प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 10 हजार फर्जी वोटर
पटना, 10 जुलाई (एजेंसियां)। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान पर सियासी बवाल चरम पर है। विपक्षी दल सवाल पूछ रहे हैं कि सूची में नाम के लिए आधार कार्ड और आवासीय प्रमाण पत्र को मान्यता क्यों नहीं दी जा रही? लेकिन, तथ्य यह भी है कि राज्य के सीमांचल इलाके के चार जिलों कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया में आधार कार्ड की संख्या आबादी से अधिक हो चुकी है। नागरिकता प्रमाण पत्र के रूप में आधार कार्ड की मान्यता न होने बावजूद इस क्षेत्र में इसी के आधार पर धड़ल्ले से निवास प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं।
बीते दो दशक में यह क्षेत्र बांग्लादेश से घुसपैठ में आई तेजी के कारण जनसांख्यिकी में तेजी और लगातार बदलाव से चर्चा में रहा है। 1951 से 2011 तक इस क्षेत्र में मुस्लिमों की आबादी में 16 फीसदी की तीव्र बढ़ोतरी दर्ज की गई। हालिया जातिगत जनगणना में सामने आया कि मुस्लिम आबादी किशनगंज में 68 प्रतिशत, अररिया में 50 प्रतिशत, कटिहार में 45 प्रतिशत और पूर्णिया में 39 प्रतिशत हो गई। कुल मिला कर इन चारों जिलों में मुस्लिम आबादी 47 प्रतिशत हो गई। सीमांचल में तेजी से हो रहे जनसांख्यिकी बदलाव से केंद्र सरकार चिंतित है। चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का आधार भी यही है।
पुनरीक्षण अभियान का सर्वाधिक विरोध राज्य के मुस्लिम इलाकों में है। मुस्लिमों का बड़ा हिस्सा अरसे से विपक्षी महागठबंधन का समर्थन करता रहा है। महागठबंधन विरोध के बहाने मुस्लिमों को गोलबंद करना चाहता है। पूरे देश की करीब 90 फीसदी आबादी के पास आधार कार्ड है। वहीं, बिहार के सीमांचल में यह आंकड़ा आबादी से भी ज्यादा है। किशनगंज में आधार कार्ड की संख्या आबादी का 105.16 फीसदी, अररिया में 102.23 फीसदी, कटिहार में 101.92 फीसदी और पूर्णिया में 101 फीसदी है। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर के चिकेन नेक के करीब है। सीमांचल सहित कुछ चुनिंदा जिलों से जुड़े विस क्षेत्रों में औसतन दस हजार फर्जी मतदाता हैं। आबादी से अधिक आधार कार्ड प्रथम दृष्टया इसे सही साबित करता है। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में विपक्ष सवाल उठा रहा है कि महज तीन से चार महीने में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान कैसे पूरा किया जा सकता है?
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग के सक्रिय होते ही मुस्लिमों की अवैध आबादी भी सक्रिय हो गई। मतदाता सूची से नाम हटे इसके लिए निवास प्रमाण पत्र पाने के लिए मार मची हुई है। किशनगंज में पहले एक महीने में निवास प्रमाण पत्र के लिए 25 हजार आवेदन आते थे। उसकी संख्या एक हफ्ते 1.27 लाख हो गई। घुसपैठियों को बचाने के लिए राजद और कांग्रेस बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण का विरोध कर रही है। बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने पिछले दिनों कहा कि निवास प्रमाण पत्र बनवाने की होड़ से पता चलता है कि किशनगंज में घुसपैठिए कितनी बड़ी संख्या में मौजूद हैं।
बिहार में आगामी 4-5 महीनों में चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले चुनाव आयोग तैयारियों में लगा हुआ है। चुनाव आयोग इसी कड़ी में वोटर लिस्ट का निरीक्षण कर रहा है। सभी मतदाताओं से कागज मांगे जा रहे हैं ताकि उनका नाम वोटर लिस्ट में फिर से शामिल किया जा सके। जैसे ही यह प्रक्रिया चालू हुई है, बिहार के मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज में निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन की संख्या 5-6 गुना बढ़ गई है। किशनगंज में इस बढ़त ने जिले में घुसपैठ और डेमोग्राफी चेंज के सवाल दोबारा खड़े कर दिए हैं। पैन कार्ड, आधार कार्ड और पासपोर्ट जैसे दस्तावेजों में समय और प्रमाण लगते हैं जबकि निवास प्रमाण पत्र आसानी से बन जाता है। यह मसला केवल वोट से ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ता है। किशनगंज बिहार का अकेला ऐसा जिला है जहां मुस्लिम आबादी 70 प्रतिशत से अधिक है और यहां डेमोग्राफी बदलाव तेजी से हुआ है। किशनगंज में बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की घुसपैठ भी बड़े स्तर पर हुई है।
देश की आजादी के समय किशनगंज हिंदू बहुल इलाका था। लेकिन बीते कुछ दशकों में यहां की डेमोग्राफी काफी तेजी से बदली है। अब यहां हिंदू अब एक तिहाई भी नहीं रह गए हैं। यहां हिंदू बीते कुछ दशक में अल्पसंख्यक हो चुके हैं। इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह घुसपैठ है। यह जिला पश्चिम बंगाल की सीमा पर बसा हुआ है। यहां से लगातार बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या गिरफ्तार हुए हैं। किशनगंज की सीमा नेपाल से भी सटी हुई है। किशनगंज में फर्जी आधार और पैन जैसे दस्तावेज बनाने वाले पकड़े गए हैं। यानि यहां बांग्लादेशी और रोहिंग्या को मदद करने वाले भी मौजूद हैं। इसके अलावा, यहां बड़ी संख्या में बंगाली बोलने वाले हैं जो इन घुसपैठियों को आम जनसंख्या में मिलने का मौक़ा देता है।
किशनगंज के जिलाधिकारी विशाल राज ने कहा कि लोग घबराहट में आवासीय प्रमाणपत्र के लिए आवेदन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग के नए नियमों के तहत मतदाता पहचान के लिए जन्मस्थान और तारीख से जुड़े दस्तावेज अनिवार्य कर दिए गए हैं। ऐसे में लोग जल्दबाजी में आवश्यक प्रमाणपत्रों की तलाश में जुटे हैं। वहीं दूसरी ओर इस मामले को लेकर राजद और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह एक खास तबके को मतदान से बाहर करने की साजिश है। राजद के एक नेता ने कहा, जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र या जमीन के कागज नहीं हैं, वे भी दशकों से इस देश के नागरिक हैं। अब उन्हें घुसपैठिया बताना अमानवीय है।
विपक्ष ने मतदाता पुनरीक्षण के विरोध में कल यानि 9 जुलाई को किशनगंज में प्रदर्शन किया। किशनगंज के सांसद के पुत्र और सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता जैरिफ हुसैन ने सर्वोच्च न्यायालय में 8 जुलाई को एक याचिका दाखिल की है। इसमें चुनाव आयोग द्वारा जारी आदेश को चुनौती दी गई है। उल्लेखनीय है कि किशनगंज बिहार का महत्वपूर्ण सीमावर्ती जिला है। जो पश्चिम में अररिया, दक्षिण-पश्चिम में पूर्णिया, पूर्व में पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिला एवं पूर्व में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले से घिरा हुआ है। इस जिले से सटे उत्तर दिनाजपुर जिला की सीमा पर बांग्लादेश और एवं किशनगंज जिले के ठाकुरगंज, दिघलबैंक एवं टेढ़ागाछ प्रखंड सीमा से नेपाल जुड़ता है। इस नाते यह जिला बहुत ही संवेदनशील है।
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