सरकारी दफ्तर में इस्लामी ड्रेस-कोड लागू

 बांग्लादेश में सरकारी आदेश के जरिए शरिया कानून का ट्रायल

 सरकारी दफ्तर में इस्लामी ड्रेस-कोड लागू

यूनुस की आलोचना करने वाले कर्मचारी बर्खास्त किए जाएंगे

दो विवादास्पद आदेशों पर प्रगतिशील साधे हैं शातिराना चुप्पी

सूफी यायावर

बांग्लादेश में लोकतंत्र अब आखिरी सांसें ले रहा है। देश में आम चुनाव कराने की बात तो दूर है, अब वहां शरिया शासन लागू करने की शुरुआत हो चुकी है। सरकारी संस्थाओं में शरिया कानून के तहत ड्रेस-कोड लागू किया जा रहा है। इसके लिए बाकायदा सरकारी आदेश जारी किए जा रहे हैं। अब सरकार ने अध्यादेश जारी कर यह ताकीद की है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की किसी ने भी आलोचना की तो उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा, साथ ही उसे सख्त कानूनी कार्रवाइयों का भी सामना करना पड़ेगा।

चोरमोनाई के प्रभावशाली पीर और अति-इस्लामी समूह इस्लामी शाशनतोंत्रो आंदोलन (इस्लामी शासन की स्थापना का आंदोलन) के प्रमुख मुफ्ती सैयद मोहम्मद रजाउल करीम उर्फ मुफ्ती फौजुल करीम की बांग्लादेश में शरिया-आधारित तालिबान शैली के शासन की मांग के बहाने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शरिया शासन के तौर-तरीके अख्तियार करने शुरू कर दिए हैं। बांग्लादेश में कट्टरपंथी एजेंडे के संस्थागत कार्यान्वयन के कई उदाहरण सामने आ रहे रहे हैं। मुफ्ती की चौंकाने वाली मांग और उस पर बांग्लादेश सरकार के अंधानुकरण की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा होनी चाहिए थीलेकिन निंदा के बजाय चुप्पी साध कर मोहम्मद यूनुस को बढ़ावा दिया जा रहा है। तथाकथित प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और बुद्धिजीवी जमातें भी शातिराना चुप्पी साधे बैठी हैं।

21 जुलाई को बांग्लादेश की शीर्ष संस्था केंद्रीय वित्तीय प्राधिकरणबांग्लादेश बैंक के मानव संसाधन विभाग ने अपने कर्मचारियोंविशेषकर महिलाओं के लिए विशिष्ट इस्लामी ड्रेस कोड अनिवार्य करते हुए औपचारिक निर्देश जारी किया है। नए नियमों के अनुसार महिला कर्मचारियों को साड़ी या सलवार-कमीज पहनना होगाअपने सिर को स्कार्फ या हिजाब से ढंकना होगा और छोटी बाजू या कम लंबाई के कपड़ेलेगिंग या किसी भी प्रकार के पश्चिमी परिधान से परहेज करना होगा। इस आदेश-परिपत्र में महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। स्पष्ट है कि बांग्लादेश में इस्लामिक परिधान लागू करने की भूमिका स्पष्ट रूप से शुरू कर दी गई है।

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सरकारी आदेश में पुरुष कर्मचारियों के लिए जींस या गाबार्डिन ट्राउजर पहनने से मना किया गया है और केवल लंबी या आधी बाजू की औपचारिक शर्ट और उचित औपचारिक जूते पहनने की सलाह दी गई है। बांग्लादेश बैंक के कार्यकारी निदेशक और प्रवक्ता आरिफ हुसैन खान ने इस आदेश को शिष्टाचार बहाली के लिए आवश्यक ड्रेस कोड बताया। जबकि इस बहाने के निहितार्थ आसानी से समझे जा सकते हैं। निर्देश में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई है कि इसका पालन न करने पर सख्त अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी। शिष्टाचार बहाली के आदेश की अशिष्टता से बांग्लादेश सरकार के इरादे स्पष्ट हैं। बांग्लादेश महिला परिषद की अध्यक्ष फौजाया मोस्लेम ने इस निर्देश पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, मैंने पहले कभी किसी सरकारी संस्थान में ऐसा निर्देश नहीं देखा। यह हमारे सांस्कृतिक परिवेश और सामाजिक मानदंडों को नया रूप देने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है। यह सिर्फ कपड़ों के बारे में नहीं है, यह इस्लामिक-दृष्टि थोपने के बारे में है। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रथाओं को संस्थागत बनाने से महिलाओं और अल्पसंख्यकों के हाशिए पर जाने और बांग्लादेश को धार्मिक अधिनायकवाद के करीब ले जाने का खतरा है। बांग्लादेश बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ड्रेस कोड संबंधी निर्देश तो बस एक छोटी सी झलक है। पिछले कई महीनों सेवरिष्ठ अधिकारी अपने मातहतों को कार्यालय समय के दौरान सामूहिक नमाज अदा करनेदाढ़ी बढ़ाने और अरब शैली के परिधान पहनने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रहे हैं। गैर-मुस्लिम और धर्मनिरपेक्ष कर्मचारियोंखासकर धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों कोअस्पष्ट बहानों के तहत चुपचाप प्रमुख पदों से हटाया जा रहा है या पदोन्नति से वंचित किया जा रहा है।

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उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में एक धीमा लेकिन खतरनाक बदलाव किया जा रहा हैजो सार्वजनिक संस्थानों को धार्मिक रूप से अनुरूपतावादी स्थानों में बदल रहा है और प्रशासनिक आड़ में असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहा है। यह घटनाक्रम अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के संरक्षण और इशारे पर हो रहे हैं। उक्त अधिकारी ने कहा कि यूनुस को पश्चिमी तथाकथित उदारवादी पूंजीपति वर्ग का संरक्षण मिल रहा है। इसी पश्चिमी ताकत के सहारे बांग्लादेश में यूनुस का अवैध शासन चल रहा है और एक निरंकुश, विवादास्पदमतदाता-विहीन व्यक्ति इस देश को इस्लामिक गणराज्य बनाने पर तुला है।

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यूनुस मुफ्ती करीम जैसे कट्टरपंथी इस्लामी नेताओं और अंतरराष्ट्रीय इस्लामी नेटवर्क के साथ मिलकर बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष शासन को एक इस्लामिक शासन में बदलने के लिए काम कर रहा है। इस घटनाक्रम पर अंतरराष्ट्रीय समुदायखासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ की लगातार चुप्पी अत्यंत चिंताजनक और संदेहास्पद है। विडंबना यह अपने धर्मनिरपेक्ष संविधान पर गर्व करने वाला अमेरिका तालिबान के कठोर ड्रेस-कोड पर चिंता व्यक्त करता हैलेकिन बांग्लादेश में इसी तरह का चलन अख्तियार करने पर खामोश रहता है। अमेरिका का यह दोगलापन बांग्लादेश के लोगों को चुभ रहा है। अमेरिका की यह चुप्पी आकस्मिक नहीं है। बाइडेन प्रशासनबिल एवं हिलेरी क्लिंटनबराक ओबामा और जॉर्ज सोरोस जैसे वैश्विकतावादी अभिजात वर्ग के साथ यूनुस का गठजोड़ कुछ अलग ही गुल खिला रहा है।

बांग्लादेश एक खतरनाक दोराहे पर खड़ा है। केंद्रीय बैंक द्वारा तालिबान-प्रेरित ड्रेस कोड अपनानेअल्पसंख्यकों को दरकिनार किए जाने और सरकारी संस्थाओं में सूक्ष्म रूप से कट्टरपंथीकरण के साथएक धर्मनिरपेक्षसमावेशी और लोकतांत्रिक बांग्लादेश का सपना तेजी से धूमिल हो रहा है। यह सिर्फ एक घरेलू मुद्दा नहीं है, इसके गंभीर क्षेत्रीय और वैश्विक निहितार्थ हैं। शरिया-शासित बांग्लादेश कट्टरपंथ के लिए एक उपजाऊ जमीन साबित होगाजो पड़ोसी भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए भीषण खतरा पैदा करेगासाथ ही चरमपंथ से निपटने के वैश्विक प्रयासों को अस्थिर करेगा।

बांग्लादेश सरकार ने अध्यादेश जारी कर यह भी कहा है कि मोहम्मद यूनुस के खिलाफ बोलने वाले सरकारी कर्मचारी को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। नए अध्यादेश के तहतअगर कोई सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर जाएगा तब भी उसे नौकरी से जबरन निकाल बाहर किया जाएगा। बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार ने बुधवार 23 जुलाई 2025 को इस बारे में एक नया अध्यादेश जारी किया है। इस अध्यादेश के जरिए 2018 के सरकारी सेवा कानून में संशोधन के रूप में यह बदलाव किया गया है। मोहम्मद यूनुस की सरकार अब सरकारी कर्मचारियों को कुछ बोलने या विरोध करने से रोक रही है। यह बांग्लादेश में लोकतंत्र के कमजोर होने और सख्त शरिया कानून के लागू होने का संकेत है।

बांग्लादेश के माध्यमिक और उच्च शिक्षा निदेशालय ने इस साल 2 जनवरी को एक नोटिस जारी किया था। इसमें साफ कहा गया था मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के खिलाफ गलत खबरें फैलाने और दुष्प्रचार करने वाले छात्रों और शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। देखने में यह नोटिस गलत सूचना रोकने का कदम लग सकता हैलेकिन असल में यह आलोचनाओं को दबाने और छात्रों को डराने का तरीका है।

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