भागवत और योगी को गिरफ्तार करने का दिया था आदेश

मालेगांव के बहाने कांग्रेस ने रचा था भगवा-आतंकवाद का कुचक्र

भागवत और योगी को गिरफ्तार करने का दिया था आदेश

आदेश न मानने पर पुलिस अफसर का करियर नष्ट कर डाला

एटीएस के अफसर शेखर बागड़े ने प्लांट किया था आरडीएक्स

एटीएस ने आरोपियों के खिलाफ तैयार किए थे फर्जी दस्तावेज

एनआईओ कोर्ट ने फर्जी सबूत गढ़ने की जांच का आदेश दिया

 

मुंबई, 01 अगस्त (एजेंसियां)। हिंदू आतंकवाद की व्याख्या स्थापित करने के लिए कांग्रेस पार्टी की तत्कालीन सरकार ने खतरनाक साजिश रची थी। इस साजिश के तहत सेनाधिकारियों और हिंदू साधु-संन्यासियों के साथ संघ के पदाधिकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें आतंकवादी साबित करने का कुचक्र रचा गया था। महाराष्ट्र पुलिस की एंटी टेररिस्ट स्क्वाड के पूर्व इंसपेक्टर और मालेगांव मामले के जांच अधिकारी महबूब मुजावर ने सनसनीखेज खुलासा किया है। मुजावर ने कहा है कि मालेगांव बम धमाका मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार करने का ऊपर से आदेश दिया गया था। इंसपेक्टर महबूब मुजावर ने यह आदेश मानने से इन्कार कर दिया तो आईपीएस अधिकारी परमवीर सिंह ने इंसपेक्टर मुजावर पर ही झूठे केस लाद दिए और उनका पूरा करियर नष्ट कर डाला।

मालेगांव ब्लास्ट मामले की जांच में शामिल रहे महाराष्ट्र एटीएस के इंस्पेक्टर महबूब मुजावर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और खास हिंदूवादी नेताओं को गिरफ्तार करने का ऊपर से गुप्त आदेश दिया गया था। इनमें सबसे पहला नाम आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का था। इसके साथ ही उन्हें गोरखपुर के तत्कालीन भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ, राम कालसंगरासंदीप डांगेदिलीप पाटीदार जैसे लोगों को भी पकड़ने के लिए कहा गया था। तत्कालीन जांच अधिकारी महबूब मुजावर ने साफ-साफ कहा कि इन गोपनीय निर्देशों का मकसद भगवा आतंकवाद की झूठी कहानी गढ़ना था। उन्होंने यह आदेश मानने से इन्कार कर दिया। उनका कहना है कि मोहन भागवत जैसी बड़ी शख्सियत को बिना किसी ठोस वजह और सबूत के पकड़ना उनके बस की बात नहीं थी। आदेश न मानने पर ऊपर के अधिकारी नाराज हो गए और आईपीएस अधिकारी परमवीर सिंह ने महबूब मुजावर पर ही झूठे केस डाल दिए और उनकी 40 साल का करियर नष्ट कर दिया। महबूब मुजावर ने बेहद गंभीर आरोप लगाया कि मालेगांव मामले की पूरी जांच ही एक फर्जी अफसर के नेतृत्व में हुई थी और जांच का पूरा ढांचा झूठ पर आधारित था। मुजावर ने कोर्ट के हालिया फैसले का जिक्र करते हुए कहा, इस फैसले से यह साबित हो गया है कि उस समय जो कुछ भी हुआ वह गलत था।

उल्लेखनीय है कि इंसपेक्टर महबूब मुजावर के इस खुलासे के पहले भी यह उजागर हुआ था कि महाराष्ट्र एटीएस  योगी आदित्यनाथ एवं विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों को फंसाना चाहती थी। इसके लिए एटीएस ने मालेगांव बम धमाकों के मामले में फंसाए जा चुके लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा को भीषण प्रताड़ित किया था। कर्नल पुरोहित ने मुंबई के एक कोर्ट को बताया थामेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया जो किसी जानवर के साथ भी नहीं किया जाता। मेरे साथ युद्ध बंदी से भी बदतर व्यवहार किया गया। हेमंत करकरेपरमबीर सिंह और कर्नल श्रीवास्तव लगातार इस बात पर जोर देते रहे कि मैं मालेगांव बम धमाके के लिए खुद को जिम्मेदार बता दूं। मुझ पर दबाव दिया जा रहा था कि मैं आरएसएसवीएचपी के वरिष्ठ नेताओं और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम लूं। उन्होंने मुझे गंभीर यातनाएं दीं।

गौरतलब है कि 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में एनआईए  की विशेष अदालत ने कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। यह खुलासा हुआ कि एटीएस के एसीपी शेखर बागड़े ने फर्जी सबूत गढ़े थे। कोर्ट ने फर्जी सबूत गढ़े जाने की जांच का आदेश भी दिया है। एनआईए की जांच में साफ हुआ कि शेखर बागड़े ने फर्जी सबूत प्लांट किए ते। इस पर एटीएस ने कोर्ट में कोई ठोस जवाब नहीं दिया। इस पर कोर्ट ने एसीपी शेखर बागड़े के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं।

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इस केस की शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस ने की थीलेकिन 2011 में मामला एनआईए को सौंपा गया। जांच के दौरान दो सेना अधिकारियों ने बताया कि एटीएस के अधिकारी (अब एसीपीशेखर बागड़े 3 नवंबर 2008 को आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी की गैरमौजूदगी में उनके घर में घुसे थे। दोनों सैन्य अधिकारियों ने गवाही दी कि बागड़े ने वहां चुपचाप आरडीएक्स जैसे खतरनाक विस्फोटक पदार्थ रखे थे और यह बात किसी को न बताने की धमकी दी थी। दो दिन बाद एटीएस की टीम ने उस घर पर छापा मारा और आरडीएक्स मिलने का दावा किया। एनआईए की जांच और कोर्ट में दी गई जानकारी से यह स्पष्ट हुआ कि बागड़े ने घर में जबरन घुसकर फर्जी सबूत रखे थे। कोर्ट ने कहा कि एटीएस की तरफ से इस मामले में कोई संतोषजनक सफाई नहीं दी गई और पूरे मामले में सबूतों की प्लांटिंग की आशंका है। इतना ही नहीं, कोर्ट को यह भी पता चला कि विस्फोट के कथित घायलों के मेडिकल सर्टिफिकेट बिना मान्यता प्राप्त डॉक्टरों से बनवाए गए थे। कुछ सर्टिफिकेट जानबूझकर बदले भी गए थे। कोर्ट ने इस पर भी जांच का आदेश दिया है।

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सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही 2017 में कर्नल पुरोहित को जमानत देते हुए बागड़े की संदिग्ध भूमिका पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने कहा था कि आर्मी की जांच में भी अलग कहानी सामने आई थी और बागड़े का आरोपी के घर में जाना सवाल खड़ा करता है। अब कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि एटीएस और एनआईए दोनों ही आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं ला सके और पूरा मामला संदेह के घेरे में है। कोर्ट का 1000 पन्नों का यह फैसला महाराष्ट्र के डीजीपीएटीएस प्रमुख और एनआईए को भेजा गया है ताकि फर्जी सबूत और मेडिकल रिकॉर्ड की गहराई से जांच हो सके।

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कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अभियोजन पक्ष (प्रॉसिक्यूशन) किसी भी आरोपित के खिलाफ ठोस सबूत पेश नहीं कर पाया। कोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि एटीएस यह साबित नहीं कर पाई कि धमाके में इस्तेमाल की गई बाइक प्रज्ञा ठाकुर की थी। कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि प्रज्ञा ठाकुर धमाके से कम से कम दो साल पहले ही साध्वी बन चुकी थीं और अभियोजन यह नहीं दिखा सका कि उनका धमाके की साजिश से कोई संबंध था। कर्नल पुरोहित के मामले में भी अदालत ने कहा कि कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो कि उनके घर में कभी विस्फोटक सामग्री रखी गई थी।

जांच एजेंसी ने मूलभूत जांच प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया। उदाहरण के तौर परजिस कमरे में विस्फोटक रखने का दावा किया गयाउसकी स्केच तक नहीं बनाई गई और फॉरेंसिक सैंपल भी दूषित पाए गए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अभिनव भारत नाम की जिस दक्षिणपंथी संस्था की बात की गई थीजिसे प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित से जोड़ा गया थाउसके बारे में भी यह साबित नहीं हो सका कि वह किसी आतंकवादी गतिविधि में शामिल थी या उसके फंड का इस्तेमाल इस तरह के कामों के लिए हुआ था।

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