1978 के दंगे का रिकॉर्ड संभल के थानों से गायब
तत्कालीन सरकार और दंगाइयों की साठगांठ का नतीजा
संभल, 31 अगस्त (एजेंसियां)। संभल में 1978 में हुए दंगों के दौरान दर्ज 169 एफआईआर का रिकॉर्ड संभल कोतवाली और नखासा थाने से गायब है। अब पुलिस मुरादाबाद कार्यालय से रिकॉर्ड तलाश रही है। अब एफआईआर का रिकॉर्ड मिलने पर सही नुकसान का पता चलेगा।
एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई का कहना है कि उस वक्त दंगे से जुड़ी जो एफआईआर दर्ज की गई थीं, उनका रिकॉर्ड होना चाहिए था लेकिन यहां के थानों में वह रिकॉर्ड नहीं मिला। जिला बनने से पहले संभल मुरादाबाद का हिस्सा था। लिहाजा मुरादाबाद से ही सभी सूचनाएं एकत्र की जा रही हैं।
दंगे को 46 वर्ष बीते हैं। इस हिसाब से इन रजिस्टरों को होना चाहिए था लेकिन थानों में उपलब्ध नहीं है। अब पुलिस सारा रिकॉर्ड मुरादाबाद पुलिस कार्यालय से तलाश कर रही है। ऐसे में यह भी सवाल उठना लाजिमी है कि जब मामला दबाया गया तभी उन रिकॉर्ड को भी गायब किया गया होगा।
29 मार्च 1978 को यह दंगा हुआ तो पुलिस प्रशासन ने काबू कर लिया था लेकिन 30 मार्च को दूसरे दिन दंगे ने बड़ा रूप ले लिया। 50 से ज्यादा दुकानों को जलाया गया। इसमें कारोबार पूरी तरह बर्बाद हुआ। कई लोगों की जान भी गईं। पुलिस-प्रशासन ने हालात पर काबू करने के लिए कर्फ्यू लगाया जो दो महीने तक लगा रहा। दो महीने कर्फ्यू लगाने का कारण था कि यह दंगा शहर के साथ देहात क्षेत्र तक फैल गया था। इस दंगे के बारे में सही तथ्य सामने नहीं आए हैं। कहीं नौ हत्याओं का जिक्र किया गया है तो कहीं 24 लोगों की हत्या का जिक्र है। हालांकि मुख्यमंत्री ने तो विधानसभा में 184 लोगों की हत्या किए जाने की बात कही थी। यदि दर्ज एफआईआर का रिकॉर्ड मिल जाता तो उसमें हत्या और दंगे से जुड़े सभी नुकसान सामने आ जाते।
1978 के दंगे की जांच रिपोर्ट संभल पुलिस तैयार कर रही है। एसपी कृष्ण कुमार विश्नोई का कहना है कि शासन द्वारा मांगी गई जानकारी को एकत्र किया जा रहा है। दंगों से जुड़ी सूचनाएं और तथ्य जुटाए जा रहे हैं। दंगे के दौरान हुई घटनाओं, नुकसान और अन्य संबंधित बिंदुओं को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है। जल्द ही यह रिपोर्ट शासन को भेज दी जाएगी। उसके बाद जो निर्देश मिलेंगे उसके आधार पर हम कार्रवाई करेंगे। 1978 के दंगे से सबसे ज्यादा खग्गू सराय के रस्तोगी परिवार हुए थे। इस दंगे के बाद ही 40 परिवारों ने अपने घर बेच दिए थे। कुछ शहर के उन हिस्सों में जाकर बस गए जहां हिंदू थे, बाकी ने मुरादाबाद व दूसरे शहरों की राह पकड़ ली। इसके चलते ही इन रस्तोगी परिवार की देखरेख में रहने वाला शिव मंदिर 46 वर्ष तक बंद रहा।
मुस्लिम लीग के नेता मंजर शफी ने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को लेकर बाजार बंद कराना चाहा था। इस दौरान दुकानदारों से विवाद हो गया था। इसी दौरान अफवाह फैली की मंजर शफी की हत्या कर दी गई है। इसके बाद ही भीड़ में भगदड़ मच गई और इस भगदड़ के बाद ही दंगा शुरू हो गया। दुकानों में लूटपाट, पथराव, आगजनी की गई। इसमें कई लोगों की जान भी गई। इसको लेकर ही दूसरे दिन दंगा हुआ। संभल में 1947, 1948, 1953, 1958, 1962,
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