हैदराबाद के लोग कल्लू से मरे या निपाह वायरस से..?
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लोगों को 'कल्लू' से करना होगा परहेज
चमगादड़ों के जरिए ताड़ी में आ रहा निपाह वायरस
दक्षिण भारत में तेजी से फैल रहा है निपाह वायरस
शुभ-लाभ चिंता
हैदराबाद, 27 जुलाई। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लोग कल्लू यानि ताड़ी पीकर मर रहे हैं। भोले-भाले ग्रामीण और निम्न मध्यमवर्ग के लोग कल्लू के जरिए कहीं जानलेवा निपाह वायरस का शिकार तो नहीं हो रहे हैं? खजूर और ताड़ से निकलने वाली ताड़ी में खतरनाक निपाह वायरस का संक्रमण पाए जाने के बाद इसकी आशंका मजबूत हुई है। इसलिए तेलंगानावासी सावधान हो जाएं और अपनी आदत से कल्लू को निकाल बाहर करें, या अत्यंत सावधानी से परीक्षण कराने के बाद ही कल्लू पीयें। कल्लू पीने के पहले उसका लैब परीक्षण कराना मुश्किल होगा, लिहाजा कल्लू से परहेज करना ही बेहतर विकल्प है। स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की ऐसी ही सलाह है।
अभी पिछले ही दिनों जहरीली ताड़ी पीने से दर्जनभर से अधिक लोगों को मौत हुई। ताड़ी पीने के बाद खराब हालत में उन्हें हैदराबाद के निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (निम्स) में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दरम्यान क्रमशः दर्जनभर लोगों की मौत हो गई। निम्स में भर्ती करने के पहले गांधी अस्पताल में उनका इलाज करने की कोशिश की गई, लेकिन स्थिति बेकाबू होते जाने के कारण उन्हें निम्स में भर्ती कराया गया था। निम्स के आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक ताड़ी पीने से लोग सेप्सिस और मल्टीपल ऑर्गन डिसफंक्शन सिंड्रोम (एमओडीएस) से आक्रांत हुए और आखिरकार उनकी मृत्यु हो गई। संक्रमण के कारण लोग प्रणालीगत सूजन से आक्रांत हुए और अंततः लिवर, किडनी और फेफड़े जैसे महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया। संक्रमित ताड़ी के शिकार अधिकांश लोग हैदराबाद के कुकटपल्ली के रहने वाले थे। कई चिकित्सकों का कहना है कि कुकटपल्ली के जिन तीन ताड़ी डिपो से लोगों ने ताड़ी पी थी, उसके नमूनों में अल्प्राजोलम या डायजेपाम मिलाए जाने का संदेह है। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह भी आशंका जताई कि उपयोग में लाई गई ताड़ी निपाह वायरस से संक्रमित हो सकती है। संक्रमित ताड़ी में नशीली दवा मिलाए जाने से वह अत्यंक घातक हो गई। हालांकि प्रशासन का कहना है कि हैदरनगर, शमशीगुड़ा और केपीएचबी कॉलोनी की ताड़ी की तीन दुकानों को सील कर दिया गया है और ताड़ी के सैम्पल की जांच की जा रही है। मृतकों के रक्त के नमूने भी एफएसएल भेजे गए हैं।
ताड़ और खजूर के पेड़ों से निकला रस तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के ग्रामीण समुदायों का लोकप्रिय पेय है। ताड़ी को तेलुगु क्षेत्र में कल्लू कहा जाता है। ग्रामीण इलाकों के लोग ताड़ से निकली ताड़ी को कल्लू और खजूर से निकली ताड़ी को ईठा कल्लू कहते हैं। कल्लू में फर्मेंटेशन जल्दी शुरू हो जाता है और इसमें हानिकारक बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता है, इसलिए यह पेय पदार्थ जानलेवा हो जाता है। ताड़ी जमा करने वाले पात्रों के खुले में टंगे होने के कारण उसे खास तौर पर चमगादड़ जूठा कर देते हैं, जिसके कारण ताड़ी में निपाह वायरस का संक्रमण तेजी से होता है। चमगादड़ निपाह वायरस के सबसे खतरनाक वाहक होते हैं। जिन दिनों हैदराबाद में संक्रमित ताड़ी पीने से लोगों की धड़ाधड़ मौतें हो रही थीं, उन्हीं दिनों यानि 12 जुलाई को केरल के पलक्कड़ जिले में 52 साल के एक व्यक्ति को ताड़ी पीने के बाद निपाह वायरस से संक्रमित पाया गया। तभी स्वास्थ्य विज्ञान के गलियारे से यह सुगबुगाहाट निकली कि दक्षिण भारत में निपाह वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। पलक्कड़ जिले का मामला निपाह वायरस के संक्रमण के ऐसे 46 मामलों में से एक था। केरल के पलक्कड़ और मलप्पुरम जिलों में निपाह संक्रमण के चार ऐसे मामले सामने आए, जिनमें दो रोगियों की देखते-देखते मौत हो गई। दो का इलाज चल रहा है। कुल मिला कर केरल में निपाह वायरस ने अब तक 11 लोगों की जान ली है।
जैव-तकनीक से संबद्ध एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि निपाह वायरस (एनआईवी) अत्यधिक रोगजनक जूनोटिक वायरस है, जो संक्रमित इंसानों में 75 प्रतिशत से अधिक मामलों में मौत का कारण बनता है। टेरोपोडिडे परिवार के फल चमगादड़ इस वायरस के प्राकृतिक भंडार-वाहक हैं। यानि चमगादड़ों में यह वायरस स्वाभाविक रूप से रहता है और ताड़ी में मुंह लगाने या फल जूठा करने से यह वायरस मनुष्यों तक पहुंच जाता है। चमगादड़ों के मूत्र या लार से दूषित ताड़ी के रस के सेवन से मनुष्य निपाह वायरस से संक्रमित हो जाते हैं। जीव वैज्ञानिक ने कहा कि सुअरों या घोड़ों से भी निपाह वायरस आ सकता है। दक्षिण भारत के केरल में तो वर्ष 2018 में भी 17 लोगों की मौत निपाह वायरस से संक्रमित होने के कारण हो गई थी। तेलंगाना में आधाकारिक तौर पर अभी तक निपाह वायरस का कोई सक्रिय प्रकोप सामने नहीं आया है। हालांकि वर्ष 2018 में तेलंगाना में निपाह वायरस के दो संदिग्ध मामले सामने आए थे, जिनके रक्त के नमूने पुणे में राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) भेजे गए थे। उस समय भी केरल में निपाह वायरस का प्रकोप था और तेलंगाना में भी सतर्कता बरती जा रही थी।
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