UP में बीजेपी का धर्मसंकट: साधु-संतों के लिए कैसे चुनौती बन गया SIR

UP में बीजेपी का धर्मसंकट: साधु-संतों के लिए कैसे चुनौती बन गया SIR

लखनऊ, 15 दिसम्बर,(एजेंसियां)। उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) ने जहां विपक्ष की चिंता बढ़ाई है, वहीं अब यह प्रक्रिया सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए भी धर्मसंकट बनती नजर आ रही है। वजह है—राज्य के प्रमुख धार्मिक शहरों अयोध्या, मथुरा, वृंदावन और वाराणसी में रहने वाले साधु-संत और संन्यासी, जो SIR के नियमों के चलते मतदाता सूची से बाहर होने की आशंका से जूझ रहे हैं।

चुनाव आयोग ने SIR के तहत यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी व्यक्ति एक समय में केवल एक ही स्थान का मतदाता हो सकता है। यानी जिन लोगों के नाम गांव और शहर—दोनों जगह की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं, उन्हें अब किसी एक स्थान को चुनना होगा। इस प्रक्रिया में एक दिलचस्प रुझान सामने आया है। नौकरी या व्यवसाय के कारण शहरों में बसे लोग शहर की बजाय गांव की वोटर लिस्ट में बने रहना ज्यादा सुरक्षित मान रहे हैं। इससे शहरी क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या घटने की आशंका जताई जा रही है, जो बीजेपी के लिए राजनीतिक चुनौती बन सकती है।

लेकिन इससे भी बड़ी समस्या धार्मिक शहरों में सामने आई है। SIR फॉर्म में माता का नाम अनिवार्य कॉलम के रूप में शामिल है। यही कॉलम साधु-संतों के लिए परेशानी का कारण बन गया है। सन्यास परंपरा के अनुसार साधु सांसारिक रिश्तों का त्याग कर देते हैं और अपने आधिकारिक दस्तावेजों में माता-पिता के नाम के बजाय अपने आध्यात्मिक गुरु का नाम दर्ज कराते हैं। ऐसे में वे माता का नाम लिखने में असमर्थ या अनिच्छुक होते हैं। यदि यह कॉलम खाली छोड़ा गया, तो मतदाता सूची से नाम कटने का खतरा बना हुआ है।

अयोध्या में बीजेपी के पूर्व सांसद और विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता रामविलास वेदांती ने इस समस्या का प्रतीकात्मक समाधान निकाला है। उन्होंने माता के नाम के स्थान पर “जानकी” लिखा, जो माता सीता का दूसरा नाम है। इसी तरह दिगंबर अखाड़ा के महामंडलेश्वर प्रेमशंकर दास समेत कई साधु-संत माता के नाम की जगह जानकी, सीता, कौशल्या या सुमित्रा जैसे पौराणिक नाम दर्ज करा रहे हैं। उनका तर्क है कि सांसारिक माता-पिता से उनका नाता त्याग का विषय है, इसलिए धार्मिक आस्था के अनुरूप नाम लिखना ही उनके लिए उचित है।

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SIR की अंतिम तारीख को चुनाव आयोग द्वारा 11 दिसंबर से बढ़ाकर 26 दिसंबर करना बीजेपी और प्रशासन दोनों के लिए राहत भरा कदम माना जा रहा है। धार्मिक शहरों में साधु-संतों तक पहुंचकर फॉर्म भरवाना आसान नहीं है, क्योंकि कई संत लगातार धार्मिक यात्राओं पर रहते हैं। अयोध्या स्थित सिद्धपीठ रामधाम के प्रमुख महामंडलेश्वर प्रेमशंकर दास ने बताया कि उनके आश्रम में 12 मतदाता हैं, लेकिन उनमें से आधे इस समय तीर्थयात्रा पर हैं, जिससे फॉर्म भरवाने की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।

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प्रशासन का कहना है कि वह इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर सतर्क है। अयोध्या के ईआरओ अनुरुद्ध सिंह के अनुसार, यात्रा पर गए साधुओं से जुड़े मंदिरों और आश्रमों के प्रमुखों से लगातार संपर्क किया जा रहा है। कोशिश है कि सभी पात्र मतदाताओं के SIR फॉर्म तय समय सीमा के भीतर पूरे कराए जाएं, ताकि किसी का नाम अनावश्यक रूप से न कटे।

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कुल मिलाकर, SIR की मंशा मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाना है, लेकिन उत्तर प्रदेश के धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ में इसके कुछ प्रावधान व्यावहारिक चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। साधु-संतों की आस्था और प्रशासनिक नियमों के बीच संतुलन बनाना अब बीजेपी और चुनाव आयोग—दोनों के लिए एक बड़ी परीक्षा बन गया है।