प्राचीन शिव मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया में युद्ध
लगातार बढ़ रहा दोनों देशों का संघर्ष, अब तक 14 की मौत
बैंकॉक, 25 जुलाई (एजेंसियां)। 11वीं सदी के प्रीह विहार शिव मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच जारी संघर्ष लगातार बढ़ रहा है और शुक्रवार को भी दोनों देशों के बीच सीमा पर गोलीबारी हुई। इस संघर्ष में अभी तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और कई घायल हैं। संघर्ष के चलते एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। दोनों तरफ से हमले के लिए गोलीबारी, आर्टिलरी और मिसाइलों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
शुक्रवार को दोनों ही देशों की सेनाओं ने सीमा पर सैनिकों के अतिरिक्त रेजीमेंट्स भेजे हैं। गुरुवार को कंबोडिया की तरफ से थाईलैंड के सीमा पर स्थित गांवों पर हमला किया गया। इसके जवाब में थाईलैंड की सेना ने एफ-16 फाइटर जेट से कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर हमले किए। हमलों के बाद हिंसा प्रभावित इलाकों से आम लोगों ने पलायन शुरू कर दिया है। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद एक सदी से भी ज्यादा पुराना है। साल 1907 में जब कंबोडिया फ्रांस साम्राज्य के अंतर्गत आता था, तब सियाम और कंबोडिया के बीच सीमाएं तय की गई थीं। हालांकि, आगे चलकर 817 किमी लंबी इस सीमा को लेकर विवाद शुरू हो गया। खासकर कुछ ऐतिहासिक मंदिरों, खासकर 11वीं सदी के प्रीह विहार मंदिर को लेकर दोनों देशों में यह विवाद खासा गहरा गया।
दोनों देश सीमा विवाद और मंदिरों पर अधिकार के मुद्दे को 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस- आईसीजे) ले गए। आईसीजे ने कंबोडिया के पक्ष में फैसला दिया। थाईलैंड ने फैसले के बाद इस मंदिर पर अधिकार छोड़ दिया। लेकिन मंदिर के आसपास के इलाकों को लेकर दोनों देशों में विवाद बना रहा। विवाद के चलते साल 2008 में दोनों देशों में संघर्ष हुआ, जिसमें दोनों तरफ से 20 लोगों की मौत हुई और हजारों लोगों को बेघर होना पड़ा था। इसके बाद कंबोडिया फिर से आईसीजे पहुंचा और आईसीजे ने फिर से कंबोडिया के पक्ष में फैसला सुनाया। इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया और दोनों देशों का व्यापार भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। इस पूरे घटनाक्रम के बीच कंबोडिया ने अपने यहां थाईलैंड की फिल्में और टीवी शो प्रतिबंधित कर दिए। साथ ही पड़ोसी देश से ईंधन, फल और सब्जियों का आयात बंद कर दिया। इतना ही नहीं कंबोडिया ने इंटरनेट और ऊर्जा क्षेत्र में भी थाईलैंड का बहिष्कार किया। गुरुवार को तनाव चरम पर पहुंच गया और टकराव शुरू हो गया। दोनों तरफ से गोलीबारी के आरोप लगे। शुक्रवार को यह संघर्ष और गंभीर होता दिख रहा है।
हजारों साल पुराने शिव मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच में जंग छिड़ चुकी है, रॉकेट दागे जा रहे हैं, जंग में फाइटर जैट भी कूद चुके हैं। माना जा रहा है कि इस युद्ध में चीन भी एक अहम भूमिका निभा सकता है। यहां भी उसके दोनों देशों के साथ रिश्ते अच्छे हैं, लेकिन क्योंकि थाईलैंड के साथ आर्थिक साझेदारी ज्यादा चल रही है, ऐसे में माना जा रहा है कि दबाव कंबोडिया पर बनाया जा सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारत का क्या स्टैंड रहने वाला है? भारत थाईलैंड का समर्थन करेगा या वो कंबोडिया के साथ जाएगा?
भारत हमेशा ऐसे मामले में बैलेंस करने की कोशिश करता है। इसका भी अपना कारण है। बात चाहे थाईलैंड की हो या फिर कंबोडिया की, भारत के दोनों के साथ रिश्ते काफी अच्छे हैं। दोनों देशों के साथ अलग-अल क्षेत्रों में कई सालों से सहयोग चल रहा है। ऐसे में किसी एक देश को समर्थन कर भारत दूसरे के साथ रिश्ते बिगाड़ने का रिस्क नहीं ले सकता। भारत के थाईलैंड के साथ रिश्ते काफी मजबूत हैं। दोनों ही देश इस समय मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक) का हिस्सा हैं। एक्ट ईस्ट पॉलिसी की वजह से भी दोनों देशों में मजबूत साझेदारी है। भारत और थाईलैंड समय-समय पर ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज भी करते हैं। दोनों ही देशों की नौसेना भी समय-समय पर संयुक्त अभ्यास करती रहती है।
व्यापार के क्षेत्र में भारत और थाईलैंड के बीच 18 बिलियन डॉलर का कारोबार होता है। इंडो-आसियान फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के जरिए भारत थाईलैंड में व्यापार को और ज्यादा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इसके ऊपर इंडिया-म्यांमार-थाईलैंड ट्राइलेट्रल हाई-वे का जिक्र करना भी जरूरी है, इस एक हाई-वे की वजह से भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच कनेक्टिविटी काफी मजबूत हो जाएगी।
दूसरी तरफ कंबोडिया थाईलैंड की तुलना में छोटा और कमजोर देश है। इसके साथ भी भारत के सांस्कृतिक, व्यापारिक रिश्ते हैं। भारत पिछले कई दशकों से कंबोडिया की आईटी, इंफ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन के क्षेत्र में मदद कर रहा है। इसके ऊपर कई मंदिरों का जीर्णोद्धार भी भारत की मदद से हुआ है। भारत तो पिछले कई सालों से कंबोडिया की सेना को भी ट्रेन कर रहा है, वहां भी बड़े स्तर पर मदद दी जा रही है। बात चाहे काउंटर टेररिज्म ट्रेनिंग की हो या फिर कैपेसिटी बिल्डिंग की, भारत ने हमेशा कंबोडिया को सहारा दिया है। भारत और कंबोडिया में 300-400 मिलियन डॉलर का कारोबार है। यहां भी भारत अब आने वाले समय में एग्रीकल्चर और टेक्सटाइल सेक्टर में भी अपनी साझेदारी बढ़ाने पर विचार कर रहा है। इसके ऊपर कुछ समय पहले कंबोडिया मेकॉन्ग-गंगा कोऑपरेशन फ्रेमवर्क का भी हिस्सा भी बन चुका है, इससे भारत के साथ सांस्कृतिक, पर्यटन और शैक्षणिक रिश्ते अच्छे हुए हैं।
यहां पर एक समझने वाली बात यह भी है कि भारत एक्ट ईस्ट पॉलिसी में काफी मानता है, आसियान देशों के साथ उसके रिश्ते अच्छे रहे, इस बात को प्राथमिकता दी जाती है। मोदी सरकार के आने के बाद तो एक्ट ईस्ट पॉलिसी को और ज्यादा बल मिला है। यहां भी चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भी आसियान देशों के साथ रिश्ते मजबूत करने की कवायद होती है। इसी वजह से जानकार मानते हैं कि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच में छिड़ी जंग न सिर्फ आसियान देशों के बीच जारी आपसी साझेदारी को झटका देगा बल्कि कहीं न कहीं भारत की रणनीति को भी नुकसान पहुंचाएगा।
इसी वजह से उम्मीद है कि भारत दोनों देशों के बीच शांति स्थापना की पूरी कोशिश करेगा। चीन की दुष्ट-नीति इसमें आड़े आ सकती है। चीन की रणनीति रही है कमजोर देशों को ज्यादा से ज्यादा कर्ज देकर उन्हें कर्ज के जाल में फंसा लेना। बात चाहे नेपाल की हो या फिर श्रीलंका की, वह ऐसा कर चुका है। बांग्लादेश के साथ भी ऐसा ही कर रहा है। चीन भारत को आगे बढ़ने और विस्तार करने का मौका नहीं देना चाहता। इसी वजह से इस युद्ध में भी अगर चीन कमजोर कंबोडिया का साथ देता है और भारत खुलकर थाईलैंड के समर्थन में उतर जाता है, तो यह हिंदुस्तान की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिए झटका होगा। कंबोडिया अगर चीन के और करीब गया तो उस स्थिति में भी चिंता भारत की बढ़ने वाली है।
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