900 करोड़ का टैक्स संग्राम! IndiGo बनाम कस्टम्स, दिल्ली HC में टकराव
—जस्टिस जैन ने हितों के टकराव पर सुनवाई से खींचे हाथ
नई दिल्ली, 13 दिसम्बर,(एजेंसियां)। देश की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो (IndiGo) और सीमा शुल्क विभाग के बीच 900 करोड़ रुपये से ज्यादा के टैक्स विवाद ने अब कानूनी और संवैधानिक मोर्चा अख्तियार कर लिया है। इंडिगो का संचालन करने वाली इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए विदेशी मरम्मत के बाद भारत में दोबारा आयात किए गए विमान इंजनों और पुर्जों पर वसूले गए सीमा शुल्क की वापसी की मांग की है। मामला जब दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के सामने पहुंचा, तो एक अहम घटनाक्रम देखने को मिला—न्यायमूर्ति शैल जैन ने स्वयं को इस केस की सुनवाई से अलग कर लिया, क्योंकि उनके पुत्र इंडिगो एयरलाइन में पायलट हैं।
यह मामला न सिर्फ एक बड़ी कारोबारी लड़ाई है, बल्कि दोहरा कराधान, सेवा बनाम वस्तु, और कर नीति की व्याख्या जैसे बुनियादी सवालों को भी सामने लाता है। इंडिगो का दावा है कि उससे एक ही लेन-देन पर बार-बार टैक्स वसूला गया, जो न सिर्फ कानून के खिलाफ है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 265 (कानून के बिना कर नहीं) की भावना का भी उल्लंघन करता है।
इंटरग्लोब एविएशन की ओर से दायर याचिका शुक्रवार को न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति शैल जैन की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध थी। सुनवाई की शुरुआत में ही न्यायमूर्ति जैन ने स्पष्ट किया कि उनके बेटे के इंडिगो में पायलट होने के कारण इस मामले में उनकी भागीदारी हितों के टकराव (Conflict of Interest) की श्रेणी में आ सकती है। न्यायिक नैतिकता का उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने स्वयं को केस से अलग कर लिया। इसके बाद यह मामला अब नई पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा।
मामले के मूल में इंडिगो का यह तर्क है कि जब किसी विमान के इंजन या पुर्जे विदेश भेजे जाते हैं, तो वह मरम्मत के उद्देश्य से अस्थायी निर्यात होता है, न कि स्थायी बिक्री। मरम्मत के बाद जब वही पुर्जे भारत वापस आते हैं, तो उन्हें नया आयात मानकर दोबारा सीमा शुल्क लगाना कानूनी रूप से गलत है। एयरलाइन का कहना है कि उसने पहले ही मूल सीमा शुल्क का भुगतान किया था और मरम्मत सेवा पर रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत जीएसटी भी अदा किया।
इंडिगो के वकील ने अदालत को बताया कि मरम्मत स्वयं में एक सेवा (Service) है, न कि वस्तुओं का नया आयात। ऐसे में उसी लेन-देन को दोबारा “माल का आयात” बताकर सीमा शुल्क वसूलना दोहरा कराधान (Double Taxation) के समान है। एयरलाइन का दावा है कि सीमा शुल्क विभाग ने एक ही प्रक्रिया को पहले सेवा माना और फिर वस्तु, जो कर कानून की बुनियादी अवधारणाओं के खिलाफ है।
एयरलाइन ने यह भी तर्क दिया कि इस मुद्दे पर पहले ही सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (CESTAT) अपना स्पष्ट फैसला दे चुका है। न्यायाधिकरण ने कहा था कि मरम्मत के बाद पुनः आयात किए गए इंजनों और पुर्जों पर दोबारा सीमा शुल्क नहीं लगाया जा सकता। इसके बावजूद सीमा शुल्क अधिकारियों ने इंडिगो से हजारों मामलों में शुल्क वसूलना जारी रखा।
याचिका में बताया गया कि इंडिगो ने 4,000 से अधिक बिल ऑफ एंट्री पर करीब 900 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि “विरोध दर्ज करते हुए” (under protest) अदा की। बाद में जब एयरलाइन ने इस राशि की वापसी के लिए रिफंड क्लेम दाखिल किए, तो सीमा शुल्क विभाग ने उन्हें खारिज कर दिया। अधिकारियों का तर्क था कि प्रत्येक बिल ऑफ एंट्री का पहले पुनर्मूल्यांकन (Reassessment) कराया जाए, तभी रिफंड पर विचार किया जा सकता है।
इंडिगो ने इसे अव्यावहारिक और मनमाना बताया है। कंपनी का कहना है कि हजारों बिल ऑफ एंट्री का पुनर्मूल्यांकन कराना न केवल समयसाध्य है, बल्कि यह न्यायाधिकरण के पहले से दिए गए फैसले की अवहेलना भी है। एयरलाइन ने अदालत से यह भी कहा कि छूट अधिसूचना में जो संशोधन बाद में किया गया, उसे पूर्व प्रभाव (Retrospective Effect) से लागू नहीं किया जा सकता। स्वयं न्यायाधिकरण यह स्पष्ट कर चुका है कि संशोधन केवल भविष्य के मामलों पर लागू होगा।
यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब विमानन उद्योग पहले से ही उच्च ईंधन लागत, डॉलर-रुपया विनिमय दर, और मेंटेनेंस खर्च के दबाव से जूझ रहा है। इंडिगो का कहना है कि इस तरह के भारी-भरकम टैक्स बोझ का सीधा असर हवाई किराए, संचालन लागत और यात्रियों पर पड़ सकता है।
कानूनी जानकारों के मुताबिक, यह मामला सिर्फ इंडिगो तक सीमित नहीं रहेगा। अगर हाईकोर्ट इंडिगो के पक्ष में फैसला देता है, तो इसका असर पूरे भारतीय विमानन उद्योग पर पड़ सकता है, क्योंकि लगभग सभी एयरलाइंस अपने विमानों के इंजन और प्रमुख पुर्जों की मरम्मत विदेश में कराती हैं। वहीं, अगर सीमा शुल्क विभाग का रुख बरकरार रहता है, तो यह भविष्य में एयरलाइंस के लिए कर अनुपालन को और जटिल बना सकता है।
दिल्ली हाईकोर्ट में अब यह मामला नई पीठ के समक्ष आएगा, जहां यह तय होगा कि क्या मरम्मत के बाद पुनः आयात पर सीमा शुल्क वसूलना संवैधानिक है या नहीं। इस फैसले से न केवल 900 करोड़ रुपये की किस्मत तय होगी, बल्कि यह भी स्पष्ट होगा कि भारत में कर प्रशासन व्यवसाय के अनुकूल है या नहीं।
कुल मिलाकर, यह केस सिर्फ एक एयरलाइन और एक विभाग की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह नीति, कानून और न्यायिक विवेक की अग्निपरीक्षा है। आने वाले दिनों में इस पर देशभर की नजरें टिकी रहेंगी।

