यूपी में भाजपा अध्यक्ष का चुनाव बना टेढ़ी खीर
आलाकमान के हाथ में न तीर न कमान
लखनऊ, 10 जुलाई (एजेंसियां)। भारतीय जनता पार्टी न राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कर पा रही है और न उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष का चयन कर पा रही है। भाजपा इतनी अंतरमहत्वाकांक्षा में घिर गई है कि आलाकमान के हाथ न तीर रह गया है न कमान। आलाकमान खुद ही अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं में फंसा है। ऐसे में आम कार्यकर्ताओं में यह सवाल खड़ा होना लाजमी है कि भारतीय जनता पार्टी अभी केंद्र में और प्रदेश में बिना किसी कमान की है। चलिए अभी यूपी की बात करते हैं। भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष का चुनाव एक चुनौती बन गया है। यूपी में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती ओबीसी और दलित समुदाय को लेकर है। यही वजह है कि भाजपा इतनी उहापोह में फंसी है कि वह कभी ओबीसी को अध्यक्ष बनाना चाहती है तो कभी दलित को। ओबीसी वोट साधने का जुगाड़ सोचती है तो दलित वोट का मसला सामने मुंह बाए खड़ा हो जाता है। ऐसे में ब्राह्मण दो के झगड़े का फायदा उठाने के चक्कर पार्टी नेतृत्व के पीछे हाथ धोकर पड़ा है।
जबकि उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखें तो पार्टी का किसी ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाना मुश्किल है, क्योंकि जिस तरह की राजनीतिक पिच पर अभी तक सपा नेता अखिलेश यादव ने बैटिंग की और कर रहे हैं, उसे देखकर नहीं लगता कि भाजपा किसी ब्राह्मण चेहरे को सामने लाकर जोखिम मोल लेगी, वह भी तब, जब यूपी में 2017 में विधानसभा चुनाव सामने है। भाजपा हाईकमान यह भी जानता है कि सवर्ण मतदाता उनका परंपरागत वोटर है, तो वो पार्टी से हटकर कहीं नहीं जाएगा। ऐसे में ओबीसी वोट को साधकर ही यूपी की वैतरणी पार की जा सकती है।
भाजपा की रणनीति इस पर भी काम कर रही है कि उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में उम्मीद से कम सीटें क्यों मिली और सबसे ज्यादा इसका फायदा समाजवादी पार्टी को हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में अपने दम पर 62 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन इस बार पार्टी 33 सीटें ही जीत सकी है। इन सभी बिंदुओं पर गौर करने के बाद कहा जा सकता है कि भाजपा यूपी में किसी ओबीसी नेता को ही प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे सकती है, जिससे अखिलेश के पीडीए की काट को भोथरा किया जा सके।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में देरी की एक वजह इस राज्य के जातीय और क्षेत्रीय समीकरण को भी माना जा रहा है। भाजपा किसी ऐसे चेहरे की तलाश में जो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की काट बन सके। वहीं एक एंगल इटावा में कथावाचक प्रकरण के बाद ब्राह्मणों की नाराजगी से भी जुड़ गया है। भाजपा इन्हें साथ लाने के लिए किसी ब्राह्मण चेहरे पर भी दांव लगा सकती है। लेकिन इसकी उम्मीद कम है। कुल मिलाकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ अब किसी पिछड़े या ब्राह्मण चेहरे पर आकर अटक गई। इस रेस में कुछ नाम भी सामने आ रहे हैं। ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पूर्व डिप्टी सीएम और राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा का नाम सबसे आगे चल रहा है। जबकि पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी, प्रदेश महामंत्री गोविंद नारायण शुक्ला और पूर्व सांसद सुब्रत पाठक को लेकर भी चर्चाएं तेज हैं। वहीं ओबीसी चेहरों में कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, धर्मपाल सिंह और साध्वी निरंजन ज्योति को भी मौका मिल सकता है। दलित चेहरे में पूर्व केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर का नाम सबसे आगे चल रहा है। यूपी भाजपा के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कार्यकाल जनवरी 2023 में ही समाप्त हो गया था। इसके बाद से भाजपा नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश नहीं कर पा रही है। भाजपा नए चेहरे पर दांव लगाना चाहती है। अभी तक किसी एक नाम पर मुहर नहीं लग पाई है।
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