ताकि कोई गैर-नागरिक देश का वोटर न बन जाए

ताकि कोई गैर-नागरिक देश का वोटर न बन जाए

नई दिल्ली, 10 जुलाई (एजेंसियां)। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। तमाम आरोप-प्रत्यारोप, संशय और सियासी शोर के बीच शीर्ष अदालत ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेसिव रिवीजन) पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया। चुनाव आयोग ने चुनाव आयोग के वोटर लिस्ट रिवीजन प्रक्रिया रोके जाने के समय को लेकर भी गंभीर सवाल उठाए।

चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि आपकी (ईसीआई) कवायद समस्या नहीं हैसमस्या समय की है। बिहार में एसआईआर को नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से क्यों जोड़ा जा रहा हैयह चुनावों से इतर क्यों नहीं हो सकताजस्टिस धूलिया ने कहा कि मतदाता सूची को गहन प्रक्रिया के माध्यम से सही करने में कुछ भी गलत नहीं हैताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गैर-नागरिकों का नाम मतदाता सूची में न रह जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने एक याची के वकील से पूछा, आप विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनावों से क्यों जोड़ रहे हैं? उसने कहा कि वे प्रोसेस के खिलाफ हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, चुनाव आयोग जो कर रहा है उसे उसका अधिकार संविधान ने दिया है। सवाल है कि क्या चुनाव आयोग को इंटेंसिव डिवीजन का अधिकार है या नहीं। आप अधिकार को चैलेंज नहीं कर रहे हैं? इस पर याचिका दाखिल करने वाला पक्ष मौन रह गया। उस पक्ष ने कहा कि आधार कार्ड को भी नागरिकता प्रमाण के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि आधार कार्ड का इस्तेमाल नागरिकता के लिए नहीं हो सकता। यह गृह मंत्रालय का काम है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आधार कार्डवोटर आईडी कार्डराशन कार्ड वगैरह को मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए उपयोग कर सकते हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि तेजी से शहरीकरणलगातार माइग्रेशनयुवा वोटर्स का मतदान के लिए पात्र होना और विदेशी अवैध प्रवासियों के नाम का मतदाता सूची में शामिल होना वोटर लिस्ट के रिवीजन के पीछे अहम वजह है।

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