चारणगान के आगे स्वाभिमान कुर्बान
सत्ता दंभ की लाइलाज बीमारी से ग्रस्त है भाजपा का शीर्ष नेतृत्व
भाजपा को नहीं चाहिए टी. राजा सिंह जैसे प्रतिबद्ध नेता
तेलंगाना में पार्टी की साख धूल में मिला रहे राग-दरबारी
शुभ-लाभ समीक्षा
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता सत्ता दंभ की लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं और राग-दरबारियों की लंबी कतार रोगाणुओं की तरह संगठन को खाने में लगी है। सत्ता दंभ में दमदमाया सत्ता शीर्ष राग-दरबारियों की चुगली पर उपराष्ट्रपति तक को अपमानित करने से बाज नहीं आया तो हैदराबाद के गोशामहल विधानसभा सीट के इस्तीफाशुदा भाजपा विधायक टी. राजा सिंह किस खेत की मूली हैं! क्षेत्रीय स्तर पर जी किशन रेड्डी जैसे राग-दरबारी की चुगली पर भाजपा का दंभी केंद्रीय नेतृत्व टी राजा सिंह पर कुल्हाड़ी चलाने से नहीं चूका। राष्ट्रीय स्तर पर जेपी नड्डा जैसे रागदरबारियों की चुगली पर भाजपा के दंभी केंद्रीय नेतृत्व ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के साथ ऐसा ही बेजा सलूक किया। शीर्ष नेतृत्व के इन दोनों दंभ-आखेटों में एक समानता है। जगदीप धनखड़ और टी राजा सिंह स्वाभिमानी, बेबाक और संगठन एवं सिद्धांतों के प्रति समर्पित व्यक्तित्व हैं। यानि, भाजपा नेतृत्व को स्वाभिमानी, बेबाक और संगठन एवं सिद्धांतों के प्रति समर्पित व्यक्तित्वों की कोई जरूरत नहीं है। उन्हें केवल एक-दो नेतृत्वकारी चेहरों के प्रति वफादार लोगों की जरूरत है।
शुभ-लाभ की यह समीक्षा अभी तेलंगाना को लेकर केंद्रित है। तेलंगाना में भाजपा के मजबूत होने की पूरी संभावना थी। लेकिन चुगलखोरी और चाटुकारिता ने तेलंगाना में भाजपा की जड़ नहीं जमने दी। जिन नेताओं की वजह से प्रदेश में पार्टी मजबूत होने की तरफ बढ़ रही थी, उन नेताओं को भाजपा नेतृत्व ने हाशिए पर धकेल दिया या उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, दोनों तेलंगाना आते हैं, भाषण देते हैं, चाटुकारों की सुनते हैं और चले जाते हैं। क्रमशः भारतीय जनता पार्टी तेलंगाना में कमजोर होती चली गई।
मंगलहाट से तेलुगु देशम पार्टी के पार्षद के रूप में राजनीतिक यात्रा शुरु करने वाले टी राजा सिंह ने भाजपा प्रत्याशी के तौर पर 2014 में हैदराबाद के गोशामहल से जीत दर्ज की। देखते ही देखते टी राजा सिंह तेलंगाना में हिंदू समुदाय के प्रतिनिधि नेता के रूप में उभर कर सामने आ गए। उनकी यह छवि तेलंगाना के भाजपा नेताओं की आंख में किरकिरी बन कर चुभने लगी, जो केवल चाटुकारिता और चुगलखोरी के बूते राजनीति में ऊपर उठने की जुगाड़ में लगे थे। उन्हें यह समझ में आने लगा कि राजा सिंह अपने प्रभाव और भारी जनसमर्थन से पार्टी के लिए ऐसेट बनते जा रहे हैं। बस, प्रदेश के भाजपा नेता राजा सिंह के पर काटने के कुचक्र में लग गए। इन नेताओं में किशन रेड्डी प्रमुख हैं। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ने भी तेलंगाना में प्रखर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की भावना जाग्रत करने में लगे टी राजा सिंह का साथ नहीं दिया और हिंदू देवी-देवताओं पर फूहड़ टिप्पणी करने वाले टुच्चे हास्य कलाकार मुनव्वर फारूकी के मसले पर बयान देने के कारण पार्टी नेतृत्व ने टी राजा सिंह को निलंबित कर दिया। हिंदुओं के हित की राजनीतिक रोटी सेंकने वाली भाजपा हमेशा हिंदुओं के स्वाभिमान पर संकट के समय नपुंसकवादी रवैया अख्तियार करती रही है, चाहे वह देवी-देवताओं को खुली गालियां देने वाले कट्टरपंथियों के खिलाफ बेबाकी से बोलने वाली नूपुर शर्मा को पार्टी से निष्कासित करने का मामला रहा हो या टी राजा सिंह को त्वरित गति से निलंबित किए जाने का मामला। प्रत्येक संवेदनशील मौके पर भाजपा नेतृत्व ने हिंदुत्व विरोधी चरित्र का प्रदर्शन किया है।
राजनीतिक नजरिए से भी देखें तो स्पष्ट दिखता है कि किस तरह किशन रेड्डी जैसे नेताओं ने टी राजा सिंह को अपना निशाना बनाया। एमएलसी से लेकर विधायक तक के चुनाव में टी राजा सिंह के नजदीकी दावेदारों को न टिकट दिया गया और न पार्टी में कोई पद दिया गया। भाजपा नेता जिट्टा बालकृष्ण रेड्डी के निलंबन का प्रकरण याद करिए। बालकृष्ण रेड्डी को भी इसी तरह निपटा दिया गया। बालकृष्ण ने साफ-साफ कहा था कि जी किशन रेड्डी ने पार्टी की मजबूती के लिए कुछ नहीं किया केवल खुद को मजबूत करने का काम किया। बालकृष्ण ने कहा था कि जी किशन रेड्डी अपने सामने किसी भी नेता को आगे नहीं बढ़ने देते। विडंबना यह है कि तेलंगाना प्रदेश में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की शिकायत के बावजूद एटाला राजेंद्र के खिलाफ पार्टी नेतृत्व ने कोई कार्रवाई नहीं की। पार्टी के केंद्रीय नेताओं के खिलाफ खुलेआम वक्तव्य देने वाले एम रघुनंदन राव, ए चंद्रशेखर और पूर्व सांसद रविंदर नाइक जैसे नेताओं के खिलाफ भी पार्टी नेतृत्व ने कोई कार्रवाई नहीं की, क्योंकि जी किशन रेड्डी जैसे नेता उनके साथ खड़े थे।
तेलंगाना के प्रखर भाजपा नेता बंडी संजय कुमार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद से हटाकर भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश में भाजपा को कमजोर करने का काम किया। विधानसभा चुनाव में उसका नतीजा भी दिख गया। जी किशन रेड्डी को प्रदेश अध्यक्ष बना कर भाजपा ने जन आक्रोश का परिणाम देख लिया। बंडी संजय ने पूरे तेलंगाना प्रदेश की पद यात्रा करके भाजपा के प्रति लोगों में उत्साह पैदा किया था, उस अथक प्रयास को धूल में मिलाने में भाजपा नेतृत्व ने एक मिनट भी देरी नहीं की। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने बंडी संजय को तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष पद से हटा कर उनकी जगह जी किशन रेड्डी को अध्यक्ष बना कर पूरी पार्टी को हास्य और मजाक का विषय बना दिया। सत्ता दंभ में पगे भाजपा नेताओं ने अविभाजित आंध्र प्रदेश के काल में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए जी किशन रेड्डी क्या किया था, इसका भी स्मरण नहीं रख पाए। किशन रेड्डी भाजपा को अपने अंबरपेट निर्वाचन क्षेत्र से आगे नहीं ले जा पाए। भाजपा हैदराबाद से आगे नहीं बढ़ पाई।
वर्ष 2020 में तेलंगाना भाजपा के अध्यक्ष बने बंडी संजय के कार्यकाल में भाजपा की स्थिति में सुधार हुआ। पार्टी हैदराबाद से आगे बढ़ी और जीएचएमसी चुनावों, दुब्बक और हुजूराबाद विधानसभा उपचुनावों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। बंडी संजय तेलंगाना में मुख्य विपक्ष के रूप में कांग्रेस को ध्वस्त करने में कामयाब रहे और भाजपा बीआरएस के एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरी। लेकिन बंडी संजय का इस तरह राजनीतिक फलक पर उभरना चाटुकार जमात को अच्छा नहीं लगा। जी किशन रेड्डी ने बंडी संजय के खिलाफ एटाला राजेंद्र और कोमाटिरेड्डी राजगोपाल रेड्डी जैसे नेताओं को लगाया जो बीआरएस और कांग्रेस से भाजपा में आए थे। कमाल है भाजपा नेतृत्व, जिसने बाहरी चुगलखोरों की सुनी और अपने प्रतिबद्ध नेता की बात नहीं सुनी। केंद्रीय नेतृत्व ने बंडी संजय को हाशिए पर धकेल कर तेलंगाना में पूरी पार्टी को ही हाशिए पर धकेलने का काम कर दिया।
इस बार भी भाजपा नेतृत्व ने एन रामचंद्र राव को तेलंगाना प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बना कर फिर से वही गलती दोहराई। हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला आत्महत्या कांड के अभियुक्त रहे एन रामचंद्र राव को अध्यक्ष बना कर भाजपा नेतृत्व ने नए सिरे से विवाद अपने सिर मोल ले लिया। जबकि पार्टी के तमाम नेता और विधायक रामचंद्र राव को अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। भाजपा विधायक टी राजा सिंह इस मामले में अगुवाई कर रहे थे। लेकिन चाटुकार प्रेमी भाजपा नेतृत्व ने विरोध करने वाले नेताओं की एक नहीं सुनी। इस स्थिति में टी राजा सिंह ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को पत्र लिख कर सारी स्थितियों की जानकारी दी, लेकिन टी राजा सिंह का पत्र डस्टबिन में फेंक दिया गया और एन रामचंद्र राव को अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी। स्वाभाविक है कि अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए टी राजा सिंह ने भाजपा नेतृत्व के मुंह पर अपना इस्तीफे का करारा तमाचा जड़ दिया। ठीक वैसे ही जैसे स्वाभिमानी जगदीप धनखड़ ने इस्तीफे का तमाचा दे मारा, जिसकी अनुगूंज पूरे देश में सुनाई दे रही है...
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