राज्य की मांग के लिए लद्दाख में फिर हुआ आंदोलन तेज
30 वर्षों के आंदोलन के बाद जो मिला था वह रास नहीं आया लद्दाख को
सुरेश एस डुग्गर
जम्मू, 11 सितंबर। करीब 30 सालों के आंदोलन के बाद लद्दाख ने केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा 5 अगस्त 2019 को पाया तो मन की मुराद पूरी होने की खुशी यह दर्जा पानी के दो सालों में ही हवा हो चुकी है। कारण स्पष्ट है। वे लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर दिए जाने के कारण अब राज्य का दर्जा पाने को छटपटा रहे हैं। केंद्र शसित प्रदेश लद्दाख के निवासियों ने क्षेत्र के हितों के संरक्षण की रणनीति के तहत 2023 से ही राज्य दर्जे को लेकर जो आंदोलन तेज हुआ है उसमें अब जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांचुक की 35 दिनों की भूखहड़ताल सबसे ताजा कदम है। जबकि इन दो सालों में लद्दाख कई बार हड़ताल और बंद का सामना कर चुका है।
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और लेह एपेक्स बॉडी ने घोषणा की है कि वे लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कराने और राज्य का दर्जा देने की अपनी मांगों को लेकर लेह में 35 दिन की भूख हड़ताल शुरू कर रहे हैं। एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा के बाद हुए संवाददाता सम्मेलन में जलवायु कार्यकर्ता, शिक्षाविद और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता वांगचुक ने कहा कि उन्होंने एक और अनशन शुरू करने का निर्णय लिया है क्योंकि उनकी मांगों को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले दो महीने से कोई बैठक नहीं बुलाई है।
वांगचुक ने कहा कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर केंद्र सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है, इसलिए वह अपना प्रदर्शन तेज करने को मजबूर हो रहे हैं। उन्होंने कहा, करीब दो महीने पहले केंद्र सरकार के साथ बातचीत रुक गई थी। जैसे ही बातचीत इस मोड़ पर पहुंचने वाली थी जहां मुख्य मांगों पर चर्चा शुरू होती, सरकार ने आगे कोई बैठक नहीं बुलाई। वहीं लेह में हिल काउंसिल के चुनाव जल्द ही होने वाले हैं और उन्होंने केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को यह याद दिलाया कि पिछले काउंसिल चुनाव में उसने लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा देने का वादा किया था।
याद रहे यूटी बनाए जाने के बाद से ही लद्दाख के लोग अपनी जमीन, रोजगार, संस्कृति, जलवायु और पहचान को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। पूर्ण राज्य और संविधान की छठीं अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर केंद्र से वार्ता जरूर हुईं लेकिन इसे लेकर टालमटोल ही किया गया। अगस्त 2021 में लेह और करगिल के लोगों ने मिलकर संघर्ष करने का फैसला लिया। फिर कोर कमेटी का गठन किया गया, जो दोनों प्रमुख मांगों को लेकर संघर्ष तेज कर चुकी है।
दरअसल जो यूटी का दर्जा बिना विधानसभा के मिला वह अब लद्दाखवासियों को रास नहीं आ रहा है। यूटी मिलने के कुछ ही महीनों के बाद उन्होंने आंदोलन छेड़ दिया। हालांकि इस आंदोलन ने अभी उतनी हवा नहीं पकड़ी है जितनी आग यूटी पाने की मांग ने पकड़ी थी। पर इस मुद्दे पर पिछले तीन सालों में कई बार बुलाई गई हड़ताल के बाद केंद्र सरकार लद्दाख को धारा 371 के तहत नार्थ ईस्ट की तर्ज पर हद से बढ़कर अधिकार देने को तैयार है पर लद्दाखी मानने को राजी नहीं हैं। हालांकि कुछ दिनों पहले लद्दाखी नेताओं की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान, उन्होंने दो संसदीय क्षेत्र देने की बात को मान लिया पर राज्य का दर्जा देकर विधानसभा न देने के पीछे कई कारण गिना दिए गए थे।
लद्दाख में अब राज्य का दर्जा पाने के साथ ही विधानसभा पाने को जिस आंदोलन को हवा दी जा रही है उसका नेतृत्व लेह अपेक्स बाडी कर रही है जिसके चेयरमेन थुप्स्टन छेवांग बनाए गए हैं। नार्थ ब्लाक में अधिकारियों से मुलाकातों के बाद छेवांग को भी धारा 371 के तहत ही और अधिकार देने का आश्वान दिया गया है जिसे लेह अपेक्स बाडी तथा करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस मानने को राजी नहीं हैं। ऐसे में लद्दाख से मिलने वाले संकेत यही कहते हैं कि लद्दाख के दोनों जिलों- लेह और करगिल में राज्य का दर्जा पाकर लोकतांत्रिक अधिकार पाने का लावा किसी भी समय फूट सकता है। 6 साल पहले जब करगिल को जम्मू कश्मीर से अलग किया गया था था तब भी उसने इसी चिंता को दर्शाते हुए कई दिनों तक बंद का आयोजन किया था। करगिलवासी भी लोकतांत्रिक अधिकारों की खातिर विधानसभा चाहते हैं।
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