प्रसिद्ध लेखक और कहानीकार प्रो. मोगल्ली गणेश का निधन
बेंगलूरु/शुभ लाभ ब्यूरो| प्रख्यात लेखक एवं वरिष्ठ कथाकार प्रो. मोगल्ली गणेश (६४) का रविवार सुबह बीमारी के कारण निधन हो गया| उनके परिवार में पत्नी, तीन बेटियाँ और बड़ी संख्या में पाठक हैं| दिवंगत नेता का अंतिम संस्कार मांड्या जिले के मद्दुर तालुक के मदनायकनहल्ली में होगा| वे पिछले कई दिनों से कई अंगों के काम करना बंद कर देने की समस्या से जूझ रहे थे|
उनका इलाज चल रहा था| मुख्यमंत्री सिद्धरामैया, केंद्रीय मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी, कन्नड़ एवं संस्कृति मंत्री शिवराज और कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है| १ जुलाई, १९६३ को चन्नपट्टना तालुक के संतेमोगेनहल्ली में जन्मे डॉ. मोगल्ली गणेश एक प्रख्यात कन्नड़ कथाकार, निबंधकार, उपन्यासकार और वैचारिक विचारक थे| डॉ. मोगल्ली गणेश का निधन कन्नड़ साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है| उनकी रचनाएँ दलित भावनाओं, सामाजिक न्याय और देसी सोच को जीवंत करती हैं| उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई सम्मान प्राप्त हुए हैं| हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय में लगभग २८ वर्षों तक प्राध्यापक रहे मोगल्ली गणेश ने अपनी अनूठी कहानी शैली से साहित्य जगत में अपनी पहचान बनाई| हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय में सेवारत रहते हुए, उन्होंने ‘कैन सूर्यानु हुचिधान मांधे? और ‘अनादि‘ कविता संग्रहों से अपनी पहचान बनाई|
साधारण ग्रामीण जीवन के अनुभवों ने उनके साहित्य को मिट्टी की खुशबू से भर दिया| उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की और मैसूरु विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की| बाद में, उन्होंने लोक अध्ययन में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की| एक प्रखर दलित विचारक होने के कारण, उन्हें देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में आमंत्रित किया जाता था| बुगुरी, मंटिल, अट्टे, भूमि, कन्नेमाले, देवरा दारी, मोगल्ली कथागल, मोगल्ली गणेश के कहानी संग्रह हैं| अपनी साहित्यिक उपलब्धियों में, उन्होंने कहानियों, कविताओं, आलोचना और आत्मकथाओं में अपनी छाप छोड़ी| बुगुरी कहानी में उन्होंने एक बालक की मानसिकता और एक क्रूर संसार के आघात को अनोखे ढंग से चित्रित किया है| चावल की कहानी भूख, अपमान और स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में साहित्य के माध्यम से फैली है| यह पाठकों में बचपन की यादें जगाती प्रतीत होती है| उनके अन्य कहानी संग्रह जैसे मंटिल, आटे, भूमि, कन्नमले, देवरा दारी और मोगल्ली कथा देसी जीवन की सूक्ष्मताओं को दर्शाते हैं|
मोगल्ली गणेश ने हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय में वरानाटा डॉ. राजकुमार अध्ययन पीठ के निदेशक के रूप में भी कार्य किया है| कन्नड़ एवं संस्कृति विभाग मंत्री शिवराज ने प्रसिद्ध कन्नड़ कथाकार और आलोचक डॉ. मोगल्ली गणेश के निधन पर दुख व्यक्त किया है| कन्नड़ साहित्य में मोगल्ली गणेश का योगदान महत्वपूर्ण है| उन्होंने अपनी अनूठी शैली की कहानियों के जरिए साहित्य जगत में अपनी अलग पहचान बनाई| उन्होंने हम्पी में कन्नड़ विश्वविद्यालय में सेवा की और अपने काव्य संकलनों के माध्यम से अपना नाम बनाया| मोगल्ली गणेश ने हम्पी कन्नड़ विश्वविद्यालय में अपने दामाद डॉ. राजकुमार के नाम पर अध्ययन पीठ के निदेशक के रूप में भी कार्य किया है| मंत्री ने अपने शोक संदेश में कहा कि मोगल्ली गणेश के निधन से कन्नड़ साहित्य ने एक उत्कृष्ट लेखक खो दिया है, जिन्हें कर्नाटक साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था|