...तो चिदंबरम और परमवीर पर क्यों न हो कानूनी कार्रवाई!
भगवा आतंकवाद के षडयंत्रकारी कानून के शिकंजे से बाहर क्यों?
परमवीर सिंह ने ही गायब किया था आतंकी कसाब का फोन
नई दिल्ली/मुंबई, 02 अगस्त (एजेंसियां)। मालेगांव विस्फोट मामले में यह साबित हो गया कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिंदू आतंकवाद की व्याख्या (नैरेटिव) स्थापित करने की सुनियोजित साजिश के तहत एक सेनाधिकारी, साधु-संतों और हिंदू संगठनों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर उन्हें भीषण यातनाएं दी थीं। षडयंत्र साबित करने के लिए सरकार ने पुलिस से फर्जी सबूत और फर्जी दस्तावेज बनवाए। महाराष्ट्र पुलिस के एंटी टेररिस्ट स्क्वाड और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) अदालत में मालेगांव विस्फोट मामले के आरोपियों के खिलाफ कोई भी ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई। इसके अलावा सबूत इकट्ठा करने में की गई जालसाजी का भांडा भी फूट गया। अदालत ने सभी आरोपियों के बरी करते हुए जाली सबूत बनाने के मामले की जांच का आदेश दिया है। लेकिन अदालत ने उन नेताओं और उन आला अधिकारियों के खिलाफ कोई जांच या कार्रवाई का आदेश नहीं दिया, जो इस षडयंत्र में सीधे तौर पर लिप्त थे।
मालेगांव विस्फोट मामले में हिंदू आतंकवाद की व्याख्या फैलाने वाले कांग्रेस नेता पी चिदंबरम, दिग्विजय सिंह और मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह एवं जाली सबूत बनाने वाले एटीएस के एसीपी शेखर बागड़े असली षडयंत्रकारी थे, जिन्होंने खतरनाक भेड़िए की तरह मासूम सेनाधिकारी, साध्वी और अन्य साधु-संतों को अपना शिकार बनाया। इन सत्ता पोषित भेड़ियों में ऐसे पुलिस अधिकारी भी शामिल थे, जो मुंबई हमले के समय आतंकवादियों का सामना करने के बजाय वर्दी छोड़ कर भाग गए थे। कायरों की तरह भाग खड़े हुए आईपीएस अधिकारी परमवीर सिंह तत्कालीन कांग्रेस सरकार के परमप्रिय थे। परमवीर सिंह पर गंभीर आपराधिक मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि मुंबई हमले में पकड़े गए आतंकी कसाब का मोबाइल फोन परमवीर सिंह ने ही गायब किया था, जो आज तक नहीं मिला।
कांग्रेस सरकार ने मालेगांव ब्लास्ट के बाद से ही हिंदू समुदाय को बदनाम करने के लिए हिंदू आतंकवादी या भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग शुरू कर दिया था। इस बात की पुष्टि कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे ने ही कुछ वर्ष पहले ही कर दी थी। आपने देखा ही कि मालेगांव धमाके की जांच में शामिल रहे एटीएस के इंसपेक्टर महबूब मुजावर ने कितना बड़ा रहस्योद्घाटन किया। इंसपेक्टर मुजावर को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत और तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया था। इंसपेक्टर मुजावर ने वह आदेश मानने से मना कर दिया था। इस पर आगबबूला हुए परमवीर सिंह ने उन पर कई झूठे केस लाद कर उनका पूरा करियर बर्बाद कर दिया। इंसपेक्टर मुजावर कहते हैं, यह समझ नहीं आ रहा कि परमवीर को अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया है।
इस दावे के अलावा मालेगांव ब्लास्ट में बाइज्जत बरी हुई साध्वी प्रज्ञा ने भी परमवीर सिंह पर प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए हैं। प्रज्ञा ने कहा कि मालेगांव केस में उन्हें हिरासत में भीषण टॉर्चर किया गया, उन्हें बेल्ट से इस तरह पीटा गया कि उन्हें वेंटीलेटर पर रखना पड़ा था। प्रज्ञा ने आरोप लगाया कि उनकी रीढ़ की हड्डी भी टूट गई। उन्हें पोर्न दिखाकर भद्दे सवाल पूछे गए। साध्वी का दावा है कि परमवीर ने भगवा आतंक का झूठा नैरेटिव बनाने के लिए ये सब किया। आईपीएस परमवीर सिंह पर लगाए गए आरोप और दावे पहली बार नहीं हैं। सिंह पर कई बार कानून को ताक पर रखने और हिंदुओं के खिलाफ साजिश करने के आरोप लग चुके हैं। परमवीर का नाम 26/11 के आतंकी हमलों समेत कई बड़े मामलों में आ चुका है, जहां उन पर कानूनी अनियमितताओं और हिंदुओं को फंसाने के गंभीर इल्जाम लगे।
साल 2008 के मालेगांव बम धमाके में जबरन गिरफ्तार की गईं साध्वी प्रज्ञा ने कहा था कि मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमवीर सिंह के कहने पर 3-4 पुलिसकर्मी उन्हें बहुत अधिक प्रताड़ना देते थे। उन्हें हिरासत में लेकर पुलिसकर्मी उन्हें घेर कर मारते थे। उन्हें पूरी रात बेल्ट से इस कदर पीटा गया कि उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और उन्हें वेंटिलेटर पर जाना पड़ा था। परमवीर सिंह की देखरेख में ही साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को हिरासत के दौरान पुरुष कैदियों के साथ रखकर पोर्न वीडियो दिखाया जाता था और भद्दे सवाल किए जाते थे। उन्होंने बताया था कि पहले उनको भगवा आतंकी कहा गया, फिर भारत को आतंकवादी देश घोषित करवाने का प्रयास किया गया।
मालेगांव धमाका मामले में ही कर्नल श्रीकांत पुरोहित पर भी आरोप लगाए गए। उन्हें पुलिस कस्टडी में रखा गया और प्रताड़ित किया गया था। कर्नल ने कोर्ट में बताया कि परमवीर सिंह और एटीएस के अफसरों ने उन्हें किस तरह भयानक यातनाएं दी थीं। उनके साथ मारपीट, गालियां और प्राइवेट पार्ट्स पर हमला किया गया, ताकि वो भगवा आतंकवाद का नैरेटिव कबूल लें। कर्नल का कहना है कि परमवीर ने कांग्रेस की शह पर उन्हें फंसाया और उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी।
26/11 आतंकी हमलों के दौरान मुंबई के पुलिस कमिश्नर हसन गफूर थे। उन्होंने परमवीर सिंह पर आरोप लगाया था कि उन्होंने इस दौरान ड्यूटी करने से मना कर दिया था। गफूर ने कहा था कि कानून-व्यवस्था के संयुक्त आयुक्त केएल प्रसाद, अपराध शाखा के अतिरिक्त आयुक्त देवेन भारती, दक्षिणी क्षेत्र के अतिरिक्त आयुक्त के वेंकटेशम और आतंक रोधी दस्ते के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त परमवीर सिंह मुंबई आतंकी हमले के दौरान अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहे थे।
2008 में हुए इसी हमले को लेकर महाराष्ट्र के रिटायर्ड एसीपी शमशेर खान पठान ने भी परमवीर सिंह पर गंभीर आरोप लगाए। पठान ने मुंबई पुलिस कमिश्नर को लिखे पत्र में कहा कि 26/11 के बाद कसाब के पास से मिले फोन को परमवीर सिंह ने अपने पास रख लिया था। इसे उन्होंने कभी जांच अधिकारियों को दिया ही नहीं। इसी फोन पर कसाब को उसके आका पाकिस्तान से ऑर्डर दे रहे थे। पठान का दावा था कि इस फोन से पाकिस्तान और हिंदुस्तान के हैंडलर्स का पता चल सकता था। पठान ने बताया था कि हमले वाले दिन वो पाईधूनी पुलिस स्टेशन में थे और उनके बैचमेट एनआर माली बतौर सीनियर इंस्पेक्टर डीबी मार्ग पुलिस थाने में कार्यरत थे। उन्होंने लिखा कि 26/11 के दिन अजमल आमिर कसाब को गिरगांव चौपाटी इलाके में पकड़ा गया था। ऐसे में उन्होंने अपने साथी एनआर माली से फोन पर बात की। इस दौरान उन्हें पता चला कि कसाब के पास एक फोन मिला है, जो पहले कॉन्स्टेबल कांबले के पास था और बाद में उससे परमवीर सिंह ने ले लिया।
पूर्व एसीपी के मुताबिक, इस मामले में उनकी माली से बातचीत आगे भी होती रही। उन्हें पता चला कि परमवीर सिंह ने जांच अधिकारी को फोन नहीं दिया है। माली ने शमशेर को ये भी बताया था कि उन्होंने दक्षिण क्षेत्र के आयुक्त वेंकटेशम से मुलाकात की थी और उस फोन के बारे में बताया था। हालांकि इसके बावजूद उन पर कार्रवाई नहीं हुई। जब पूछने के लिए माली परमवीर के पास गए तो सिंह उन पर चिल्लाने लगे और कहा कि इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है।
29 सितंबर 2008 को हुए मालेगांव ब्लास्ट और 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई आतंकी हमले के दौरान केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। वहीं, महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार थी। पी चिदंबरम उस समय केंद्रीय गृह मंत्री थे। कांग्रेस सरकार ने मालेगांव ब्लास्ट के बाद से ही हिंदू समुदाय को बदनाम करने के लिए हिंदू आतंकवादी या भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग शुरू कर दिया था। चिदंबरम ने गृह मंत्री रहते हुए भगवा आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया था। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और सुशील कुमार शिंदे ने इस व्याख्या को फैलाने की कोशिश की। केंद्रीय गृह मंत्री के तौर पर कार्य करते हुए 25 अगस्त 2010 को पी चिदंबरम ने कहा था, मैं आपको सावधान करना चाहता हूं कि भारत में युवा पुरुषों एवं महिलाओं को कट्टरपंथी बनाने के प्रयासों में कोई कमी नहीं आई है। इसके अलावा हाल में भगवा आतंकवाद सामने आया है, जो अतीत में कई बम विस्फोटों में पाया गया है।
सितंबर 2010 में दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने हिंदू आतंकवाद से देश को खतरा बता दिया था। विकीलीक्स खुलासे में ये बात सामने आई थी कि भारत में अमेरिकी राजदूत टिमोशी रोमर को 2010 में राहुल गांधी ने कहा था कि भारत को पाकिस्तान से आने वाले इस्लामिक आतंकवाद से ज्यादा बड़ा खतरा हिंदू आतंकवाद से है। इसके बाद गृह मंत्री रहते हुए सुशील कुमार शिंदे ने 20 जनवरी 2013 को जयपुर में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि भाजपा और आरएसएस के कैंप में हिंदू आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया जाता है। उनके बयान के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणि शंकर अय्यर ने उन्हें मुबारकबाद दी थी।
लगभग 11 वर्षों बाद पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री और कांग्रेस के राजनेता सुशील कुमार सिंह ने 2024 में भगवा आतंकवाद पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि शब्द को इस्तेमाल करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने ही उन पर दबाव डाला था। एक पॉडकास्ट में उन्होंने कहा, भगवा के पीछे आतंकवाद शब्द क्यों लगाया गया मुझे आज तक पता नहीं है। यह नहीं लगना चाहिए था, यह गलत था।
एनआईए कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट के सभी आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता और अभियोजन पक्ष उन पर आरोप साबित करने में भी नाकाम रहा। इसके बाद से ही राजनीतिक गलियारों में चिदंबरम, सोनिया गांधी और अन्य कांग्रेस नेताओं से सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए सार्वजनिक माफी मांगने की मांग उठने लगी है। साथ ही परमवीर सिंह और कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारी की बात भी नेटिजन्स तेजी से सोशल मीडिया पर उठा रहे हैं। सवाल यह है कि हिंदू आतंकवाद या सैफरन टेरर का नैरेटिव गढ़ने और इसे हर हाल में साबित करने पर तुले परमवीर सिंह ने अकेले यह पूरा खेल खेला? या फिर चिदंबरम और सोनिया गांधी ने मिलकर इस नैरेटिव को धरातल पर लाने के लिए और हिंदुओं को बदनाम करने के लिए इस पूरी साजिश का कर्ताधर्ता परमवीर सिंह को बना दिया?
जिस अभिनव भारत संस्था तक को आतंकवादी संगठन साबित करने पर कांग्रेस सरकार तुली हुई थी उसे लेकर मुंबई की विशेष अदालत ने कहा कि अभिनव भारत को तत्कालीन केंद्र सरकार ने आतंकी संगठन घोषित क्यों नहीं किया? अदालत ने कहा, अभिनव भारत ट्रस्ट, संस्था, संगठन या फाउंडेशन कोई भी प्रतिबंधित संगठन नहीं है। मालेगांव विस्फोट मामले में सात लोगों को बरी करने वाली विशेष अदालत ने अभियोजन पक्ष के अभिनव भारत को विस्फोट को अंजाम देने के दावे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभिनव भारत ट्रस्ट या फाउंडेशन प्रतिबंधित संगठन नहीं है। क्योंकि इसे सरकार ने आतंकी संगठन के रूप में प्रतिबंधित नहीं किया है।
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