सियासतदानों... और कितनी जानें आग में झोंकोगे!
गुलजार हाउस अग्निकांड से उजागर हुई सरकार की नाकामी
ये सिर्फ एक हादसा नहीं, 'कम्प्लीट सिस्टम फेल्योर' था
रेवंत रेड्डी सरकार को झूठ परोसने और सुंदरियां बटोरने से फुर्सत नहीं
बुरी तरह फेल हुआ तेलंगाना स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स एंड फायर सर्विस
शुभ-लाभ संवेदना
हैदराबाद का गुलजार हाउस अग्निकांड किसी भी लोकतांत्रिक नैतिक और संवेदनशील सरकार के अलमबरदारों के चुल्लू भर पानी में डूब मरने के लिए काफी था। लेकिन यहां न लोकतंत्र है, न नैतिकता और संवेदनशीलता। साहसी मांओं ने अपने निरीह बच्चों को अपनी गोद में समेट कर हृदयहीन सरकार और नाकारा व्यवस्था के खिलाफ जौहर कर लिया। फिर भी सरकार को शर्म नहीं आई, यही तो यहां की असलियत है। जब सरकार गुलजार हाउस अग्निकांड में झुलस कर मरने वाले आठ बच्चों और महिलाओं समेत 17 लोगों की मौत पर पांच-पांच लाख रुपए का मुआवजा तय कर रही थी तो केवल तेलंगाना क्या, पूरा देश शर्मिंदगी से भर गया था। लोगों के मुंह से बेसाख्ता निकला... छिः... इस छिः से सियासतदानों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। नेता जानता है कि कुछ दिनों की बात है, लोग पहले की तरह फिर भूल जाएंगे, चुनाव का वक्त आने पर फिर उन्हें बेवकूफ बनाया जाएगा और वोट लेकर राजयोग भोगा जाएगा। आम जनता तो दुख भोगने के लिए है ही। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना है।
आठ बच्चों समेत 17 लोगों की मौत पर पूरा हैदराबाद, पूरा तेलंगाना और पूरा देश दुखी है। शोक सभाएं चल रही हैं। लोग अपनी वेदनाएं अभिव्यक्त कर रहे हैं। लेकिन सत्ता अलमबरदारों और नौकरशाहों पर इस सामाजिक दुख का कोई असर नहीं। अगर दुख होता तो तेलंगाना स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स एंड फायर सर्विसेज के शीर्ष अधिकारी से लेकर सारे जिम्मेदार लोगों और नगर पालिका के संबद्ध अधिकारियों एवं कर्मचारियों पर मासूम लोगों की जान लेने का आपराधिक मुकदमा दर्ज हो गया होता, अब तक वे निलंबित हो गए होते और सख्त कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे होते। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टा, डिजास्टर रेस्पॉन्स एंड फायर सर्विसेज का शीर्ष अधिकारी नेताओं की तरह भाषण देता फिर रहा है और मीडिया को बेवकूफ बना रहा है। उसे अब तक गिरफ्तार हो जाना चाहिए था, लेकिन वह सरकार की तरफ से सफाइयां पेश कर रहा है। गुलजार हाउस में लगी आग बुझाने के लिए आई फायर ब्रिगेड की गाड़ियों में पानी नहीं था। पानी का कोई वैकल्पिक इंतजाम भी नहीं था। एंबुलेंस में ऑक्सीजन नहीं था। फायर ब्रिगेड की गाड़ियां कम भेजी गई थीं। ऐसे हादसों से निपटने के लिए शहर में सड़कों और नुक्कड़ों पर पानी के स्रोत (फायर हाइड्रेंट) फिट रखे जाते हैं। फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को पानी कैसे मिले? ऐसे सवालों का हल पहले से तलाश कर रखा जाता है ताकि आपात स्थिति में व्यवस्था दुरुस्त रह सके। लेकिन नगर पालिका का ध्यान तो केवल पैसे बटोरने पर रहता है। गुलजार अग्निकांड ने पूरी व्यवस्था के चेहरे पर पड़ी नकाब भी फूंक डाली। गुलजार हाउस अग्निकांड सिर्फ एक दुर्घटना नहीं बल्कि घोर और अक्षम्य प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है। इससे बड़ा और दर्दनाक उदाहरण क्या हो सकता है? जब हर एक सेकंड किसी की जान ले रहा हो और डिजास्टर रेस्पॉन्स शून्य हो तो सियासतदानों को डूब मरना चाहिए कि नहीं? सरकार की प्राथमिकता करोड़ों-अरबों रुपए खर्च कर तमाशा और सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजित करने की हो तो मासूम बच्चे और महिलाएं ऐसे ही आग में झुलस कर मरेंगी ही। जब हैदराबाद राजधानी की बुनियादी आपातकालीन व्यवस्था इतनी लचर और सड़ियल है तो आप प्रदेश के अन्य जिलों की बदहाली का अंदाजा लगा सकते हैं। सरकार की बेशर्मी गुलजार हाउस अग्निकांड में त्रासद मौत का शिकार हुए मासूमों की मौत का अपमान है। इसे आम नागरिकों को याद रखना चाहिए और इसका लोकतांत्रिक प्रतिकार करना चाहिए।
हैदराबाद के गुलजार हाउस अग्निकांड ने शहर के अग्निशमन विभाग की तैयारियों और क्षमता का पर्दाफाश कर दिया है। जबकि हैदराबाद में आग लगने की दुर्घटनाएं आम होती जा रही हैं। हर रोज आग लगने की चार-पांच घटनाएं दर्ज हो रही हैं। खास तौर पर गुलजार हाउस अग्निकांड ने पर्याप्त सुरक्षा उपाय करने में लापरवाही करने वाले जीएचएमसी, ईवीडीएम, हाइड्रा, अग्नि
फायर ब्रिगेड ने गुलजार हाउस में लगी आग बुझाने के लिए 11 फायर टेंडर तैनात किए थे। यह फायर ब्रिगेड महकमे का आधिकारिक बयान है। पानी खर्च होने पर कितने फायर टेंडर मौके से हटे और कितने नए फायर टेंडर पानी के साथ घटनास्थल पर पहुंचे, इस सवाल का जवाब तेलंगाना राज्य आपदा प्रतिक्रिया और अग्निशमन सेवा (तेलंगाना स्टेट डिजास्टर रेस्पॉन्स एंड फायर सर्विसेज) के महानिदेशक वाई. नागी रेड्डी के पास नहीं है। जबकि नागी रेड्डी ही रेवंत रेड्डी के प्रवक्ता बने सरकार की तरफ से सफाइयां पेश कर रहे हैं। नागी रेड्डी संकरी गली और इमारत के संकरे प्रवेश द्वार, पहली मंजिल तक जाने वाली संकरी सीढ़ी को अग्निशमन सेवा में बाधा पहुंचाने का तर्क देते हैं। लेकिन नागी रेड्डी यह नहीं बताते कि इतनी खतरनाक स्थितियां थीं तो उनके विभाग ने गुलजार हाउस को एनओसी कैसे जारी कर दी थी। और अगर एनओसी नहीं दी थी तो क्यों? और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? आग बुझाने में लगे अधिकांश फायरमैन के पास मास्क क्यों नहीं था?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पूरे प्रदेश के मुखिया है। लेकिन वे अपनी राजधानी हैदराबाद का ही ख्याल नहीं रख पाते। उनके पहले के मुख्यमंत्री भी ऐसे ही नाकारा रहे हैं। अगर वे आम लोगों के सरोकार के प्रति संजीदा होते तो बिल्डिंग कोड का सख्ती से पालन हुआ होता, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में अग्निशमन सेवाओं की कारगर पहुंच का उपाय हुआ होता और अग्नि सुरक्षा के सारे जरूरी इंतजामात प्राथमिकता से हुए होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, न हो रहा है और न होता हुआ दिख रहा है...