भाव गिरने से दोहरे घाटे में किसान
उत्तर प्रदेश में आलू की हुई बंपर पैदावार
नेपाल की हिंसा और बिहार की बाढ़ से छाई मंदी
लखनऊ, 06 अक्टूबर (एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश में 1500 रुपए प्रति क्विंटल का आलू अब एक हजार रुपए में बिक रहा है। फिर भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इसकी मूल वजह बंपर पैदावार है। नेपाल की अशांति से घटी मांग और बिहार में आई बाढ़ से भी भाव गिरे हैं। पंजाब और पश्चिम बंगाल के आलू ने आसपास के राज्यों पर कब्जा कर लिया। ऐसे में उत्तर प्रदेश का भंडारित 35 से 40 फीसदी आलू अभी भी शीतगृहों में बचा है।
देशभर में होने वाली कुल पैदावार का करीब 35 प्रतिशत आलू उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। वर्ष 2024-25 में करीब 245 लाख मीट्रिक टन आलू पैदा हुआ। प्रदेश के 2207 शीतगृह में करीब 150 लाख मीट्रिक टन आलू का भंडारण हुआ। आमतौर पर जुलाई के अंतिम सप्ताह से सितंबर माह में आलू निकासी की गति बढ़ जाती है। यही वजह है कि उद्यान विभाग ने 31 अक्टूबर तक शीतगृह खाली करने का निर्देश दिया है, लेकिन भाव और खपत कम होने की वजह से इस वर्ष आलू की निकासी नहीं हो पा रही है।
करीब 35 से 40 फीसदी आलू शीतगृह में पड़ा है। इसमें 15 फीसदी आलू बीज के रूप में प्रयोग होगा। फिर भी 20 से 30 फीसदी आलू मुसीबत बन सकता है। व्यापारी आलू निकासी नहीं होने की वजह बाजार में गिरावट बता रहे है। अप्रैल- मई माह में थोक में सफेद आलू का भाव करीब 1157 से 1173 रुपए प्रति क्विंटल था। जिन लोगों ने आलू शीतगृह में रख, उन्हें 250 रुपए शीतगृह भाड़ा, 100 रुपए का बोरा और पल्लेदारी व खेत से स्टोर तक पहुंचाने में करीब 100 रुपए प्रति क्विंटल अन्य खर्च करने पड़े। इस तरह शीतगृह में रखे आलू की कीमत करीब 1500 रुपए से अधिक पहुंच गई। इन दिनों थोक मंडियों में आलू 900 से 1100 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा है।
उत्तर प्रदेश की तरह पंजाब, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश में भी आलू की बंपर पैदावार हुई। सातनपुर मंडी समिति के आलू कारोबारी रिंकू वर्मा बताते हैं कि पंजाब से बड़ी मात्रा में आलू पाकिस्तान जाता था। आगरा से भी कुछ आलू पाकिस्तान भेजा जाता था, लेकिन इस वर्ष नहीं गया। ऐसे में पंजाब का आलू राजस्थान और गुजरात के बाजार पर कब्जा कर लिया। उत्तर प्रदेश का आलू नेपाल भी नहीं जा पाया है। अकेले फर्रुखाबाद से 10 से 15 रैक आलू आसाम जाता था, इस बार दो-तीन रैक ही रवाना हो पाई। पश्चिम बंगाल का आलू बिहार और झारखंड में उत्तर प्रदेश की अपेक्षा करीब डेढ़ सौ रुपए प्रति क्विंटल सस्ता पहुंचा। बाढ़ की वजह से भी वहां के व्यापारी उत्तर प्रदेश नहीं आए। इन सभी कारणों की वजह से उत्तर प्रदेश में बड़ी मात्रा में आलू शीतगृहों में बच गया है।
आलू निर्यातक पुष्पेंद्र जैन ने कहा, प्रदेश का आलू दक्षिण के राज्यों में भी जाता था। इस वर्ष वहां भी उत्पादन अधिक हुआ है। पाकिस्तान और नेपाल में भी निर्यात नहीं हो पाया। शीतगृहों में भरपूर भंडारण होने के बाद उसकी खपत को लेकर तत्काल रणनीति बनाई जानी चाहिए थी, जो नहीं बनी। अब घाटे में आलू बेचना विवशता है। आलू किसान रवि किरन सिंह कहते हैं कि जिन किसानों ने आलू बीज खरीद कर बुवाई की है, उन्हें दोहरा घाटा लग रहा है। क्योंकि बुवाई के वक्त बीज करीब ढाई से तीन हजार रुपए प्रति क्विंटल था। बुवाई, जुताई, सिंचाई और फिर खुदाई के बाद शीतगृह तक पहुंचने में खर्च अलग से आया। अब हजार रुपए प्रति क्विंटल में बेचना मजबूरी है। आलू किसान जमुना यादव ने कहा कि सरकार को जिलेवार पैदावार के हिसाब से रणनीति बनानी चाहिए। जहां आलू का उत्पादन अधिक है, वहां इससे जुड़ी प्रसंस्कण इकाइयां लगाई जाएं और जहां टमाटर ज्यादा है, वहां उस पर आधारित इकाई लगे। तभी किसानों को घाटे से उबारा जा सकता है। बंपर आलू पैदावार का डंका बजाने वाले उद्यान विभाग को खपत की रणनीति बनानी चाहिए थी।