जम्मू में चार साल बाद फिर से सजा मुख्यमंत्री का दरबार

जम्मू में चार साल बाद फिर से सजा मुख्यमंत्री का दरबार

जम्मू03 नवंबर (ब्यूरो)। कश्मीरियों की आशंका के बीच जम्मू कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू में आज सोमवार सुबह दरबार सज गया। अब छह महीने के लिए नागरिक सचिवालय और अन्य चलंत कार्यालय जम्मू में ही काम करेंगे। जम्मू में दरबार-मूव समारोह में शामिल होने पहुंचे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का गर्मजोशी से स्वागत किया गया और उन्हें गार्ड आफ आनर दिया गया। समारोह के बाद सीएम उमर ने जम्मू स्थित सचिवालय परिसर का भी निरीक्षण किया।

इस अवसर पर जम्मू कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी ने खुशी जताई और इस परंपरा को जम्मू के महाराजा की विरासत से जुड़ा बताया। वे कहते थे कि लोग खुश हैंसभी खुश हैं। भाजपा वाले कहते थे कि नेशनल कांफ्रेंस जम्मू विरोधी है। आज उमर अब्दुल्ला सरकार ने दिखा दिया है कि जिस दरबार मूव को आपने रोका थाउसे उमर अब्दुल्ला सरकार ने शुरू किया है। अब जम्मू के लोगों को तय करना है कि भाजपा उनके हित में है या उमर अब्दुल्ला सरकार या नेशनल कांफ्रेंस उनके हित में है। यह महाराजा की विरासत हैजिसकी शुरुआत हमने आज की है और सही मायने में हमने महाराजा साहब को श्रद्धांजलि दी है।

दरबार मूव का तात्पर्य जम्मू कश्मीर के सचिवालय और अन्य सभी सरकारी कार्यालयों के एक राजधानी शहर से दूसरे राजधानी शहर में अर्धवार्षिक स्थानांतरण से है। मई से अक्टूबर तकसरकारी कार्यालय ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में संचालित होते थेजबकि शेष छह महीने वे शीतकालीन राजधानी जम्मू में कार्य करते थे। इस परंपरा को आधिकरिक तौर पर वर्ष 2021 से बंद’ किया जा चुका था जबकि उसके प्रति सच्चाई यह थी कि यह गैर सरकारी तौर पर लगभग 500 कर्मियों के साथ जारी था। ये कर्मी उपराज्यपालमुख्य सचिव और वित्त विभाग के वित्त आयुक्तसामान्य प्रशासनिक विभाग के आयुक्त सचिव तथा पुलिस महानिदेशक के कार्यालयों में लिप्त कर्मी हैं जो दोनों राजधानियों में आ-जा रहे थे।

पारंपरिक दरबार मूव की बहाली पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, दरबार मूव पर रोक लगना जम्मू के लिए एक बड़ा झटका था। मैंने इसे बहाल करने का वादा किया था और आज हमने वह वादा पूरा कर दिया है। इससे जम्मू की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन हर चीज को पैसे से नहीं जोड़ा जाना चाहिएजिसे इस प्रथा को खत्म करने का एक कारण बताया गया था।

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जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की शुरूआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीरजम्मू से करीब 300 किमी दूरी पर थाऐसे में डोगरा शासक ने यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा। 19वीं शताब्दी में दरबार को 300 किमी दूर ले जाना एक जटिल प्रक्रिया थी व यातायात के कम साधन होने के कारण इसमें काफी समय लगता था। अप्रैल महीने में जम्मू में गर्मी शुरू होते ही महाराजा का काफिला श्रीनगर के लिए निकल पड़ता था। महाराजा का दरबार अक्तूबर महीने तक कश्मीर में ही रहता था। जम्मू से कश्मीर की दूरी को देखते हुए डोगरा शासकों ने शासन को ही कश्मीर तक ले जाने की व्यवस्था को वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा। जब 26 अक्टूबर 1947 को राज्य का देश के साथ विलय हुआ तो राज्य सरकार ने कई पुरानी व्यवस्थाएं बदल ले लेकिन दरबार मूव जारी रखा। राज्य में 148 साल पुरानी यह व्यवस्था आज भी जारी है। दरबार को अपने आधार क्षेत्र में ले जाना कश्मीर केंद्रित सरकारों को सूट करता थाइस लिए इस व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं लाया गया था।

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