भ्रष्ट जज को बचाने और देशभक्त जज को मिटाने पर लगे
भारतीय लोकतंत्र में मिसाल है जन-प्रतिनिधियों का दोहरापन
नोट वाले जज बच जाएं, यूसीसी के पक्षधर जज नप जाएं
शुभ-लाभ विमर्श
भारत के जन-प्रतिनिधियों का दोहरापन भारतीय लोकतंत्र के लिए अभूतपूर्व मिसाल है। इसी चारित्रिक प्रदूषण के कारण भारत की सियासत भीषण बदबूदार हो गई है। जनप्रतिनिधियों का यह दोहरापन दिखाता है कि राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार या न्यायपालिका के सुधार से कोई मतलब नहीं। बस बात-बेबात सरकार को घेरना, कोसना और अपना ओछा स्वार्थ साधना बर रह गया है। विपक्ष का असली एजेंडा सत्ता के खिलाफ हंगामा और वोट बैंक की घटिया राजनीति है।
भारतीय राजनीति में इन दिनों दोहरे मापदंडों का नंगा नृत्य चल रहा है। इस नंग-नृत्य के मुख्य किरदार हैं विपक्षी सांसद, जो अपनी सुविधा के हिसाब से मुद्दों को उघारते और छुपाते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव और जस्टिस यशवंत वर्मा के मामलों में विपक्ष का रवैया विपक्षी सांसदों के गंदे चरित्र को साफ-साफ उजागर करता है। दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे यशवंत वर्मा के घर से नोटों का जखीरा मिलने के बावजूद विपक्षी सांसद उस भ्रष्ट जज को बचाने में लगे हैं। वे हर कोशिश कर रहे हैं कि यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग न चलने पाए। दूसरी तरफ वही सांसद इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए अपना सतीत्व बेचने तक पर उतारू हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव की गलती क्या है? उनकी गलती यह है कि उन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ण में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने की आवश्यकता पर सार्वजनिक बयान दिया था। भ्रष्ट आचरण और स्पष्ट बयान... इन दो चारित्रिक विभाजक रेखाओं में से विपक्षी सांसद पूरी निर्लज्जता से भ्रष्ट आचरण के पक्ष में खड़े हैं।
विडंबना है कि भ्रष्ट जज यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों और सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की कमेटी की सिफारिश के बावजूद विपक्षी सांसदों ने शातिराना चुप्पी साध रखी है। जबकि जज शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग चलाने की पूरी उत्कट अभिलाषा का प्रदर्शन करते हुए विपक्षी सांसदों ने आनन-फानन में महाभियोग की नोटिस भी तैयार कर ली। इस नोटिस पर 54 राज्यसभा सांसदों ने हस्ताक्षर भी कर दिए। अब आप देखिए राष्ट्रभक्त जज शेखर यादव के विरोध में कौन-कौन खड़े हैं। नोटिस पर हस्ताक्षर करने वालों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और कुछ दलों के सांसद शामिल थे। इससे समझ में आ जाएगा कि इन विपक्षी सांसदों का मूल चरित्र क्या है। हस्ताक्षर करने वाले राज्यसभा सांसदों में स्वनामधन्य कपिल सिब्बल भी शामिल हैं। सिब्बल तो जज शेखर यादव की देशभक्ति से इतने आहत हैं कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर नोटिस खारिज होती है, तो वे इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। कपिल सिब्बल की यह बेचैनी, जल्दबाजी और बौखलाहट क्या दर्शाती है? आप समझ ही रहे हैं इसकी वजह।
विपक्षी सांसदों की यही व्याकुल जमात भ्रष्ट जज यशवंत वर्मा के महाभियोग मसले पर चुप है। जज वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में मार्च 2025 में आग लगी, और फायरफाइटर्स को वहां जले हुए नोटों का पहाड़ मिला। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की कमेटी ने 64 पेज की रिपोर्ट में साफ कहा कि ये नोट जस्टिस वर्मा के स्टोररूम में थे, जहां केवल उनके परिवार की पहुंच थी। कमेटी ने यह भी पाया कि जस्टिस वर्मा और उनके निजी सचिव ने फायर ऑफिसरों को इस मामले को दबाने के लिए कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने जज वर्मा की बर्खास्तगी और संसद में महाभियोग चलाने की सिफारिश की, लेकिन विपक्ष, खासकर कपिल सिब्बल इस मामले में जस्टिस वर्मा का बचाव कर रहे हैं। कपिल सिब्बल ने जस्टिस यशवंत वर्मा को देश के सबसे बेहतरीन जजों में से एक करार दिया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने की साजिश रच रही है। आप देख रहे हैं न यह दोगलापन। जब जज शेखर यादव का मामला आया, तो सिब्बल और उनके साथी सांसदों ने तुरंत महाभियोग की मांग की। लेकिन जस्टिस वर्मा के खिलाफ ठोस सबूत होने के बावजूद यह चरित्रहीन जमात बचाव कर रही है। इसे जनता की अदालत में सनद रखा जाना चाहे। विपक्ष का यह निकृष्ट प्रहसन जनता के सामने बेपर्द हो चुका है। सोशल मीडिया पर लोग इस दोहरे रवैये की कड़ी आलोचना कर रहे हैं। एक व्यक्ति ने लिखा, जब जज ईमानदारी से अपनी बात कहता है तो विपक्ष को उसके खिलाफ महाभियोग चाहिए। लेकिन जब जज के घर से नोटों का पहाड़ मिलता है, तो वही लोग उसे बेस्ट जज बताते हैं। यह कैसी ओछी राजनीति है। एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की, विपक्ष को भ्रष्टाचार से कोई दिक्कत नहीं, बस मुद्दा ऐसा चाहिए जो सरकार को घेर सके।
न्यायपालिका में सुधार और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई जैसे मुद्दे बेहद गंभीर हैं। लेकिन राजनीतिक दल इनका इस्तेमाल केवल अपनी सियासत चमकाने के लिए कर रहा है। जस्टिस शेखर यादव के मामले में उनकी व्याकुलता और जस्टिस वर्मा के मामले में चुप्पी यह साफ करती है कि उनका मकसद जनता की भलाई नहीं, बल्कि सत्ता के खिलाफ षडयंत्र करना और अपना एजेंडा चलाना है। भ्रष्टाचार और राष्ट्रद्रोह विपक्ष की प्राथमिकता में ही नहीं है।
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