जंगल उजड़ने से 20 साल में पांच लाख लोगों की जान गई
नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका की ताजा रिपोर्ट से खुलासा
दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत मौतें
नई दिल्ली, 30 अगस्त (एजेंसियां)। नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पिछले 20 वर्षों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण दुनियाभर में पांच लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये मौतें सीधे तौर पर बढ़ते तापमान और उससे होने वाली बीमारियों से जुड़ी हैं। तापमान में वृदि्ध और जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरणीय संकट नहीं बल्कि इंसानी जीवन के लिए भी खतरा बन चुका है। नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पिछले 20 वर्षों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण दुनियाभर में पांच लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ये मौतें सीधे तौर पर बढ़ते तापमान और उससे होने वाली बीमारियों से जुड़ी हैं।
ब्राजील, घाना और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों की टीम ने किया। इसमें जंगल काटे गए और सुरक्षित क्षेत्रों में तापमान और बिना हादसों से हुई मौतों के आंकड़े इकट्ठे किए गए। दोनों की तुलना के बाद यह साफ हो गया कि जहां जंगल कटे, वहां तापमान कई गुना अधिक बढ़ा और मौतें भी अधिक हुईं। जंगलों को पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है। वे ऑक्सीजन प्रदान करते हैं, कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं और मौसम का संतुलन बनाए रखते हैं। लेकिन जब बड़े पैमाने पर पेड़ों को काटा जाता है तो छाया और नमी घटती है, वर्षा कम हो जाती है और जंगलों में आग लगने का खतरा बढ़ जाता है।
अध्ययन के अनुसार 2001 से 2020 तक की अवधि का विश्लेषण किया गया। इसमें सामने आया कि करीब 34.5 करोड़ लोग जंगलों की कटाई से पैदा हुई गर्मी से प्रभावित हुए। इनमें से लगभग 26 लाख लोगों को तीन डिग्री सेल्सियस तक अतिरिक्त गर्मी झेलनी पड़ी। औसतन हर साल 28,330 लोगों की मौत इस अतिरिक्त गर्मी से दर्ज की गई। दो दशकों में लगभग पांच लाख मौतें हुईं। यह स्पष्ट करता है कि जंगलों को काटा जाना केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं है बल्कि यह सीधे तौर पर स्वास्थ्य और जीवन का संकट भी है।
अध्ययन में पाया गया कि मौतों का आंकड़ा सभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में समान नहीं था। दक्षिण-पूर्व एशिया में सबसे ज्यादा 50 फीसदी से अधिक मौतें दर्ज की गईं। इसका प्रमुख कारण यहां की घनी आबादी और गर्मी-संवेदनशील परिस्थितियां हैं। अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय इलाकों में मौतों का लगभग एक-तिहाई हिस्सा दर्ज हुआ। वहीं, मध्य और दक्षिण अमेरिका के अमेजन जैसे क्षेत्रों में बाकी मौतें दर्ज की गईं, जहां जंगलों की कटाई लगातार जारी है।
भारत भी इस संकट से अछूता नहीं है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि देश के कुल भू-भाग का लगभग 21.7 प्रतिशत हिस्सा ही वन क्षेत्र है, जबकि वैश्विक औसत 31 प्रतिशत है। पिछले दशक में औद्योगिक और शहरी विस्तार के चलते लाखों हेक्टेयर वन क्षेत्र घटा है। इसी के साथ दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों में हीट वेव की घटनाएं बढ़ रही हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2023 के बीच भारत में 5,000 से ज्यादा लोगों की मौत हीटवेव के कारण हुई। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस बढ़ती गर्मी के पीछे अप्रत्यक्ष रूप से जंगलों की कमी भी बड़ी भूमिका निभा रही है।