विकास के नाम पर हो रहा है विनाश
जंगलों की अंधाधुंध कटाई आपदा की वजह : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा केंद्र और एनडीएमए से जवाब
नई दिल्ली, 04 सितंबर (एजेंसियां)। जम्मू कश्मीर से लेकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तक भीषण भूस्खलन और बाढ़ की वजह जंगलों की बेतहाशा हो रही कटाई है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में विकास के नाम पर जंगलों के विनाश का संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार, नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) एवं अन्य संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पेड़ों की अवैध कटाई के कारण ये आपदाएं आईं। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मी
सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न राज्यों में अभूतपूर्व भूस्खलन और बाढ़ पर संज्ञान लिया। मामले में कोर्ट ने केंद्र सरकार, एनडीएमए और अन्य को नोटिस जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में पेड़ों की अवैध कटाई के कारण आपदाएं आई हैं। कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें पेड़ों की अवैध कटाई को ऐसी आपदाओं का एक प्रमुख कारण बताया गया था।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और पंजाब की सरकारों को भी नोटिस जारी किए। पीठ ने अनामिका राणा की ओर से दायर याचिका को दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सुधारात्मक उपाय सुनिश्चित करने को कहा।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, हमने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में अभूतपूर्व भूस्खलन और बाढ़ देखी है। मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि बाढ़ में भारी मात्रा में लकड़ी बहकर आई। प्रथम द्रष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पेड़ों की अवैध कटाई हुई है। इसलिए प्रतिवादियों को नोटिस जारी करें। दो सप्ताह में जवाब दें। पीठ ने याचिकाकर्ता अनामिका राणा की ओर से पेश अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ और शुभम उपाध्याय को केंद्रीय एजेंसी को नोटिस और याचिका की प्रति देने की अनुमति दे दी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, कृपया इस पर ध्यान दें। यह एक गंभीर मुद्दा प्रतीत होता है। बड़ी संख्या में लकड़ी के लट्ठे इधर-उधर गिरे हुए दिखाई दे रहे हैं। यह पेड़ों की अवैध कटाई की ओर इशारा करता है। हमने पंजाब की तस्वीरें देखी हैं। पूरे खेत और फसलें जलमग्न हो गई हैं। विकास को राहत उपायों के साथ संतुलित करना होगा।
विधि अधिकारी ने कहा, हमने प्रकृति के साथ इतना हस्तक्षेप किया है कि प्रकृति अब हमें जवाब दे रही है। मैं आज ही पर्यावरण मंत्रालय के सचिव से बात करूंगा और वह राज्यों के मुख्य सचिवों से बात करेंगे। मेहता ने कहा कि ऐसी स्थितियों की अनुमति नहीं दी जा सकती। वकील आकाश वशिष्ठ के माध्यम से दायर याचिका में भूस्खलन और अचानक बाढ़ के कारणों की कार्ययोजना बनाने और एसआईटी जांच कराने के साथ-साथ ऐसी आपदाओं की पुनरावृत्ति न हो, यह सुनिश्चित करने के उपाय करने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है, केंद्र और राज्य सरकारों के पास समर्पित आपदा प्राधिकरण होने के बावजूद इन आपदाओं से होने वाले नुकसान को रोकने या कम करने के लिए कोई योजना नहीं है, जिनकी आवृत्ति हाल ही में चिंताजनक रूप से बढ़ गई है। याचिका में केंद्र और अन्य को प्रभावित नागरिकों के लिए आपातकालीन राहत, बचाव, सुरक्षा और प्राथमिक उपचार सुनिश्चित करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।