भारत में कश्मीर का विलय नहीं चाहते थे नेहरू
महाराजा हरि सिंह को लिखा जवाहरलाल नेहरू का पत्र प्रकाशित
नेहरू ने ठुकरा दिया था कश्मीर विलय का प्रस्ताव
शुभ-लाभ सरोकार
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भारत में कश्मीर का विलय नहीं चाहते थे। यह बात अब आधिकारिक तौर पर साबित हो रही है। जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के भारत में विलय के प्रस्ताव को नजरअंदाज कर दिया था। कश्मीर को लेकर नेहरू की भूमिका पर लगातार उठ रहे सवाल का जवाब देने वाला आधिकारिक दस्तावेज अब सामने आया है। यह दस्तावेज एक किताब की शक्ल में प्रकाशित हुआ है जिसका शीर्षक है 370 - अनडूइंग द अनजस्ट: अ न्यू फ्यूचर फॉर जेएंडके यानि 370: अन्याय का अंत, जम्मू-कश्मीर का नया भविष्य। इस पुस्तक में जवाहरलाल नेहरू का वह पत्र प्रकाशित किया गया है जो उन्होंने 4 जुलाई 1947 को महाराजा हरि सिंह को लिखा था। इस पत्र में नेहरू ने साफ तौर पर महाराजा हरि सिंह के भारत में विलय के आग्रह को ठुकरा दिया था।
आजादी के बाद से लेकर अब तक देश में यह धारणा फैलाई गई थी कि कश्मीर के भारत में विलय में देरी महाराजा हरि सिंह की अनिर्णय की वजह से हुई। जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। पुस्तक में प्रकाशित यह ऐतिहासिक दस्तावेज उस पूरी व्याख्या (नैरेटिव) को उलट देता है, जिसे कांग्रेसियों, वामपंथियों और इस्लामपंथियों द्वारा गढ़ा गया था। नेहरू के इस पत्र से यह भी उजागर होता है कि स्वतंत्रता से पहले नेहरू और महाराजा हरि सिंह के बीच सीधा संवाद नहीं हुआ था, इस दावे की भी पोल खुल गई है। ब्लू क्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में नेहरू के पत्र की मूल प्रति और उसका मूल पाठ दोनों प्रकाशित किए गए हैं, जिसे इतिहास विशेषज्ञ विस्फोटक बता रहे हैं। इतिहासकारों का कहना है कि यह दस्तावेज कश्मीर के विलय की असल कहानी नए सिरे से लिखेगा।
पुस्तक के बारे में विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा, यह एक महत्वपूर्ण निर्णय का एक अत्यंत पठनीय विवरण है जिसने जम्मू और कश्मीर के विकास और सुरक्षा परिदृश्य को बदलते हुए राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा दिया है। यह बताता है कि कैसे एक तत्कालीन युग की राजनीतिक गणनाओं, महत्वाकांक्षाओं और व्यक्तिगत पसंद-नापसंद की प्रवृत्तियों को आखिरकार राष्ट्रीय भावना ने किस तरह चुनौती दी और उसे संसार के समक्ष उजागर किया।
इस किताब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी भी प्रकाशित की गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर इस किताब की प्रस्तावना में लिखा है, मेरे मन में पूरी स्पष्टता थी कि इस फैसले के क्रियान्वयन के लिए जम्मू-कश्मीर की जनता को विश्वास में लेना बेहद जरूरी है। हम चाहते थे कि फैसला, जब भी लिया जाए, लोगों की सहमति से हो, न कि थोपे जाने से। यह किताब जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की गहन पड़ताल प्रस्तुत करता है, जिसे भारत के इतिहास में एक ऐतिहासिक संवैधानिक उपलब्धि माना जाता है। यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस जटिल और ऐतिहासिक निर्णय को कैसे लिया गया, इस पर एक अंदरूनी दृष्टिकोण प्रदान करती है। गहन अंतर्दृष्टि के साथ लिखी गई यह पुस्तक भारत की स्वतंत्रता के समय की कई गलतफहमियों की जांच करती है जिसके कारण अनुच्छेद 370 लागू किया गया। यह 1949 में अनुच्छेद 370 लागू किए जाने के बाद से इसके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभावों और भारत की स्वतंत्रता के दौरान इससे पहले की घटनाओं पर चर्चा करती है। अनुच्छेद 370 के प्रावधान को चुनौती देने की ऐतिहासिक राजनीतिक अनिच्छा और वर्ष 2019 में इसके निरस्त होने से आए परिवर्तनकारी बदलाव पर इस किताब में विस्तार और तथ्यपरक तरीके से प्रकाश डाला गया है। पुस्तक ने कई ऐतिहासिक दस्तावेजों को उजागर किया है, जिनके बारे में अब तक माना और बताया जाता था कि वे मौजूद नहीं हैं, जो उन परिस्थितियों पर पूरी तरह से नई रौशनी डालते हैं जिनके तहत कश्मीर का विलय हुआ और अनुच्छेद 370 अस्तित्व में आया।
कठोर विश्लेषण के माध्यम से, पुस्तक में विस्तार से बताया गया है कि कैसे सरकार ने इस ऐतिहासिक निर्णय को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए कानूनी जटिलताओं को संबोधित किया और सुरक्षा जोखिमों को कम किया। एक आकर्षक कथात्मक शैली में लिखी गई किताब 370: अन्याय की समाप्ति और जम्मू-कश्मीर को नए भविष्य की ओर ले जाने वाली घटनाओं का एक व्यापक विवरण प्रदान करती है। किताब में प्राचीन से समकालीन समय तक क्षेत्र के इतिहास का भी वर्णन है। तथ्यपरक उपाख्यानों के साथ गहन शोध को मिलाकर, पुस्तक पाठकों को भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण क्षण में एक ज्ञानवर्धक यात्रा पर ले जाती है, जो देश के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में बहुमूल्य अंतरदृष्टि प्रदान करती है।
यह प्रकाशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित प्रमुख निर्णयकर्ताओं के साथ बातचीत के माध्यम से मोदी सरकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया का दस्तावेजीकरण करता है। गहन शोध, वास्तविक और मनोरंजक रूप से परिपूर्ण यह पुस्तक भारतीय इतिहास के इस ऐतिहासिक क्षण से संबंधित अध्ययन में एक महत्वपूर्ण कमी को पूरा करती है। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपना उद्देश्य कैसे प्राप्त किया, जैसा कि उनके अपने शब्दों में भी किताब की प्रस्तावना में उद्धृत है।
यह व्यापक कार्य ब्लू क्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन द्वारा संकलित किया गया है, जो नीति और शासन के लिए समर्पित एक गैर-लाभकारी संगठन है। यह फाउंडेशन प्रमुख नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों और नागरिकों के विविध कार्यों को एक साथ लाता है ताकि बहस, चर्चा, विचार-विमर्श और नए विचारों को सूत्रबद्ध किया जा सके जो भारत के विकास पथ को समृद्ध करेंगे। इसके प्रयास मुख्य रूप से समग्र शिक्षा, महिला एवं बाल सशक्तिकरण, किसान कल्याण, पर्यावरण संरक्षण, डिजिटल और सोशल मीडिया, तथा प्रवासी संबंधों जैसे क्षेत्रों में स्वैच्छिक भागीदारी को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
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