यह एनआरसी नहीं बिहार में चुनाव की तैयारी है
बिहार में घर-घर जाकर चुनाव आयोग कर रहा वोटरों की जांच
अराजक पार्टियों और उनके गुर्गों की फूल रही सांस
मतदाता सूची के पारदर्शी होने की जनता को आस
नई दिल्ली/पटना, 02 जुलाई (एजेंसियां)। इस साल के अंत में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले राष्ट्रीय चुनाव आयोग वोटर लिस्ट को ठीक करने का बड़ा काम कर रहा है जिसे विशेष गहन पुनरीक्षण कहा गया है। इस काम में बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) यानी वो लोग जो हर गांव और मोहल्ले में वोटिंग का काम देखते हैं, घर-घर जाकर यह जांच रहे हैं कि वोटर लिस्ट में कौन-कौन का नाम सही है। मतलब जिन लोगों को वोट डालने का हक है, उनका नाम लिस्ट में रहे और जिनका नहीं होना चाहिए, जैसे कि जिनकी मृत्यु हो गई है या जो कहीं और चले गए हैं, उनका नाम हट जाए।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह सब इसलिए हो रहा है ताकि वोटिंग में कोई गड़बड़ न हो। बिहार में अभी 7.89 करोड़ लोग वोटर हैं और इस जांच से ये सुनिश्चित होगा कि सिर्फ़ सही लोग ही वोट डालें। इसके लिए 1.5 लाख से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट लगाए गए हैं, जो सभी पार्टियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हालांकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद), एआईएमआईएम, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसी पार्टियां और तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी, सागरिका घोष जैसे नेता इस काम को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से जोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि ये सब भाजपा और एनडीए की साजिश है, ताकि गरीब, दलित, पिछड़े और मुस्लिम लोगों को वोटर लिस्ट से हटाया जा सके। जबकि इन आरोपों का जमीनी वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है।
चुनाव आयोग ने 25 जून 2025 से जांच शुरू की है जो 26 जुलाई तक चलेगी। इसके बाद 30 सितंबर को नई और सही वोटर लिस्ट छपेगी। इस काम में बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) हर घर में जा रहे हैं। उनके पास एक फॉर्म होता है, जो आधा भरा होता है। वो उस फॉर्म को लोगों को देते हैं और उनसे कुछ जानकारी मांगते हैं, जैसे कि नाम, पता और कुछ कागजात। ये कागजात इसलिए चाहिए ताकि ये पक्का हो सके कि वो व्यक्ति वोट डालने का हकदार है। अगर आपका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में है (जब बिहार में आखिरी बार ऐसा बड़ा काम हुआ था), तो आपको बस अपनी जानकारी की पुष्टि करनी है। अगर आपके मम्मी-पापा का नाम उस लिस्ट में है, तो आपको कोई अतिरिक्त कागज देने की जरूरत नहीं। लेकिन अगर आपका या आपके मम्मी-पापा का नाम उस पुरानी लिस्ट में नहीं है, तो आपको कुछ कागज, जैसे जन्म प्रमाणपत्र या दूसरा कोई दस्तावेज़ देना पड़ सकता है।
बीएलओ ये सारी जानकारी को एक मोबाइल ऐप (ईसीआईनेट) में अपलोड करते हैं। साथ ही आपको एक रसीद भी देते हैं कि आपने फॉर्म भरा है। आयोग ने ये भी कहा है कि इस काम में बुजुर्गों, बीमार लोगों या दिव्यांग लोगों को परेशान नहीं करना है। बिहार में 2003 की वोटर लिस्ट में 4.96 करोड़ लोगों के नाम थे और आयोग का कहना है कि इन लोगों और इनके बच्चों को कोई खास कागज देने की जरूरत नहीं। यानी करीब 60 प्रतिशत लोगों को आसानी होगी।
विपक्षी दलों के आरोपों और सत्ता पक्ष के जवाब का चुनाव आयोग के इस काम से कोई लेना देना नहीं है। चुनाव आयोग का कहना है कि यह कोई नया काम नहीं है। आजादी के बाद से कई बार वोटर लिस्ट को ठीक करने के लिए ऐसे अभियान चले हैं। 1952-56 में पहले आम चुनाव के बाद हर साल कुछ इलाकों की लिस्ट को गहन जांच के साथ ठीक किया गया। 1956 में शहरों, मजदूरों वाले इलाकों और जहां लोग ज्यादा इधर-उधर जाते थे, वहां खास जांच हुई। 1962-66 में लोकसभा चुनावों के बाद कुछ साल में पूरे देश में गहन और छोटी जांच हुई। 1983-88 में गांवों और शहरों में गहन जांच हुई। 1995 और 2002 में भी बड़े स्तर पर लिस्ट ठीक की गई। बिहार में आखिरी बार 2002 में ऐसी जांच हुई थी और 2003 में नई लिस्ट छपी थी। उस वक्त किसी ने इसे एनआरसी से नहीं जोड़ा था। लेकिन अब, क्योंकि चुनाव नज़दीक हैं, विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना रहा है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा : जहां रहें, वहीं के वोटर बनें
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नई दिल्ली, 02 जुलाई (एजेंसियां)। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि पात्र नागरिकों को केवल उन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता के तौर पर अपना पंजीकरण कराना चाहिए, जहां वे सामान्य तौर पर निवास करते हैं, न कि उस स्थान पर जहां उनका मूल निवास है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने बूथ स्तर के अधिकारियों के एक समूह को संबोधित करते हुए कहा, आप जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत केवल उसी विधानसभा क्षेत्र में वोट देने के हकदार हैं, जहां आप सामान्य निवासी हैं। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए आप सामान्य रूप से दिल्ली में रहते हैं लेकिन पटना में आपका घर है तो आपका वोट पटना में नहीं बल्कि दिल्ली में पंजीकृत होना चाहिए।
सीईसी ने यह बात ऐसे समय में कही है, जब विपक्ष की तरफ से लगातार ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा के दौरान तमाम पात्र मतदाताओं के नाम काटे जा सकते हैं। आयोग का कहना है कि बिहार में जारी गहन समीक्षा अभियान का उद्देश्य ऐसे तमाम लोगों की पहचान करना है, जिन्होंने जानबूझकर या अनजाने में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाता कार्ड अपने पास रख लिए हैं। आयोग के मुताबिक, लोगों का प्रवास से पहले का पुराना कार्ड रखना आपराधिक कृत्य है।
निर्वाचन आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर कांग्रेस की मांग पर विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल के साथ बुलाई गई बैठक को स्थगित कर दिया है, क्योंकि अब तक किसी दल ने अपनी उपस्थिति की पुष्टि नहीं की है। आयोग के सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि 30 जून को भेजे गए एक ई-मेल में कांग्रेस ने मतदाता सूची संशोधन कवायद के संबंध में कई राजनीतिक दलों की ओर से 2 जुलाई को आयोग के साथ तत्काल बैठक की मांग की थी। इस पर आयोग ने इन राजनीतिक दलों से 2 जुलाई को शाम पांच बजे बैठक का समय देकर इसे तय करने को कहा। लेकिन कोई पुष्टि न मिलने पर इसे स्थगित कर दिया गया।
तृणमूल कांग्रेस के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को भारतीय निर्वाचन आयोग की पूर्ण पीठ से मुलाकात की और सुझाव दिया कि मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए 2024 को आधार वर्ष माना जाना चाहिए। दस्तावेज मांगने का मुद्दा भी पार्टी ने उठाया।
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