रिश्तों में जमी बर्फ पिघलाने की दोतरफा कोशिश
गलवान भिड़ंत के बाद पहली बार चीन जाएंगे जयशंकर
जयशंकर चीन में एससीओ समिट में हिस्सा लेंगे
नई दिल्ली, 12 जुलाई (एजेंसियां)। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर गलवान में भारत चीन सैन्य झड़प के बाद पहली बार चीन की यात्रा करने वाले हैं। यह पिछले पांच साल में उनकी पहली चीन यात्रा है, जिसे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। एस जयशंकर चीन में 14-15 जुलाई को एससीओ समिट में हिस्सा लेंगे और सदस्य देशों के साथ कई अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
विदेश मंत्री एस जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक में भाग लेने के लिए तियानजिन जाने से पहले बीजिंग में अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे। जानकारी के मुताबिक, दोनों की ये मुलाकात निजी स्तर पर होगी। इसका मकसद दोनों पक्षों के बीच तनावपूर्ण संबंधों को कम करना बताया जा रहा है, और आपसी सहयोग बढ़ाना है। एससीओ अहम इसलिए है क्योंकि ये चीन के नेतृत्व वाला एक बहुपक्षीय समूह है जिसमें भारत और पाकिस्तान सहित नौ स्थायी सदस्य शामिल हैं। जानकारी के मुताबिक दोनों ही विदेश मंत्रियों के बीच कई मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद है, जिनमें भारत को दुर्लभ मृदा की आपूर्ति, दलाई लामा का उत्तराधिकार, हाल ही में भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की बहाली अहम मुद्दा होंगी।
विदेश मंत्री एस जयशंकर की यह यात्रा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के कुछ ही हफ्तों बाद हो रही है। एससीओ एक समूह है जिसमें चीन मुख्य भूमिका निभाता है, और फिलहाल वह इस संगठन का अध्यक्ष भी है। पहलगाम हमले की निंदा न करने को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ज्वाइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर नहीं किए, जिसके चलते एक बड़ा टकराव हो गया था।
उल्लेखनीय है कि पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध मई 2020 में शुरू हुआ था और उस वर्ष जून में गलवान घाटी में हुई झड़प की वजह से दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंधों में गंभीर तनाव पैदा हो गया था। 21 अक्टूबर को अंतिम रूप दिए गए एक समझौते के तहत डेमचोक और देपसांग स्थित टकराव वाले दो अंतिम स्थानों से सैनिकों को वापस बुलाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद गतिरोध प्रभावी रूप से समाप्त हो गया है लेकिन अभी रिश्तों में जमी बर्फ पूरी तरह नहीं पिघली है, जिसके चलते दोनों देशों के नेता इसे पटरी पर लाने के लिए चर्चा कर सकते हैं।
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