आधुनिक मैपिंग पद्धति से नदियों की हो रही पहचान
नमामि गंगे मिशन
एक्वीफर मैपिंग से गहरे दबी हुई प्राचीन नदी की पहचान हुई
लखनऊ/प्रयागराज 08 सितंबर (एजेंसियां)। राष्ट्रीय गंगा मिशन (नमामि गंगे) के तहत प्रयागराज में एक्वीफर मैपिंग परियोजना लागू की जा रही है। परियोजना का लक्ष्य गंगा नदी के किनारे जल संचयन के उपायों को बेहतर बनाना और जल स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक स्थायी प्रणाली विकसित करना है। इस परियोजना में नवाचार और तकनीकी दृष्टिकोण को शामिल किया गया है, जिसमें स्मार्ट जल प्रबंधन प्रणाली, रिमोट सेंसिंग और ड्रोन तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है।
यह प्रणाली न केवल जल आपूर्ति में सुधार करेगी, बल्कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने में मदद करेगी। इसके अलावा, जल स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ क्षेत्रीय जल संकट को हल करने के लिए तकनीकी दृष्टिकोणों का कार्यान्वयन किया जा रहा है, जिससे आने वाले समय में पानी की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी। नमामि गंगे अभियान के तहत गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र (प्रयागराज से कानपुर के मध्य) में पेलियो-चैनलों पर केंद्रित एक्वीफर मानचित्रण के दौरान एक उल्लेखनीय उपलब्धि प्राप्त हुई है। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के माध्यम से लगभग 200 किलोमीटर लंबी, लगभग 4 किलोमीटर चौड़ी तथा 15–25 मीटर गहरी दबी हुई प्राचीन नदी की पहचान की है। यह उपलब्धि भारत के इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में एक नया अध्याय जोड़ती है।इस परियोजना के अंतर्गत उपग्रह चित्रण तकनीक, भू-स्थानिक आंकड़ों तथा नवीनतम वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग कर प्राचीन नदी मार्गों एवं भूगर्भीय जलाशयों का विस्तृत मानचित्रण किया गया।
एक्वीफर अध्ययनों से पता चलता है कि यह प्राचीन नदी लगभग 3,500–4,000 मिलियन क्यूबिक मीटर तक जल भंडारण क्षमता रखती है। 150 से अधिक प्रबंधित एक्वीफर मैपिंग पुनर्भरण स्थल चिन्हित किए गए हैं, जहां पुनर्भरण संरचनाएं बनाई जाएंगी ताकि भूजल स्तर बढ़ सके और नदी का आधार प्रवाह स्थायी बना रहे। प्रयागराज में एक्विफर मानचित्रण परियोजना के सफल कार्यान्वयन से भूजल पुनर्भरण में वृद्धि होगी और नदी के प्रवाह में सुधार होगा, जिससे नमामि गंगे मिशन के अविरल गंगा की दृष्टि को बल मिलेगा।
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