चीन की नई चाल बेनकाब: ताइवान ने 'नकली खुफिया बैठक' के दावों को बताया दुष्प्रचार अभियान
एमआईबी का सख्त बयान—फर्जी फोटो, मनगढ़ंत नाम और झूठी रिपोर्टों के जरिए ताइवान को निशाना बनाने की कोशिश
नई दिल्ली, 3 दिसम्बर,(एजेंसियां)।ताइवान के सैन्य खुफिया ब्यूरो (एमआईबी) ने चीन समर्थित प्लेटफॉर्म द्वारा फैलाई जा रही उन सभी रिपोर्टों का कड़ा खंडन किया है, जिनमें दावा किया गया था कि ताइवानी खुफिया अधिकारियों ने डच रक्षा खुफिया एजेंसी के साथ गुप्त बैठकें की हैं। द ताइपे टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पूरा मामला चीन की ओर से चलाए जा रहे एक संगठित दुष्प्रचार अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ताइवान की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाना और उसके सहयोगियों में भ्रम पैदा करना है।
मंगलवार को एमआईबी ने एक आधिकारिक बयान जारी कर यूरोप वांशिदा वेब नामक वेबसाइट के आरोपों को पूरी तरह गलत, मनगढ़ंत और तथ्यों के विपरीत बताया। यह वेबसाइट हंगरी से संचालित होती है और माना जाता है कि इसके पीछे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) से जुड़े विदेशी चीनी संगठन हैं। इस वेबसाइट पर एक पोस्ट प्रकाशित की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि ताइवान की एमआईबी के छह अधिकारी मई 2025 में नीदरलैंड गए थे, जहां उन्होंने डच रक्षा खुफिया और सुरक्षा सेवा (DISS) के साथ गुप्त वार्ताएँ कीं। दावा यह भी किया गया कि इसके बाद डच अधिकारी पिछले महीने कथित फॉलो-अप बैठक के लिए ताइवान आए थे।
इस पोस्ट की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए वेबसाइट ने कथित बैठकों की कुछ नकली तस्वीरें, एक एमआईबी अधिकारी का फर्जी विमान टिकट और ताइवानी व डच अधिकारियों के मनगढ़ंत नाम भी प्रकाशित किए। लेकिन एमआईबी ने इन सभी तथाकथित "सबूतों" को पूरी तरह फर्जी और भ्रामक करार दिया। ब्यूरो ने साफ कहा कि यह सामग्री स्पष्ट रूप से विकृत, झूठी और चीन के दुष्प्रचार अभियानों की ही कड़ी है, जिसका मकसद जनता के बीच भ्रम पैदा करना है।
एमआईबी ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला कोई साधारण गलत सूचना नहीं, बल्कि एक बड़े मनोवैज्ञानिक अभियान का हिस्सा है, जिसे चीन लगातार ताइवान के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। इसे "कॉग्निटिव वॉरफेयर" यानी संज्ञानात्मक युद्ध की रणनीति बताया जा रहा है। इस रणनीति के तहत चीनी एजेंसियाँ ताइवानी जनता के मनोबल को कमजोर करने, उसके लोकतांत्रिक संस्थानों में संदेह पैदा करने और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को लेकर अविश्वास की भावना फैलाने की कोशिश करती हैं।
ताइवान लंबे समय से यह आरोप लगाता आया है कि चीन सोशल मीडिया, फर्जी वेबसाइटों, ऑनलाइन पोर्टल्स और नकली समाचार माध्यमों के जरिए ताइवान की राजनीति, सेना और विदेशी संबंधों को निशाना बनाता है। यह नवीनतम प्रकरण भी उसी अभियान की कड़ी है, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय में यह भ्रम फैलाना है कि ताइवान की गुप्त गतिविधियाँ संदेहास्पद हैं और वह अपने सहयोगियों के साथ पारदर्शिता से काम नहीं करता। लेकिन एमआईबी ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा कि ताइवान अपनी अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों के प्रति पूरी तरह पारदर्शी है और किसी भी तरह की गुप्त गतिविधि के आरोप पूरी तरह झूठे हैं।
इस प्रकरण ने ताइवानी अधिकारियों में चीन की इन नई रणनीतियों को लेकर चिंता और बढ़ा दी है। उनका कहना है कि चीन की दुष्प्रचार मशीनरी अब सिर्फ सैन्य या भौगोलिक दबाव तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सीधे ताइवान की मानसिकता, जनमत और अंतरराष्ट्रीय साख को निशाना बना रही है। ताइवान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी अपील की है कि वह ऐसे दुष्प्रचार अभियानों की गंभीरता को समझे और इनके खिलाफ मिलकर काम करे।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि यह घटना ऐसे समय में सामने आई है जब चीन और ताइवान के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। अमेरिका, जापान और यूरोपीय देशों के साथ ताइवान के बढ़ते रिश्ते चीन को असहज कर रहे हैं। ऐसे में चीन का यह दुष्प्रचार अभियान ताइवान की वैश्विक छवि को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। ताइवान की सरकार ने जनता से भी अपील की है कि वे सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर फैल रही किसी भी संदिग्ध जानकारी की पुष्टि किए बिना उस पर भरोसा न करें।
ताइवानी अधिकारियों ने कहा कि संज्ञानात्मक युद्ध का उद्देश्य असली तथ्यों को झूठ के धुएँ में छिपाना है, लेकिन ताइवान की एजेंसियाँ इस तरह के सभी प्रयासों को नाकाम करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उन्होंने कहा कि चीन की इन चालों से ताइवान की सुरक्षा, सहयोग और अंतरराष्ट्रीय छवि पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

