एससी-एसटी को 23 की जगह दे दिया 78% आरक्षण
नीट में हुआ फर्जीवाड़ा
सामान्य के हिस्से में आई सिर्फ नौ फीसदी सीटें
लखनऊ, 01 सितंबर (एजेंसियां)। राजकीय मेडिकल कॉलेज कन्नौज, अंबेडकरनगर, जालौन और सहारनपुर में एमबीबीएस के दाखिलों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति को 23 के बजाय 78 फीसदी आरक्षण दे दिया गया। वहीं अति पिछड़े वर्ग को 13 फीसदी और सामान्य का हिस्सा सिर्फ नौ फीसदी जबकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) का कोटा लागू ही नहीं किया। ऐसे में हाईकोर्ट ने नीट 2025 की काउंसिलिंग रद्द करने का आदेश दिया है। हालांकि अब चिकित्सा शिक्षा विभाग दोबारा अपील की तैयारी में जुटा है।
प्रदेश में अनुसूचित जाति को 21, अनुसूचित जनजाति को 2, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था है। मेडिकल कॉलेजों का निर्माण अलग-अलग समय पर हुआ है। कन्नौज, अंबेडकरनगर, जालौन और सहारनपुर स्थित मेडिकल कॉलेज के निर्माण के वक्त समाज कल्याण विभाग की ओर से विशेष घटक के तहत 70 फीसदी बजट दिया गया। जबकि 30 फीसदी बजट सामान्य था।
हाईकोर्ट में दाखिल की गई याचिका में बताया गया कि इन कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्रों को हॉस्टल में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों को 70 फीसदी आरक्षण देना था, लेकिन विभागीय अधिकारियों की लापरवाही से इसकी गलत व्याख्या कर दी गई। इसके बाद एमबीबीएस के दाखिलों में अनुसूचित जाति और जनजाति को 23 फीसदी आरक्षण देने की जगह 78 फीसदी आरक्षण दे दिया गया। यह व्यवस्था कई साल से चल रही है। इस वर्ष की काउंसिलिंग में भी इसी व्यवस्था के तहत सीटें आवंटित की गई हैं। ऐसे में हाईकोर्ट ने काउंसलिंग को ही रद्द कर दिया है।
इन चारों कॉलेजों में एमबीबीएस की 100 सीटें हैं। जिसमें 15 फीसदी सीटें केंद्र के कोटे की हैं। बची 85 फीसदी सीटों में 78 फीसदी एससी-एसटी को दी गईं। बाकी सीटों पर पिछड़े व सामान्य वर्ग के अभ्यार्थियों को दाखिला दिया गया। खास बात यह है कि इन चारों कॉलेजों में ईडब्ल्यूएस को एक भी सीट नहीं दी गई। हाईकोर्ट के आदेश को लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग दोबारा अपील की तैयारी में है। इसके लिए संबंधित कॉलेजों के निर्माण से जुड़े दस्तावेज जुटाए जा रहे हैं। उन दस्तावेजों की भी पड़ताल शुरू की गई है, जिसमें निर्माण के वक्त आरक्षण की बात कही गई है। विभाग के अधिकारी यह भी तर्क दे रहे हैं कि संबंधित कॉलेजों में पहले से ही इसी आरक्षण व्यवस्था के तहत एमबीबीएस की सीटें आवंटित होती रही हैं। यही वजह है कि इस वर्ष भी पूर्व में लागू व्यवस्था के तहत सीटें आवंटित की गई है। प्रथम चरण की काउंसलिंग रद्द किए जाने से सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों की सीट मैट्रिक प्रभावित होगी। खाली सीटों के आवंटन में भी दिक्क्तें आएंगी।
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