अफसरों को बंधक बना कर फिरौती में हसीना को वापस मांगते

ढाका में भारतीय उच्चायोग पर हमले की खतरनाक साजिश नाकाम

अफसरों को बंधक बना कर फिरौती में हसीना को वापस मांगते

  • 'रॉ' की सतर्कता से फ्लॉप हुई अमेरिकी डीप स्टेट की साजिश
  • साजिश में शामिल थी आईएसआई और अमेरिका की सीआईए
  • साजिश उजागर होते ही सीआईए फैलाने लगी मनगढ़ंत कहानी
  • खिलाड़ी बनकर आतंकियों ने की थी भारतीय दूतावास की रेकी

शुभ-लाभ विशेष

ढाका के बारीधारा राजनयिक क्षेत्र में स्थित भारतीय उच्चायोग पर बांग्लादेशी आतंकी संगठनों के हमले की एक भयानक तैयारी का पर्दाफाश हुआ है। अमेरिकी डीप स्टेट और अमेरिकी पिट्ठू मोहम्मद यूनुस द्वारा बुने गए षडयंत्र में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी शामिल है। ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग (हाईकमीशन) पर सशस्त्र आतंकवादियों द्वारा हमला कर वरिष्ठ राजनयिकों को बंधक बनाने और फिरौती में नई दिल्ली में शरण लेकर रह रहीं बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का प्रत्यर्पण कराने की खतरनाक तैयारी थी।

भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) को इस साजिश की भनक मिल गई। रॉ ने बांग्लादेश की खुफिया एजेंसी के साथ-साथ रूस, चीन, इजराइल समेत कई देशों को आधिकारिक तौर पर इसकी सूचना दे दी, जिससे यह खतरनाक षडयंत्र फिलहाल नाकाम हो गया। इस साजिश में शामिल एक चरमपंथी संगठन के ऐसे ठोस सबूत खुफिया एजेंसियों को हाथ लग गए, जिसे कोई नकार नहीं पाया। इस खुलासे से घबराकरअमेरिकी खुफिया समुदाय के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से एक कवर स्टोरी गढ़ने की कोशिश की। उन्होंने एक अनजानीकम जानी-पहचानी वेबसाइट के जरिए यह कहानी फैलाई कि चरमपंथियों का असली निशाना ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास था और हमलावर दूतावास में एक खास धर्म के चुनिंदा स्थानीय कर्मचारियों की हत्या करना चाहते थे। लेकिन इस कहानी का कलई जल्दी ही खुल गई। इस कहानी में गंभीर विसंगतियां मिलीं जिसकी गहन जांच की गई और अंततः कहीं ज्यादा विस्फोटक सच्चाई यह सामने आई कि आतंकवादियों का निशाना भारतीय उच्चायोग था, अमेरिकी दूतावास नहीं।

घटना के अमेरिकी प्रायोजित संस्करण के अनुसारबांग्लादेशी अधिकारियों को ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास में काम करने वाले एक हिंदू कर्मचारी के अपहरण और उसकी हत्या की योजना के बारे में खुफिया जानकारी मिली थी। इन आतंकवादियों में जमातुल अंसार फिल हिंदल शर्किया (जेएएचएसऔर भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा (एक्यूआईएस) के सदस्य शामिल थे। जबकि भारत की खुफिया एजेंसी को मिली सूचना में मोड़ बस इतना था कि आतंकियों का निशाना अमेरिकी दूतावास के बजाय भारतीय उच्चायोग था। हमले की तैयारी कर रहे आतंकवादियों ने दूतावास-क्षेत्र में स्थित खुले मैदान में क्रिकेट खेल कर भारतीय उच्चायोग की रेकी की थी।

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आतंकवाद-रोधी विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी एजेंसियों की कहानी जानबूझकर असली तथ्य को छिपाने और भारतीय एजेंसियों एवं बांग्लादेशी सुरक्षा अधिकारियों को गुमराह करने के लिए गढ़ी गई थी। ढाका में भारतीय दूतावास को निशाना बनाने की आतंकवादी साजिश के लीक होने के बादअमेरिका ने अपने बचाव में बांग्लादेश के स्पेशल प्रोग्राम फॉर एम्बैसी ऑगमेंटेशन एंड रेस्पॉन्स (स्पेयर) के साथ मिलकर दूतावास कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए एक विशेष बल बनाने पर चर्चा शुरू कर दी है। यह भी अमेरिका की नई चाल है। स्पेयर का संचालन और वित्तपोषण अमेरिकी विदेश विभाग की राजनयिक सुरक्षा सेवा (डीएसएसके आतंकवाद-रोधी सहायता (एटीएकार्यालय द्वारा किया जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गतभागीदार देशों के कानून प्रवर्तन अधिकारियों से एक 24 घंटे सक्रिय त्वरित प्रतिक्रिया बल (क्यूआरएफका गठन किया जाता हैजो अमेरिकी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आपातकालीन स्थितियों में मिनटों में प्रतिक्रिया देने में सक्षम होता है। एटीए इन बलों को प्रशिक्षणउपकरण और सलाह प्रदान करता है। स्पेयर टीमों ने पहले ही विभिन्न देशों में आतंकवादी हमलों को विफल किया हैदूतावासों के पास होने वाले अपराधों को रोका हैआपातकालीन चिकित्सा सहायता प्रदान की है और कई लोगों की जान बचाई है।

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इस साजिश के समय को बांग्लादेश की अस्थिर राजनीतिक वास्तविकताओं से अलग नहीं किया जा सकता। अगस्त 2024 में शेख हसीना के अपदस्थ होने से ढाका के शासन में एक शून्य पैदा हो गया। चार बार प्रधानमंत्री रहीं हसीना को भारत लंबे समय से दक्षिण एशिया में अपना सबसे विश्वसनीय सहयोगी मानता रहा। उनके नेतृत्व मेंढाका ने अनगिनत आतंकवादी नेटवर्कों को ध्वस्त कियासीमा पार आतंकवाद पर नकेल कसी और यह सुनिश्चित किया कि बांग्लादेश भारत-विरोधी विद्रोहियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह न बने। लेकिन उनके जाने के बादसंयुक्त राज्य अमेरिका ने हिलेरी क्लिंटन और जॉर्ज सोरोस के दलाल मोहम्मद यूनुस को लाकर बांग्लादेश की सत्ता पर बैठा दिया। जबकि यूनुस के पास राजनीतिक वैधता और जमीनी समर्थनदोनों का अभाव था। यूनुस के अंतरिम शासन को अमेरिकी डीप स्टेट एक्सपेरिमेंट कहा जाता है।

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अमेरिकी इशारे और पाकिस्तानी मदद से बांग्लादेश में इस्लामिक चरमपंथी समूहों को बढ़ावा मिला। जमातुल अंसार फिल हिंदाल शर्किया (जेएएचएस)हिज्ब उत-तहरीर और अंसार अल-इस्लाम (अल कायदा का स्थानीय गुट)जो वर्षों से भूमिगत थेफिर से उभरने लगे। यूनुस और उनके सलाहकारों द्वारा किया गया तथाकथित शून्य-उग्रवाद का दावा जमीनी हकीकत में एक खतरनाक गलतबयानी माना जाने लगा। भारत के लिएशेख हसीना का अपने क्षेत्र में अचानक निर्वासन बहुत बड़ा रणनीतिक महत्व रखता था। नई दिल्ली को न केवल उनकी सुरक्षा की गारंटी देनी थीबल्कि उनके भारत समर्थक रुख का विरोध करने वाली ताकतों के संभावित हमले के लिए भी खुद को तैयार रखना था। वाशिंगटन के लिए हसीना एक बाधा थीं। चीन और रूस के साथ उनके मजबूत संबंधों और पश्चिमी हुक्मों की अवज्ञा ने लंबे समय से अमेरिकी डीप स्टेट को परेशान कर रखा था। हसीना के निर्वासन ने विदेशी ताकतों को क्षेत्र को अस्थिर करने का मकसद और मौका दोनों दिया।

इसी नाजुक राजनीतिक पृष्ठभूमि में ढाका स्थित अमेरिकी दूतावास ने बांग्लादेशी अधिकारियों के साथ अपनी साजिशी हरकतें (बैठकें) तेज कर दीं। हालांकि सार्वजनिक रूप से इन्हें सुरक्षा सहयोग के रूप में पेश किया गयालेकिन अंदरूनी जानकारों का मानना है कि इन बैठकों ने एक ऐसा आवरण प्रदान किया जिसके तहत डीप स्टेट ढाका पर दबाव बना सके और साथ ही असली साजिश का पर्दाफाश होने पर अपनी भटकाने वाली कहानी के लिए जमीन तैयार कर सके। इस साजिश का सबसे खतरनाक पहलू इसमें शामिल हथियारों और रसद का पैमाना था। खुफिया एजेंसियों ने इसकी पुष्टि की है कि वर्ष 2023 के अंत से पाकिस्तान से गुप्त रास्तों के जरिए सैकड़ों अत्याधुनिक हथियारों की तस्करी बांग्लादेश में की गई। इन खेपों में कथित तौर पर असॉल्ट राइफलेंस्नाइपर राइफलेंविस्फोटकलड़ाकू वर्दीसैटेलाइट फोन और नाइट-विजन दूरबीनें शामिल हैं।

कराची बंदरगाह और समुद्री तस्करी के जरिए लाए गए इन हथियारों को सीआईए और आईएसआई के तत्वों की जानकारी में बांग्लादेश पहुंचाया गया था। इस्लामी कट्टरपंथी झुकाव के लिए कुख्यात रिटायर बांग्लादेशी सैन्य अधिकारियों ने आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने और उन्हें ऑपरेशन के लिए तैयार करने में पर्यवेक्षक की भूमिका निभाई। यह योजना अपनी सटीकता में खौफनाक थी। आतंकवादी भारतीय उच्चायोग परिसर में मासूमियत भरे बहाने से घुसपैठ करते। बड़े समूह बगल के मैदान में क्रिकेट खिलाड़ी और दर्शक बनकर खड़े होते। एक बार नियंत्रण स्थापित हो जाने परपास के शहजादपुर और बड्डा इलाकों में खड़ी वैन के अंदर छिपे रिमोट-नियंत्रित कार बम परिसर में घुस जाते।

खतरे को और बढ़ाते हुएसाजिशकर्ताओं ने अपनी घेराबंदी का सीधा प्रसारण करने के लिए एक एफएम ट्रांसमीटर लाने की योजना बनाई थी। इसे जेएएचएसहिज्ब-उत-तहरीरअंसार-अल-इस्लाम और यहां तक कि हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे समूहों द्वारा नियंत्रित दर्जनों सोशल मीडिया अकाउंट्स द्वारा बढ़ावा दिया जाना था। उनका लक्ष्य न केवल आतंकित करना थाबल्कि मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ना भी थाजिसमें भारत के अपमान और फिरौती में हसीना के संभावित प्रत्यर्पण का वृत्तांत प्रसारित किया जाता। यह अभियान सफल होतातो परिणाम भयावह होते। भारतीय राजनयिकों को खतरे में डालने के अलावायह क्षेत्रीय संघर्ष को भड़का सकता थाजिससे भारत सीधे पाकिस्तान समर्थित नेटवर्कों के खिलाफ खड़ा हो सकता था और बांग्लादेश को अस्थिरता के एक अनियंत्रित चक्र में घसीट सकता था।

इस साजिश का प्रचारात्मक पहलू भी उतना ही ध्यान देने योग्य है। डीप स्टेट लंबे समय से अपने अभियानों को बढ़ाने के लिए सूचना युद्ध पर निर्भर रहा है। घेराबंदी का सीधा प्रसारण सुनिश्चित करकेषड्यंत्रकारियों का इरादा दुनियाभर में चरमपंथियों की सहानुभूति जुटानामीडिया का ध्यान आकर्षित करना और भारत को प्रतिक्रियावादी रुख अपनाने के लिए मजबूर करना था। इसके अलावाअमेरिकी दूतावास पर हमले की झूठी कहानी का पूर्व-प्रसार करना यह दर्शाता है कि कैसे वास्तविक लक्ष्य को छिपाने के लिए दुष्प्रचार को हथियार बनाया गया था। इस जानबूझकर की गई हेराफेरी ने न केवल वाशिंगटन के गुप्त हितों की रक्षा कीबल्कि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को यह दावा करने का मौका भी दिया कि वह आतंकवाद के खिलाफ पश्चिमी शक्तियों के साथ सहयोग कर रही है। जबकि वास्तव मेंयूनुस के शासन में आतंकवादी संगठन फिर से ताकत हासिल कर रहे हैं।

नाकाम साजिश शेख हसीना की सुरक्षा के भारत के संकल्प को मजबूत करती है। जब तक वह भारतीय धरती पर हैंभारत शत्रुतापूर्ण दबाव में उनके अपहरण या जबरन प्रत्यर्पण का जोखिम नहीं उठा सकता। उनकी रक्षा करना न केवल एक दीर्घकालिक सहयोगी के लिए एक नैतिक दायित्व हैबल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता भी है कि बांग्लादेश कट्टरपंथ और विदेशी हेरफेर की कक्षा में अपरिवर्तनीय रूप से न फंस जाए। ढाका में भारतीय उच्चायोग पर हमले की नाकाम साजिश इस बात की कड़ी याद दिलाती है कि पाकिस्तान की आईएसआई और स्थानीय आतंकवादी संगठनों की सहायता से वैश्विक डीप स्टेट अभिनेता अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किस हद तक जाने को तैयार हैं। यह केवल एक आतंकी साजिश नहीं थी, बल्कि यह भारत को ब्लैकमेल करनेबांग्लादेश को अस्थिर करने और अमेरिकी गुप्त अभियानों को जांच से बचाने के लिए रची गई एक भू-राजनीतिक चाल थी।

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