भारी टैरिफ लगाकर चीन के निर्यात को कुचला जाएगा, मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका लौटेगी और अमेरिकी मजदूरों को नौकरियां मिलेंगी। लेकिन हकीकत में हुआ ठीक इसका उलटा—चीन ने न केवल टैरिफ का असर झेला, बल्कि उसे अपने पक्ष में मोड़कर ऐतिहासिक एक्सपोर्ट बूम खड़ा कर दिया।

आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 2010 में जहां चीन का ट्रेड सरप्लस 200 अरब डॉलर से भी कम था, वहीं 2025 तक पहुंचते-पहुंचते यह आंकड़ा 1.0 से 1.08 ट्रिलियन डॉलर के स्तर को पार कर चुका है। यह पहली बार है जब किसी एक देश ने इतने बड़े स्तर पर वैश्विक व्यापार अधिशेष हासिल किया है। साफ है कि ट्रंप की टैरिफ नीति चीन को कमजोर करने की बजाय उसे और ज्यादा आक्रामक, रणनीतिक और वैश्विक बना गई।

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी चीन पर भारी टैरिफ लगाए थे। उस समय भी दावा किया गया था कि चीन की फैक्ट्रियां बंद होंगी, एक्सपोर्ट गिरेगा और अमेरिकी बाजार पर चीन की पकड़ ढीली पड़ेगी। लेकिन चीन ने उस दौर से सबक लिया। उसने समझ लिया कि अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता अब उसके लिए जोखिम है। इसके बाद बीजिंग ने जो किया, वही आज उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गया—मार्केट डायवर्सिफिकेशन

चीन ने अमेरिकी बाजार के विकल्प खोजने शुरू किए। नतीजा यह हुआ कि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोप जैसे क्षेत्रों में उसका निर्यात तेज़ी से बढ़ा। अफ्रीका में चीन का एक्सपोर्ट करीब 42 प्रतिशत तक उछला, यूरोप में 15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई और लैटिन अमेरिका में भी डबल डिजिट ग्रोथ देखने को मिली। यानी अमेरिका में जो नुकसान हो रहा था, उसकी भरपाई चीन ने बाकी दुनिया से कहीं ज्यादा मुनाफे के साथ कर ली।

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यहीं से शुरू होती है चीन की असली रणनीतिक जीत। यह सिर्फ नए बाजार खोजने की कहानी नहीं है, बल्कि सप्लाई चेन री-इंजीनियरिंग की मास्टरक्लास है। चीन ने अपने एक्सपोर्ट मॉडल को पूरी तरह से बदल दिया। उदाहरण के तौर पर मोबाइल फोन को ही लीजिए। मोबाइल के ज्यादातर कोर और हाई-वैल्यू कॉम्पोनेंट्स आज भी चीन में बनते हैं। लेकिन अंतिम असेंबली चीन के बजाय दूसरे देशों—जैसे अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया या यूरोप—में की जाती है। इसके बाद वही उत्पाद वहां से अमेरिका भेजे जाते हैं। नतीजा यह कि अमेरिकी टैरिफ सीधे-सीधे चीन पर लागू ही नहीं हो पाते।

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यह रणनीति अमेरिका के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हुई। ट्रंप प्रशासन जिस टैरिफ को हथियार समझ रहा था, वह चीन के लिए एक रणनीतिक अवसर बन गया। चीन ने साबित कर दिया कि ग्लोबलाइज्ड दुनिया में सिर्फ टैरिफ लगाकर किसी देश को अलग-थलग नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब उस देश की सप्लाई चेन इतनी गहराई से दुनिया में जुड़ी हो।

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इस पूरी कहानी में एक और अहम फैक्टर है—करेंसी एडवांटेज। चीन पर लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि वह अपनी मुद्रा युआन को जानबूझकर कमजोर रखता है। कमजोर करेंसी का सीधा फायदा यह होता है कि देश का एक्सपोर्ट सस्ता पड़ता है और वह वैश्विक बाजार में ज्यादा प्रतिस्पर्धी बन जाता है। टैरिफ के दबाव के बावजूद चीन ने इस रणनीति का इस्तेमाल किया और अपने उत्पादों को बाकी देशों की तुलना में ज्यादा आकर्षक बनाए रखा।

इसके अलावा चीन ने हाई-टेक और ग्रीन टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी बड़ा दांव खेला। इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, सोलर पैनल, बैटरी और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में चीन ने उत्पादन बढ़ाया और वैश्विक बाजार पर कब्जा जमाया। नतीजा यह हुआ कि दुनिया के कई देश, जो चीन को टैरिफ वॉर के दौरान कमजोर मान रहे थे, वही आज उसकी सप्लाई पर निर्भर हो गए हैं।

अमेरिका के लिए यह स्थिति इसलिए भी चिंता की बात है क्योंकि जिस ट्रेड डेफिसिट को कम करने के लिए टैरिफ लगाए गए थे, वह समस्या अब भी बनी हुई है। दूसरी ओर चीन का ट्रेड सरप्लस लगातार नई ऊंचाइयों को छू रहा है। साफ है कि ट्रंप की नीति ने अमेरिका को अपेक्षित लाभ नहीं दिया, जबकि चीन को मजबूर किया कि वह ज्यादा स्मार्ट, ज्यादा लचीला और ज्यादा वैश्विक बने।

आज स्थिति यह है कि चीन सिर्फ “फैक्ट्री ऑफ द वर्ल्ड” नहीं रहा, बल्कि वह ग्लोबल ट्रेड आर्किटेक्ट बन चुका है। उसने दिखा दिया कि आर्थिक युद्ध सिर्फ ताकत से नहीं, रणनीति से जीता जाता है। ट्रंप का टैरिफ कार्ड चीन के लिए खतरा नहीं, बल्कि लॉन्चपैड साबित हुआ।

कुल मिलाकर, 1 ट्रिलियन डॉलर का ट्रेड सरप्लस सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है। यह उस सच्चाई का सबूत है कि चीन ने अमेरिकी दबाव को अवसर में बदला और वैश्विक व्यापार की दिशा ही मोड़ दी। आने वाले वर्षों में यह सवाल और गहरा होगा—क्या अमेरिका अपनी रणनीति बदलेगा, या चीन का यह ट्रेड साम्राज्य और फैलता जाएगा?