पति को प्रताड़ित करने पर आईपीएस अधिकारी को माफीनामा प्रकाशित करने के निर्देश

पति को प्रताड़ित करने पर आईपीएस अधिकारी को माफीनामा प्रकाशित करने के निर्देश

नई दिल्ली, 22 जुलाई (एजेंसी)। उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक संबंधों में खटास आने पर अपने रसूख का दुरुपयोग करते हुए पति समेत अन्य ससुराल वालों को प्रताड़ित करने के मामले में आरोपी भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) की अधिकारी को तीन दिनों के अंदर प्रमुख अखबारों में बिना शर्त माफ़ीनामा प्रकाशित करने का मंगलवार को निर्देश दिया।


मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए 2018 से अलग रह रहे दोनों पक्षों (पति- पत्नी) के बीच विवाह को भंग कर दिया। पीठ ने महिला द्वारा दायर स्थानांतरण याचिकाओं और अन्य मामलों पर विचार करते हुए इस संबंध में आदेश पारित किया।


पीठ ने अपने पति और ससुर को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने की आरोपी एक आईपीएस महिला अधिकारी और उनके माता-पिता को तीन दिनों के अंदर एक प्रसिद्ध अंग्रेजी और हिंदी दैनिक अखबार में बिना शर्त माफ़ीनामा प्रकाशित करने का निर्देश दिया।
अदालत ने यह माफ़ीनामा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि पर भी प्रसारित करने को कहा है।


शीर्ष अदालत ने पुलिस अधिकारी को उनके पति और उनके पिता को 100 दिनों से ज़्यादा समय तक जेल में बिताने और पूरे परिवार को शारीरिक और मानसिक आघात और उत्पीड़न सहने के लिए मजबूर करने के लिए यह आदेश दिया है।

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अदालत ने हालांकि कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 13 जून, 2022 के फैसले में 'भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, के दुरुपयोग से संबंधित सुरक्षा उपायों के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' पर तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त अधिकारियों द्वारा उनका कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।

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पीठ ने आदेश दिया, “पत्नी द्वारा दायर मुकदमों के कारण उनके पति 109 दिनों तक और ससुर (पति के पिता) 103 दिनों तक जेल में रहे को मजबूर हुए। पूरे परिवार को शारीरिक और मानसिक आघात और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उन्होंने जो कुछ सहा है, उसकी भरपाई या क्षतिपूर्ति किसी भी तरह से नहीं की जा सकती। महिला और उसके माता-पिता तीन दिनों के भीतर पति और उसके परिवार के सदस्यों से बिना शर्त माफ़ी मांगें।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट करते हुए कहा कहा कि यह माफ़ी लंबी कानूनी लड़ाई और उससे जुड़े भावनात्मक और मानसिक तनाव को सौहार्दपूर्ण ढंग से समाप्त करने के लिए मांगी गई है‌‌। इसे दायित्व स्वीकार करने के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए‌‌। इसका कानून के तहत कानूनी अधिकारों, दायित्वों या परिणामों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

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पीठ ने महिला अधिकारी को निर्देश दिया कि वह आईपीएस अधिकारी के रूप में अपने पद और शक्ति या भविष्य में देश में कहीं भी अपने सहकर्मियों या वरिष्ठों या अन्य परिचितों की शक्ति का इस्तेमाल पति, उनके परिवार के अन्य सदस्यों और रिश्तेदारों के खिलाफ कभी न करें।


महिला और उसके पति का विवाह 2015 में हुआ था। अगले वर्ष उनकी एक बेटी का जन्म हुआ , हालांकि वैवाहिक मतभेदों के कारण 2018 से वे अलग रहने लगे। इसके बाद उसके पति और परिवार के सदस्यों के खिलाफ कुल 15 अलग-अलग मामले दर्ज किए गए। पुरूष पक्ष के परिवार के सदस्यों ने भी महिला और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ 10 मामले दर्ज किए। पाँच अन्य मामले एक-दूसरे के खिलाफ थे।


महिला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और पति एवं उसके परिवार के सदस्यों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की दलीलें पेश कहीं। उनकी दलीलें सुनने के बाद अदालत ने सभी मामलों में "दोनों पक्षों के बीच लंबी कानूनी लड़ाई को समाप्त करने और पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने" का निर्देश दिया।


शीर्ष अदालत ने पत्नी अपनी बच्ची को पास रखने की अनुमति दी और पति व उसके परिवार को उससे मिलने का अधिकार दिया। अदालत ने कहा कि महिला का पति और उसके परिवार के स्वामित्व वाली किसी भी चल-अचल संपत्ति पर कोई दावा नहीं होगा।

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