आत्मनिर्भर होकर विश्व को हथियार बेच रहा नया भारत
कमीशन लेकर विदेशों से हथियार खरीदने वाला पुराना भारत
रक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार-नीति 11 साल में खत्म
नई दिल्ली, 10 जून (एजेंसियां)। कमीशन लेकर विदेशों से हथियार खरीदने वाला पुराना भारत अब नए भारत में तब्दील हो चुका है। आज नया भारत आत्मनिर्भर होकर विश्व को हथियार बेच रहा है। आजादी के बाद से देश के रक्षा क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार-नीति 11 साल में समाप्त कर दी गई। आज भारत 100 से ज्यादा देशों को हथियार निर्यात कर रहा है और विश्व के रक्षा निर्यातक देशों में 25वें स्थान पर पहुंच चुका है। 2025 में भारत ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का दूसरी खेप फिलीपींस को भेजी।
देश की सैन्य आत्मनिर्भरता न केवल देश की आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है बल्कि बाह्य सुरक्षा की नजरिए से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसी भी देश का खुद का हथियार बनाना सबसे महत्वपूर्ण होता है। भारत हथियारों के मामले में दुनिया के आत्मनिर्भर देशों में शामिल हो गया है। यह परिवर्तन 2014 के बाद होना शुरू हुआथ 2014 से पहले भारत का रक्षा निर्यात काफी बदहाली के दौर से गुजर रहा था और हम आयात पर निर्भर थे। लेकिन इस निर्भरता को आत्मनिर्भरता में बदलने का काम 2014 के बाद आई मोदी सरकार ने किया।
स्कॉटहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक, 2009 से 2013 तक भारत पूरे दुनिया के हथियारों का 13 प्रतिशत आयात किया करता था। इसका परिणाम यह हुआ कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली सैन्य क्षमताओं वाला देश हथियारों की आपूर्ति के मामले में दूसरे देशों पर निर्भर होता चला गया। विदेशी सप्लायर भारत के घरेलू उत्पादन उद्योग को कमजोर करते चले गए। रक्षा निर्यात की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2004-2005 से 2013-14 तक रक्षा निर्यात की कुल राशि 4,312 करोड़ थी जो अब बढ़ कर 23,622 करोड़ हो गई है।
रक्षा निर्यात की रिपोर्ट में साफ बताया गया है कि किस तरह कांग्रेस ने देश की सुरक्षा को हाशिये पर रख दिया था। रक्षा निर्यात की रिपोर्ट में उत्तरी सेवा के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने इस रिपोर्ट में बताया है कि 2013-14 तक हमारा निर्यात मात्र 110 मिलियन डॉलर था। हमारे देश के रक्षा निर्यात का कोई अस्तित्व ही नहीं था। रिपोर्ट के अनुसार, पहले की सरकार में रक्षा मंत्रालय से एनओसी लेने के बाद व्यापार करने की व्यवस्था थी, उस वक्त भी सरकार ने रक्षा निर्यात पर गंभीरता से विचार नहीं किया। यही कारण है कि 2014 के बाद भी एनडीए सरकार के गंभीर प्रयासों के बावजूद रक्षा निर्यात इतना कम है।
भारत की रक्षा प्रणाली को सशक्त करने के लिए विख्यात डीआरडीओ की हालत कांग्रेस सरकार में बद से बदतर हो चुकी थी। डीआरडीओ के 6000 वैज्ञानिकों में से केवल 3 प्रतिशत वैज्ञानिक ही ऐसे थे जिन्होंने इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रखी थी। यह बात खुद इस रिपोर्ट में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव पी. रामा राव की अध्यक्षता वाली समीक्षा समिति ने कही है। अन्य कई देश अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए अपने देश में उत्पादन और नौकरी को बढ़ावा दे रहे थे। उसी वक्त भारत एक खरीदार के रूप में फंसा हुआ था और आयात पर अरबों डॉलर खर्च कर रहा था।
रक्षा निर्यात की रिपोर्ट में 2014 से पहले कांग्रेस की सरकार में हुई लूट और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया गया है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 1980 का बोफोर्स घोटाला में 64 करोड़ की रिश्वत का मामला सीधे राजीव गांधी से जाकर जुड़ता है। इसका खुलासा खुद स्वीडिश रेडियो कार्यक्रम में किया गया जिसमें खुद बोफोर्स के कर्मचारियों ने कहा कि इसके लिए भारी रिश्वत दी गई थी। बयान के अनुसार उस वक्त कांग्रेस के कई वरिष्ठ सदस्यों और राजनेताओं को 8.2 बिलियन की रिश्वत दी गई थी। इसके अलावा अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में भी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के शामिल होने का दावा किया गया है। रिपोर्ट में शामिल टाट्रा ट्रक और बाराक मिसाइल स्कैम ने भी कांग्रेस की बखिया उधेड़ कर रख दी है। उस वक्त कांग्रेस द्वारा किए गए इस सुरक्षा खिलवाड़ के नतीजे ने भारत की सैन्य ताकत को भीतर से कमजोर कर दिया था।
रक्षा निर्यात रिपोर्ट के अनुसार 2014 के बाद भारत सरकार ने आयात निर्भरता में लगातार कमी लाई। भारतीय कंपनियों को निर्माण के लिए प्रोत्साहित किया गया और उनका आत्मविश्वास बढ़ाया गया। 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा शुरू मेक इन इंडिया ने भारत में निर्मित डिजाइन को विकसित करने में काफी मदद पहुंचाई। इसके अलावा रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) के तहत खरीदी में भी बदलाव किया गया। 500 से अधिक हथियारों के आयात पर रोक दी लगा दी गई जिसमें टैंक, आर्टिलरी मशीन और रडार भी शामिल है। देश के रक्षा उत्पादन का मूल्य 174 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1,27,434 करोड़ तक पहुंच गया जो 2014-15 में 46,429 करोड़ था। सरकार के द्वारा सैन्य प्लेटफार्म का विकास किया गया। नौसेना को सशक्त बनाने के लिए स्वदेशी विमान वाहक, पनडुब्बी और फास्ट अटैक क्राफ्ट आदि के निर्माण पर जोड़ दिया गया। यह सब मेक इन इंडिया की पहल के सकारात्मक परिणाम का स्वरूप है।
कांग्रेस के कार्यकाल में हाशिये पर पहुंच चुकी निजी कंपनियां को मोदी सरकार में बल मिला। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव पी. रामा राव के अध्यक्षता वाली समीक्षा समिति की रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि कांग्रेस की सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण प्राइवेट कंपनियों को रक्षा तकनीक के उत्पादन से दूर रखा गया था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। सैन्य सुरक्षा के विकास को देखते हुए सरकार ने निजी कंपनियों से सहयोग लिया ताकि देश की रक्षा प्रणाली को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाया जा सके। सरकार के इस निर्णायक बदलाव के फलस्वरूप रक्षा क्षेत्र के जगत में कई बड़ी कंपनियों का प्रवेश हुआ। टाटा, एलएनटी डिफेंस, भारत फोर्ज, कल्याणी ग्रुप और महिंद्रा जैसी बड़ी कंपनियां आर्टिलरी सिस्टम, बख्तरबंद वाहन, रडार सिस्टम, पनडुब्बी विमान के पुर्जे और ड्रोन सहित कई रक्षा सामग्रियों का निर्माण कर रही हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि वित्त वर्ष 2024-25 में निजी क्षेत्र में 15,233 करोड़ का रक्षा निर्यात किया जिसे किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण कहा जाना गलत नहीं है।
देश के रक्षा उत्पादन और तकनीक का सार्थक उदाहरण, स्व-निर्मित लड़ाकू विमान तेजस भारत की शान बना। विश्व के कई देशों से इसकी मांग और तेज हो गई। दरअसल तेजस एक भारतीय फाइटर जेट है जो सिंगल इंजन, डेल्टा विंग और मल्टी रोल लाइट फाइटर जेट है। सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों की श्रेणी में सबसे यह छोटा और हल्का है। इसकी मारक क्षमता को देखते हुए विश्व के कई देश इसे खरीदने में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। आज भारतीय रक्षा प्रणाली और सैनिक उपकरणों का लोहा पूरी दुनिया मान रही है। यही कारण है कि आज भारत 100 से ज्यादा देशों को हथियार निर्यात करता है। इसी के साथ भारत विश्व के रक्षा निर्यातक देशों में 25वें स्थान पर पहुंच चुका है। म्यांमार गोला-बारूद, इसराइल ड्रोन और आर्मेनिया आर्टिलरी सिस्टम भारत से खरीद रहा है। भारत ने आर्मेनिया को 6 एडवांस्ड आर्टिलरी गन सिस्टम निर्यात किए हैं। रिपोर्ट से यह साफ है कि भारत का कद रक्षा निर्यातकों में विश्व के जाने-माने देशों तक बढ़ चुका है।
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने भारत के रक्षा निर्यात को और ज्यादा मजबूती दी है। भारत की लगभग 100 कंपनियां रक्षा उत्पादों का निर्यात कर रही हैं। मोदी सरकार 2019 तक रक्षा निर्यात को दुगना करके 6 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की तैयारी में है। केंद्र सरकार ने साल 2024-25 के रक्षा बजट के लिए 6.21 लाख करोड़ आवंटित किए हैं। यह पिछले वित्तीय वर्ष में आवंटित 5.94 लाख करोड़ रुपए से 4.3 प्रतिशत अधिक है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पिनाका, तेजस और ब्रह्मोस मिसाइल की मांग में काफी तेजी आई है। भारत अपने रक्षा उत्पादों का विस्तार अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका तक करने की तैयारी में है। यह मोदी सरकार की सफलता ही है कि विश्व गुरु बनने की राह में भारत अब वैश्विक हथियार के बाजार में भी एक भरोसेमंद निर्यातक बनकर उभरा है।
अभी हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान को शांति बनाए रखने की सलाह देते हुए कहा था कि भारत को इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध कड़े कदम उठाने चाहिए। भारत में इसका कई तरह से स्वागत हुआ और कई विश्लेषकों ने इसे इस संदर्भ में देखा कि भारत अपनी रणनीतिक और सैन्य ताकत के कारण अब विश्व मंच पर एक निर्णायक शक्ति बन चुका है। भारत के रक्षा निर्यात में ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। यह सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल भारत और रूस के संयुक्त उद्यम के रूप में विकसित हुई है। इसकी मारक क्षमता, गति और लक्ष्य पर सटीकता ने इसे विश्व की श्रेष्ठतम क्रूज मिसाइलों में स्थान दिलवाया है। ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर ब्रह्मोस द्वारा जिस सटीकता से निशाने लगाए गए, उसे पूरे विश्व ने देखा। ब्रह्मोस मात्र एक मिसाइल नहीं, भारत की रणनीतिक सोच और रक्षा तकनीकी क्षमता का परिचायक बन चुकी है। इससे जुड़े सौदे यह भी दर्शाते हैं कि भारत अब अपने रक्षा उत्पादों के साथ वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति को परिभाषित कर रहा है।
भारत के पास रक्षा निर्यात के लिए एक विविध उत्पाद श्रृंखला उपलब्ध है। भारत ने न केवल युद्धक विमानों, टैंकों और गोला-बारूद बल्कि अत्याधुनिक ड्रोन, सर्विलांस सिस्टम, एयर डिफेंस मिसाइलें, रडार, सोनार, इलेक्ट्
भारत का रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) जैसे संस्थान दशकों से भारतीय रक्षा जरूरतों की रीढ़ रहे हैं। अब इनकी भूमिका केवल घरेलू पूर्ति तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि ये संस्थान अब वैश्विक मानकों के अनुसार उत्पाद बना रहे हैं और उनका निर्यात कर रहे हैं। डीआरडीओ द्वारा विकसित कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम (कैट्स प्रणाली), स्वदेशी अर्ध-स्वायत्त युद्धक ड्रोन की एक आधुनिक मिसाल है। एचएएल द्वारा निर्मित तेजस, डॉर्नियर विमान, और एएलएच ध्रुव जैसे प्लेटफॉर्म निर्यात के लिए तैयार हैं। बीईएल की एंटी-ड्रोन तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और रडार प्रणाली आज कई देशों की जरूरतों को पूरा करने की स्थिति में है।
भारत अब केवल हथियार निर्यातक नहीं, बल्कि वैश्विक रणनीतिक साझेदार भी बनता जा रहा है। ये साझेदारियां केवल व्यापारिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामरिक संतुलन के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ रक्षा सहयोग चीन के विस्तारवादी रवैये को सामरिक जवाब देने का संकेत है। अफ्रीकी देशों को भारत ने कम लागत पर उच्च गुणवत्ता वाले सैन्य उपकरण उपलब्ध कराए हैं। दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों ने भी भारत के हेलीकॉप्टर और रडार सिस्टम में रुचि दिखाई है। भारत सरकार ने वर्ष 2024-25 तक रक्षा निर्यात को 5 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। आज भारत आत्मनिर्भरता की उस ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है जहां वह न केवल अपनी रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है, बल्कि अपने मित्र राष्ट्रों की भी सुरक्षा आवश्यकताओं में सहयोगी बन सकता है। भारत का रक्षा निर्यात बढ़ना केवल आर्थिक या तकनीकी उपलब्धि नहीं है।
रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किए गए हैं। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत स्थापित इन गलियारों का उद्देश्य देश को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना है। इनमें 8,658 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश हो चुका है और फरवरी 2025 तक 53,439 करोड़ रुपए के संभावित निवेश के साथ 253 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर हो चुके हैं। 24 मार्च, 2025 तक मेक इन इंडिया पहल के तहत 145 परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें 171 उद्योग स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के रक्षा गलियारे में 6 जिले (झांसी, अलीगढ़, लखनऊ, कानपुर,
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