“वोटर लिस्ट पर बवाल तो पार्टियों का बनाया हुआ—सीईसी ज्ञानेश कुमार का करारा जवाब”
मुख्य चुनाव आयुक्त बोले—चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है, कानून के मुताबिक ही हो रहा मतदाता सूची का पुनरीक्षण
पटना/नई दिल्ली, 06 अक्टूबर 2025। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची को लेकर शुरू हुआ विवाद अब चरम पर पहुंच गया है। इस बीच मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्ष के आरोपों पर दो टूक जवाब दिया। उन्होंने साफ कहा कि “वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) चुनाव आयोग का नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों की ही मांग पर किया गया था।”
सीईसी ने कहा कि भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने पहले ही पूरे देश में एसआईआर कराने का निर्णय ले लिया था, और बिहार भी उसी प्रक्रिया का हिस्सा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग ने किसी भी राज्य के साथ भेदभाव नहीं किया है, बल्कि पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए पूरे देश में मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है।
मुख्य चुनाव आयुक्त के अनुसार, बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में मतदान होगा—पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को। मतगणना 14 नवंबर को होगी। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग पूरी पारदर्शिता और संवैधानिक मर्यादा के भीतर रहकर काम कर रहा है।
राजनीतिक दलों की मांग पर हुआ पुनरीक्षण
ज्ञानेश कुमार ने अपने बयान में कहा कि “सोशल मीडिया पर यह भ्रम फैलाया गया कि चुनाव आयोग ने किसी दबाव में या किसी राजनीतिक मकसद से मतदाता सूची में बदलाव किया है, लेकिन सच्चाई यह है कि राजनीतिक दलों ने ही यह मांग उठाई थी कि मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण कराया जाए।”
उन्होंने कहा कि यह आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं कि आयोग किसी दल के पक्ष में काम कर रहा है। “हम संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत काम करने वाली एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था हैं। न तो किसी सरकार के दबाव में काम करते हैं और न ही किसी पार्टी के इशारे पर।”
सीईसी ने कहा कि बिहार सहित सभी राज्यों में मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण एक समान प्रक्रिया के तहत किया गया है। “हमारा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर पात्र नागरिक को मतदान का अधिकार मिले और कोई भी अपात्र व्यक्ति सूची में न रह जाए।”
7.89 करोड़ से घटकर 7.42 करोड़ हुए मतदाता
चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7.89 करोड़ से घटकर 7.42 करोड़ हो गई है। एसआईआर प्रक्रिया में करीब 65 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए हैं, जिनमें से 3.66 लाख मतदाताओं को अपात्र घोषित किया गया। वहीं, फॉर्म-6 के माध्यम से 21.53 लाख नए मतदाताओं के नाम जोड़े गए।
चुनाव आयोग के अनुसार, यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और कानूनी है। सभी राजनीतिक दलों को अंतिम मतदाता सूची की प्रति प्रदान कर दी गई है। आयोग ने स्पष्ट किया कि नामांकन दाखिल करने की तिथि के बाद जारी होने वाली सूची ही अंतिम मतदाता सूची मानी जाएगी।
“आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं”
ज्ञानेश कुमार ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि आधार कार्ड पहचान का प्रमाण है, लेकिन नागरिकता का नहीं। उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कार्ड को पहचान के प्रमाण के रूप में 12वें दस्तावेज़ के रूप में शामिल किया है, परंतु यह नागरिकता या निवास का प्रमाण नहीं माना जाएगा।
सीईसी ने कहा, “आधार अधिनियम की धारा 9 स्पष्ट रूप से कहती है कि आधार न तो नागरिकता का प्रमाण है, न ही निवास का। कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि आधार जन्मतिथि का भी प्रमाण नहीं है। इसलिए हम केवल कानून और न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप काम कर रहे हैं।”
उन्होंने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार, किसी भी नागरिक को वोट डालने का अधिकार तभी प्राप्त होता है जब उसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक हो, वह भारत का नागरिक हो और संबंधित मतदान क्षेत्र का निवासी हो। “हमारा काम यह सुनिश्चित करना है कि इन मानदंडों के अनुरूप हर व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में दर्ज हो।”
“जनप्रतिनिधित्व अधिनियम का पालन कर रहा है आयोग”
मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करना न केवल उचित है बल्कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कानूनी रूप से आवश्यक भी है। उन्होंने कहा कि हर चुनाव से पहले मतदाता सूचियों का संशोधन किया जाता है ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या दोहराव को रोका जा सके।
ज्ञानेश कुमार ने कहा, “कुछ लोग यह सुझाव दे रहे हैं कि एसआईआर चुनाव के बाद कराया जाना चाहिए। लेकिन यह जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के खिलाफ है। कानून साफ कहता है कि हर चुनाव से पहले मतदाता सूची का पुनरीक्षण होना चाहिए, ताकि कोई भी अपात्र व्यक्ति सूची में शामिल न रह जाए।”
उन्होंने कहा कि जो लोग चुनाव के बाद संशोधन की बात कर रहे हैं, वे कानून और प्रक्रिया को नहीं समझते। “चुनाव के बाद संशोधन करने का सुझाव पूरी तरह अनुचित और असंवैधानिक है।”
विपक्ष के आरोपों पर पलटवार
मुख्य चुनाव आयुक्त ने विपक्ष के आरोपों पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “कुछ राजनीतिक दल अपनी हार की आशंका में पहले से ही चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहे हैं। लेकिन यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला है। चुनाव आयोग की पारदर्शिता और निष्पक्षता पर कोई उंगली नहीं उठा सकता।”
उन्होंने आगे कहा, “चुनाव आयोग न तो किसी पार्टी के दबाव में है, न किसी सरकार के इशारे पर काम कर रहा है। हमारा लक्ष्य केवल एक है—निष्पक्ष, स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव कराना।”
“सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाने वालों पर नजर”
सीईसी ने चेतावनी दी कि सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने और भ्रम पैदा करने वालों पर आयोग नजर रख रहा है। “हमने साइबर टीम को निर्देश दिए हैं कि जो भी व्यक्ति या संस्था गलत जानकारी फैला रही है, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। मतदाता सूची को लेकर जनता में भ्रम फैलाना लोकतंत्र के खिलाफ साजिश है।”
पारदर्शिता पर जोर
चुनाव आयोग ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के शुद्धिकरण के दौरान जनता की सक्रिय भागीदारी रही है। लाखों नागरिकों ने स्वयं जाकर या ऑनलाइन माध्यम से अपनी जानकारी अपडेट की। आयोग के अनुसार, “एसआईआर की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से की गई है, जिसमें किसी भी नागरिक का अधिकार प्रभावित नहीं हुआ।”
ज्ञानेश कुमार ने कहा कि मतदाता सूची की अंतिम प्रति सभी राजनीतिक दलों को पहले ही दे दी गई है। “अगर किसी को आपत्ति है, तो वह नियमानुसार आपत्ति दर्ज करा सकता है। लेकिन अफवाह फैलाकर जनता को गुमराह करना उचित नहीं।”
चुनाव आयोग की सख्त मंशा
सीईसी ने दोहराया कि चुनाव आयोग का एकमात्र उद्देश्य निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव कराना है। उन्होंने कहा कि बिहार सहित सभी राज्यों में आयोग समान मानकों पर काम करता है। “हम किसी राज्य या पार्टी के लिए नियम अलग नहीं बनाते। लोकतंत्र की मजबूती के लिए निष्पक्षता हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।”
उन्होंने कहा कि आयोग ने सभी जिलाधिकारियों और निर्वाचन अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या अनियमितता पर तुरंत कार्रवाई की जाए।
निष्कर्ष
बिहार में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही मतदाता सूची पर उठे सवालों ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। विपक्ष जहां चुनाव आयोग पर निष्पक्षता को लेकर सवाल उठा रहा है, वहीं आयोग ने कानूनी प्रक्रिया और पारदर्शिता का हवाला देते हुए खुद को पूरी तरह निर्दोष बताया है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार का यह दो टूक बयान अब विपक्षी दलों के लिए जवाबी चुनौती बन गया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि “वोटर लिस्ट विवाद राजनीति से प्रेरित है, जबकि चुनाव आयोग संविधान और कानून के मुताबिक काम कर रहा है।”
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