आखिरी सांसें लेने लगा इंडी गठबंधन

85 साल बाद बिहार में हुई सीडब्लूसी की बैठक

आखिरी सांसें लेने लगा इंडी गठबंधन

सीडब्लूसी में सोनिया और प्रियंका नहीं आईं

पटना, 24 सितंबर (एजेंसियां)। बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। विधानसभा चुनाव की घोषणा बस होने ही वाली है और राज्य की 243 सीटों पर जंग छिड़ने वाली है। एक तरफ सत्ताधारी एनडीए हैजिसमें नीतीश कुमार की जेडीयू और भाजपा की जोड़ी मजबूत दिख रही है। दूसरी तरफ विपक्ष का इंडी गठबंधनजो महागठबंधन के नाम से जाना जाता है। लेकिन विपक्षी खेमे में अभी से ही घमासान मचा हुआ है।

सीएम पद का चेहरा तय नहीं है। सीटों के बंटवारे पर लड़ाई है और छोटे सहयोगियों की बगावत पूरे परवान पर है। ये सब मिलकर गठबंधन को कमजोर कर रहे हैं। यह कलह इंडी गठबंधन को लेकर डूब जाएगी। इसका अंदेशा है। बिहार चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने की उम्मीद है। 2020 के चुनावों में महागठबंधन ने 243 में से 110 सीटें जीती थींलेकिन सत्ता से बाहर रह गया। अब 2025 में वापसी की कोशिश हैलेकिन गठबंधन के अंदर ही सब कुछ उलझा पड़ा है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सबसे बड़ा दाँव खेल रही हैजबकि कांग्रेस अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने पर अड़ी हुई है। वामपंथी दलविकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जैसे छोटे साथी भी अपनी दुकान चलाने को बेताब हैं। जानकार कहते हैं कि अगर ये विवाद न सुलझेतो गठबंधन का वोट बँट सकता है।

सबसे बड़ा सवाल है कि यदि महागठबंधन जीत गयातो बिहार का अगला सीएम कौन बनेगातेजस्वी यादव खुद को इस पद का मजबूत दावेदार मानते हैं। वे 2020 में डिप्टी सीएम रह चुके हैं। लेकिन कांग्रेस ने अभी तक उनके नाम को स्वीकृति ही नहीं दी है। पार्टी के नेता कहते हैं कि बिना चेहरे के चुनाव लड़ना जोखिम भरा हैलेकिन तेजस्वी को अकेले आगे बढ़ाना गठबंधन के लिए ठीक नहीं। इस बात की खीझ में हाल ही में तेजस्वी ने बयान दे दिया कि वे सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। यह बयान सीट बंटवारे की बातचीत के ठहराव के बीच आयाऔर इसे गठबंधन के अंदर दबाव की रणनीति माना जा रहा है। तेजस्वी ने कहावोटरों से अपील है कि मेरे नाम पर वोट देंचाहे कोई भी सीट हो। यह सुनते ही सहयोगी दल हैरान रह गए। कांग्रेस ने इसे तेजस्वी का अपना स्टैंड बतायालेकिन अंदरखाने में नाराजगी साफ दिख रही है।

कांग्रेस की नजरें राहुल गांधी पर हैं। वे बिहार में वोटर अधिकार यात्रा निकाल चुके हैंजो उसकी नजर में काफी सफल रही। यात्रा में तेजस्वी के साथ उनकी जोड़ी ने विपक्षी एकता का संदेश दियालेकिन अब ये यात्रा कांग्रेस को ज्यादा सीटें दिलाने का हथियार बन गई है। राहुल ने यात्रा के जरिए वोटर लिस्ट से नाम कटने का मुद्दा उठायाहालांकि यह बैकफायर कर गया। यह अलग बात है कि इंडी गठबंधन के अंदर राहुल की यात्रा सीएम चेहरे की बहस को और उलझा रही है। वामपंथी दलों का कहना है कि कहा कि कांग्रेस को यथार्थवादी होना चाहिए और आरजेडी को लचीला। अगर चेहरा तय न हुआतो गठबंधन का वोटर कन्फ्यूज हो सकता है। एनडीए तो नीतीश कुमार को ही आगे रख रहा हैजो स्थिरता का प्रतीक बने हुए हैं।

Read More उत्तरपूर्वी समुद्र तट पर फंसी रोहिंग्याओं की नौका, श्रीलंकाई नौसेना ने 25 बच्चों समेत 102 की बचाई जान

अब बात सीटों की। 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ालेकिन सिर्फ 19 जीतीं। अब पार्टी कम से कम 70-75 सीटें मांग रही है। राहुल की यात्रा के बाद कांग्रेस का हौसला बढ़ा हैऔर वे कहते हैं कि खराब सीटें ही क्यों मिलेंइनमें से 12-15 सीटें वामपंथी दलों की हैंजो पहले जीत चुकी हैं। आरजेडी ये मांग मानने को तैयार नहीं। राजद कहता है कि 2020 का फॉर्मूला ही ठीक हैजिसमें आरजेडी को 144कांग्रेस को 70 और बाकी सहयोगियों को बाटा गया था।

Read More Maha Kumbh Mela Train: क्या किया गया महाकुंभ मेले के लिए ट्रेन में मुफ्त यात्रा का प्रावधान? भारतीय रेलवे का आया इस पर बड़ा बयान

इस बीचकांग्रेस ने दबाव बनाने के लिए आज पटना में केंद्रीय कार्य समिति (सीडब्लूसी) की बैठक बुला ली। यह बैठक 1940 के बाद बिहार में पहली बार हुई है। बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्षी नेता राहुल गांधी शरीक हुए। सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी सीडब्लूसी बैठक में शामिल नहीं हुईं। कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने कहाये सिर्फ बिहार का मुद्दा नहींपूरे देश का है। हम दूसरी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। एनडीए ने इसपर तंज कसा है कि कांग्रेस सीटों के लिए दबाव डाल रही है।

Read More पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ा रहा भारत की टेंशन! विदेश मंत्री एस जयशंकर ने की विदेश मंत्री गिदोन सा'र से बात

अधिक सीटों की कांग्रेस की मांग से वामपंथी दल नाराज हैं। सीपीआई (एमएल) के दीपंकर भट्टाचार्य ने 4-5 दिन पहले बयान दिया कि कांग्रेस की ज्यादा मांग से उनकी सीटें खतरे में हैं। गठबंधन अब 5 से बढ़कर 9 दलों का हो गया है आरजेडीकांग्रेसवामपंथीवीआईपीजेएमएमएलजेपी (रा) जैसे नए साथी जुड़े हैं। सीटें कम हैं और दावेदार ज्यादा। अगर बात न बनीतो छोटे दल बगावत कर सकते हैं।

गठबंधन में एक और तनाव का बड़ा कारण है विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुखिया मुकेश साहनी। वे हर हाल में डिप्टी सीएम का पद चाहते हैं। साहनी कहते हैंतेजस्वी दूल्हा नंबर एकमैं नंबर दो। वे 60-70 सीटें मांग रहे हैंखासकर ईबीसी वोटों के लिए। पहले आरजेडी ने उन्हें उपेक्षित कियातो वे कांग्रेस के करीब चले गए। राहुल की यात्रा में वे बराबर खड़े दिखे। लेकिन अब कांग्रेस भी ठंडी पड़ गई है। साहनी की मांग से बातचीत जटिल हो गई है। जानकार कहते हैं कि अगर साहनी को जगह न मिलीतो वे एनडीए की ओर रुख कर सकते हैं। यह गठबंधन के लिए बड़ा झटका होगाक्योंकि वीआईपी के पास निषाद समुदाय का मजबूत वोट बैंक है।

कांग्रेस का रुख देखते हुए आरजेडी ने जवाबी कार्रवाई तेज कर दी है। पहले कांग्रेस की वोटर अधिकार यात्रा का समापन पटना में होना थालेकिन आरजेडी ने इसे रोका। इसके बाद तेजस्वी ने बिना सहयोगियों के बिहार अधिकार यात्रा शुरू कर दी। ये यात्रा बेरोजगारी और अपराध पर केंद्रित है और तेजस्वी इसमें खुद को मजबूत नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। यात्रा राहुल की कामयाबी को कंसोलिडेट करने का बहाना हैलेकिन असल में गठबंधन में अपनी प्रधानता दिखाने की कोशिश है। सबसे तीखा कदम कुटुंबा सीट पर उठाया गया। यहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार विधायक हैं। आरजेडी कार्यकर्ताओं ने बिना सीट बंटवारे का फॉर्मूले तय हुए ही अपनी तरफ से आरजेडी उम्मीदवार के तौर पर एक नाम भी सामने कर दिया। इस उम्मीदवार का नाम सुरेश राम पासवान हैजो स्थानीय स्तर पर मजबूत माने जाते हैं। यह सीट अभी तक गठबंधन के बंटवारे में नहीं आईफिर भी आरजेडी ने दावा ठोक दिया है।

13 सितंबर को कांग्रेस ने कुटुंबा में सम्मेलन कियातो 15 को घोषणा कर आरजेडी ने 18 को अपना कार्यक्रम रखा। दोनों तरफ से दूसरे दल का कोई नेता नहीं पहुंचा। यह कदम साफ बताता है कि आरजेडी कांग्रेस को आगे बढ़ने नहीं देना चाहता। प्रदेश अध्यक्ष की सीट पर ही दांव खेलकर वह अधिकतम दबाव डाल रहा है। जानकारों का मानना है कि गठबंधन को जल्द फैसला लेना होगा। तेजस्वी की महत्वाकांक्षा अच्छी हैलेकिन गठबंधन की भावना जरूरी। कांग्रेस अगर 60 सीटों पर मान गईतो बात बन सकती है। मुकेश साहनी जैसे सहयोगियों को संतुष्ट करना भी चुनौती है। कुल मिलाकरबिहार चुनाव सिर्फ सीटों की जंग नहींबल्कि गठबंधनों की परीक्षा है। क्या इंडी गठबंधन इन चुनौतियों से पार पा लेगा या एनडीए फिर बाजी मार लेगाआने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।

#CWC #बिहारचुनाव #इंडीगठबंधन #कांग्रेस #पटना #नीतीशकुमार #एनडीए #महागठबंधन

Related Posts