राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं रोहिंग्या घुसपैठिए : केंद्र
रोहिंग्या शरणार्थी हैं या घुसपैठिए, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
नई दिल्ली, 01 अगस्त (एजेंसियां)। भारत में रोहिंग्या समुदाय के लोगों की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम सुनवाई शुरू हुई है। म्यांमार से आए रोहिंग्या, जो दशकों से हिंसा और उत्पीड़न से बचने के लिए भारत में शरण लिए हुए हैं, अब एक बड़े सवाल के केंद्र में है कि क्या वे शरणार्थी हैं, जिन्हें सुरक्षा और अधिकार मिलना चाहिए या वे अवैध घुसपैठिए हैं, जिन्हें देश से बाहर किया जाना चाहिए। गुरुवार 31 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में चार बड़े सवालों को चिह्नित किया, जिनका जवाब उनकी नियति तय करेगा।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने सुनवाई के दौरान इस मामले को व्यवस्थित करने के लिए चार मुख्य सवालों पर ध्यान केंद्रित किया। पहला और सबसे बड़ा सवाल है कि क्या रोहिंग्या को शरणार्थी माना जाए या अवैध प्रवासी? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह तय होने के बाद ही बाकी मुद्दों पर विचार होगा। अगर वे शरणार्थी हैं, तो दूसरा सवाल है कि उन्हें भारत में कौन से अधिकार और सुरक्षा मिलनी चाहिए। तीसरा, अगर वे अवैध प्रवासी साबित हुए, तो क्या केंद्र और राज्य सरकारें उन्हें कानून के तहत वापस भेजने के लिए बाध्य हैं? और चौथा, अगर वे अवैध हैं, तो क्या उन्हें अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखा जा सकता है, या उन्हें कुछ शर्तों के साथ रिहा करने का अधिकार है?
रोहिंग्या म्यांमार के राखाइन प्रांत से ताल्लुक रखने वाला एक अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय है, जिसे वहां भारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। मानवाधिकार संगठन उन्हें दुनिया के सबसे सताए गए समुदायों में से एक मानते हैं। भारत में करीब 40,000 रोहिंग्या बिना दस्तावेजों के रह रहे हैं। 14,000 रोहिंग्या संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग के साथ पंजीकृत हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि रोहिंग्या को गैर-वापसी (नॉन-रिफाउलमेंट) के सिद्धांत के तहत म्यांमार नहीं भेजा जा सकता, जहां उनकी जान को खतरा है।
सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि जो रोहिंग्या हिरासत में नहीं हैं और शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, क्या उन्हें बुनियादी सुविधाएं जैसे पीने का पानी, स्वच्छता और शिक्षा मिल रही है? वकीलों ने बताया कि कई शिविरों में हालात बदतर हैं, जहां भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है। केंद्र सरकार का कहना है कि भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। इसलिए रोहिंग्या को शरणार्थी मानने की बाध्यता नहीं है। सरकार उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानती है और विदेशी अधिनियम 1946 के तहत कार्रवाई की बात करती है।
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