यह भी तय करने चला सुप्रीम कोर्ट
संविधान में राष्ट्रपति सर्वोच्च या सुप्रीम कोर्ट!
विधेयक पर राष्ट्रपति को निर्देश देने का मामला
नई दिल्ली, 20 जुलाई (एजेंसियां)। राष्ट्रपति से सुप्रीम कोर्ट ऊपर है या नीचे, इसका फैसला भी सुप्रीम कोर्ट ही करेगा। आपको याद ही होगा कि विधेयकों को मंजूरी देने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों राज्यपाल से राष्ट्रपति तक को निर्देश देने से परहेज नहीं किया। यह जानते हुए कि संविधान के शीर्ष आसन पर राष्ट्रपति आसीन होता है और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति भी राष्ट्रपति ही करता है, सुप्रीम कोर्ट के दो सामान्य न्यायाधीशों ने तमिलनाडु के प्रसंग में राज्यपाल के साथ-साथ राष्ट्रपति को भी निर्देश देने की हरकत की। अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान-पीठ इस बात पर विचार करेगी कि सुप्रीम कोर्ट का तमिलनाडु संदर्भित फैसला संविधान-सम्मत था या नहीं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ 22 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करेगी।
राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत मांगे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। यह मामला राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा निर्णय लेने की समयसीमा तय करने से जुड़ा है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 13 मई को अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट की सलाह मांगी थी। इस अधिकार के तहत राष्ट्रपति कानून या तथ्य से जुड़े किसी प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकते हैं। हालांकि, कोर्ट की यह राय फैसले की तरह बाध्यकारी नहीं होती है। यह प्रेसिडेंशियल रेफरेंस सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के उस फैसले के पांच हफ्ते बाद मांगा गया था, जिसमें दो-न्यायाधीशों की पीठ ने राष्ट्रपति के पास भेजे गए विधेयकों को मंजूरी देने की अधिकतम समयसीमा तीन महीने तय कर थी। उस फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 विधेयकों को लंबित रखने या अस्वीकृत करने के निर्णय को भी खारिज कर दिया गया था। अब संविधान पीठ तय करेगी कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा तय करना कितना संवैधानिक और व्यावहारिक है।
दरअसल, संबंधित राज्य की विधानसभा से पारित किसी विधेयक को राज्यपाल ने राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा है तो उसे कितने दिनों में लौटाया जाए। संविधान में इसको लेकर किसी तरह की समयसीमा तय नहीं की गई है। तमिलनाडु के राज्यपाल विधानसभा से पास 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजकर उसपर अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया। उधर, राष्ट्रपति की ओर से इसपर तत्काल विचार नहीं किया गया। इसके बाद तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। 8 अप्रैल 2025 को जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली दो जजों की पीठ ने इसपर बड़ा फैसला दिया। कोर्ट ने राज्यपाल की ओर से राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजे गए विधेयकों को क्लियर करने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय कर दी। शीर्ष अदालत के इस आदेश के बाद राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से प्रेसिडेंशियल रेफरेंस मांगा।
राष्ट्रपति की ओर से प्रेसिडेंशियल रेफरेंस मांगे जाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ इसपर 22 जुलाई 2025 को विचार करेगी। अन्य फैसलों की तरह इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई राय बाध्यकारी नहीं होगी। संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत किए गए प्रावधान के अनुसार, प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर पांच जजों की संविधान पीठ ही सुनवाई कर सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मेजोरिटी ओपिनयन के साथ प्रेसिडेंशियल रेफरेंस को वापस लौटा देगा। संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह पर कार्य करता है। सलाहकारी अधिकार क्षेत्र उसे कुछ संवैधानिक मामलों पर कार्य करने के लिए स्वतंत्र सलाह लेने का अधिकार देता है। राष्ट्रपति ने 1950 से अब तक कम से कम 15 मौकों पर इस शक्ति का प्रयोग किया है।
प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के तहत 14 कानूनी प्रश्न शामिल हैं, जो मुख्यतः 8 अप्रैल के फैसले से लिए गए हैं। लेकिन, यह केवल उसी तक सीमित नहीं है। अंतिम तीन सवाल इस बारे में बड़े मुद्दे उठाते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय संविधान द्वारा प्रदत्त विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कैसे करता है। सवाल 12 में पूछा गया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को पहले यह निर्धारित करना होगा कि क्या किसी मामले में कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल है या संविधान की व्याख्या की आवश्यकता है, जिसे केवल एक बड़ी पीठ ही सुन सकती है। यह सवाल अनिवार्य रूप से यह पूछता है कि क्या छोटी पीठ ऐसे महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर सकती है। सवाल नंबर 13 संविधान के अनुच्छेद 142 के उपयोग पर प्रश्न उठाता है, जो कि विवेकाधीन पूर्ण न्याय करने की शक्ति है। अंतिम और 14वां प्रश्न में सर्वोच्च न्यायालय से केंद्र-राज्य विवादों की रूपरेखा निर्धारित करने के लिए कहा गया है जिनकी सुनवाई कोई भी न्यायालय कर सकता है। अनुच्छेद 131 में कहा गया है कि इस संविधान के प्रावधानों के अधीन, सर्वोच्च न्यायालय को, किसी भी अन्य न्यायालय को छोड़कर, किसी भी विवाद में मूल अधिकार क्षेत्र प्राप्त होगा।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से जो 14 सवाल पूछे हैं इसमें उन्होंने राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समयसीमा तय करने जैसे विषयों पर स्पष्टीकरण मांगा है। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में दिए अपने फैसले में कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। अगर तय समयसीमा में फैसला नहीं लिया जाता तो राष्ट्रपति को राज्य को इसकी वाजिब वजह बतानी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानसभा के पास वापस भेज सकते हैं। अगर विधानसभा उस विधेयक को फिर से पारित करती है तो राष्ट्रपति को उस पर अंतिम फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अदालत ने कहा कि अगर राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ जाकर फैसला लिया है तो सुप्रीम कोर्ट के पास उस विधेयक को कानूनी रूप से जांचने का अधिकार होगा।
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