वोटर लिस्ट के रिवीजन का काम जारी रहेगा
बिहार में मतदाता सूची के संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर
संशोधन रोकने को लेकर दाखिल हुई याचिकाएं खारिज
यह करना चुनाव आयोग का अधिकार है : सुप्रीम कोर्ट
पूरे देश में बिहार-मॉडल को लागू करेगा चुनाव आयोग
हर एक घुसपैठिया वोटर लिस्ट से बाहर होगा: सीईसी
नई दिल्ली/पटना, 10 जुलाई (एजेंसियां)। बिहार में चुनाव आयोग द्वारा की जा रही मतदाता सूची की जांच और सुधार की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने उचित ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि वोटर लिस्ट का रिवीजन करना चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ इस पूरी प्रक्रिया के खिलाफ कोई भी अंतरिम रोक लगाने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले को 28 जुलाई को सुनेगा और तब तक चुनाव आयोग इस मामले में और जानकारियां कोर्ट के सामने रखे। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट रिवीजन प्रक्रिया को रोकने से इन्कार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह करना चुनाव आयोग का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमलय बांग्ला की बेंच ने गुरुवार 10 जुलाई को इस मामले में दाखिल याचिकाओं की सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के इस दावे को सिरे से खारिज किया कि चुनाव आयोग यह प्रक्रिया नहीं कर सकता है और उसके पास यह अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोटर लिस्ट का रिवीजन करना चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी के साथ इस पूरी प्रक्रिया के खिलाफ कोई भी अंतरिम रोक लगाने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले को 28 जुलाई को सुनेगा और तब तक चुनाव आयोग इस मामले में और जानकारियां कोर्ट के सामने रखे। सुप्रीम कोर्ट ने इसी सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से कहा कि वह यह पूरी प्रक्रिया चुनाव से कुछ ही महीने पहले क्यों कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके अलावा चुनाव आयोग के आधार कार्ड के दस्तावेज के रूप में स्वीकार न करने के फैसले पर भी प्रश्न उठाए हैं।
चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट ने पहचान के प्रमाण के रूप में आधार और राशन कार्ड को लेने पर विचार करने को कहा है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने तीन बातों पर चुनाव आयोग से जवाब दाखिल करने को कहा है। चुनाव आयोग की प्रक्रिया इस बीच चलती रहेगी। गौरतलब है कि जून, 2024 से चुनाव आयोग ने बिहार के अंदर वोटर लिस्ट रिवाइज करने की कार्यवाही चालू की थी। इसे चुनाव आयोग ने एसआईआर का नाम दिया था। चुनाव आयोग ने इसे 25 जुलाई तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि मतदाता सूची में संशोधन का फार्मूला पूरे देश में लागू किया जाएगा। मतदाता सूची से प्रत्येक घुसपैठिए को बाहर किया जाएगा। असम और बंगाल समेत पूरे देश में 11 दस्तावेजों की जांच की जाएगी। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची की यह गहन समीक्षा देश के हर राज्य में की जाएगी। इसमें घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि की जाएगी। बिहार में वोटर्स की लिस्ट की जांच के बाद, अब यही काम पश्चिम बंगाल और असम में होगा। मुख्य चुनाव आयोग इस अभियान के जरिए यह सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई भी गैर-भारतीय मतदाता सूची में शामिल न हो।
यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है, जब इन राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी पर पहले से ही राजनीति गरमाई हुई है। बिहार में चुनाव के बाद, असम, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में यह अभियान चलाया जाएगा, जहां 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी राज्यों की मतदाता सूचियों की विशेष गहन समीक्षा पूरी करने की योजना है। विपक्षी दलों ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि नागरिकता तय करना सरकार का काम है, न कि चुनाव आयोग का। विपक्षी दल यह भी तर्क दे रहे हैं कि बिहार में ज्यादातर लोगों के पास आधार या राशन कार्ड जैसे दस्तावेज ही हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने 11 विशिष्ट दस्तावेजों की सूची जारी की है, जिनमें ये शामिल नहीं हैं।
चुनाव आयोग का यह अभियान पश्चिम बंगाल और असम में खास तौर पर महत्वपूर्ण है। इन राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी को लेकर लंबे समय से राजनीतिक विवाद रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन राज्यों में मतदाता सूची में बड़ी संख्या में ऐसे लोग शामिल हैं जो भारतीय नागरिक नहीं हैं। चुनाव आयोग का यह अभियान घुसपैठियों को मतदाता सूची से बाहर करने में मदद कर सकता है।
चुनाव आयोग ने मतदाता सूची की समीक्षा के लिए 11 दस्तावेजों की सूची जारी की है, लेकिन इसमें आधार कार्ड, पैन और ड्राइविंग लाइसेंस शामिल नहीं हैं। इसका कारण यह है कि ये दस्तावेज पहचान का प्रमाण तो हैं, लेकिन नागरिकता के प्रमाण नहीं हैं। हालांकि, फॉर्म 6 (नए वोटर बनने के लिए) में आधार का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे यह सवाल उठता है कि अगर आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है तो इसे क्यों स्वीकार किया जाता है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त भी इस बात पर चिंता जता चुके हैं कि आधार का इस्तेमाल गैर-नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल होने का मौका दे सकता है।
वोटर लिस्ट का गहन रिवीजन जरूरी है ताकि मतदान के लिए पहले से रजिस्टर्ड लोगों की प्रामाणिकता की पुष्टि की जा सके। भारत जैसे देश में अवैध इमीग्रेशन एक बड़ी समस्या है। इसलिए वोटर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में ढिलाई नहीं बरती जा सकती। विशेषज्ञों का मानना है कि पहली बार मतदाता बनने वालों के लिए सिर्फ घोषणा ही नहीं, बल्कि नागरिकता का प्रमाण भी अनिवार्य होना चाहिए।
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में जनसंख्या से कहीं अधिक आधार कार्ड और निवास प्रमाणपत्र जारी होने की गड़बड़ी से सरकार चिंतित है। किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी 47 प्रतिशत तक पहुंच गई है। चुनाव आयोग को हर विधानसभा क्षेत्र में 10 हजार फर्जी वोटरों की आशंका है, जिसके चलते मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया गया है।
#बिहारवोटरसूची, #सुप्रीमकोर्टफैसला, #वोटरसूचिसंशोधन, #चुनावआयोग, #लोकतंत्रसुधार, #एसआईआरबिहार, #बिहारचुनाव2025, #फर्जीवोटरमुक्ति