तिरुपति लड्डू घोटाले में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने दी सीबीआई डायरेक्टर को राहत
नई दिल्ली, 26 सितंबर (एजेंसियां)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तिरुपति लड्डू प्रसाद में मिलावट और घोटाले के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को बड़ी राहत प्रदान की। अदालत ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें सीबीआई डायरेक्टर को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करने का दोषी करार दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने मामले की व्याख्या तकनीकी आधार पर की है और यह व्याख्या जांच की निष्पक्षता और उसके परिणामों को प्रभावित नहीं करती। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि जांच एजेंसी के कामकाज में अनावश्यक दखल न्याय की प्रक्रिया को कमजोर कर सकता है।
मामला तब उठा जब आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सीबीआई डायरेक्टर ने जांच का जिम्मा जे. वेंकट राव नामक अधिकारी को सौंप दिया था जो स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम के सदस्य नहीं थे। हाईकोर्ट ने इसे सुप्रीम कोर्ट के 2024 के आदेशों का उल्लंघन बताया और सीबीआई पर सख्त टिप्पणी की। इस फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सीबीआई की दलील थी कि जांच की जिम्मेदारी किस अधिकारी को दी जाए, यह पूरी तरह एजेंसी का अधिकार है और इसमें किसी अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे.आर. गवई शामिल थे, ने सुनवाई करते हुए कहा कि यदि कोई अधिकारी टीम का हिस्सा होते हुए जांच की जिम्मेदारी संभालता है तो इसे अदालत की अवमानना नहीं माना जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि केवल नियुक्ति या कार्य विभाजन के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना कि शीर्ष अदालत के आदेश की अवहेलना हुई है, उचित नहीं है। अदालत ने कहा कि जांच की निष्पक्षता और पारदर्शिता ज्यादा महत्वपूर्ण है और यदि अब तक की जांच में ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि गड़बड़ी की गई है, तो इस प्रकार की तकनीकी आपत्ति न्यायिक प्रक्रिया को भटकाने वाली है।
तिरुपति लड्डू, जो भगवान वेंकटेश्वर मंदिर का महाप्रसाद है, अपनी शुद्धता और परंपरा के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। जब इसमें मिलावट की शिकायतें सामने आईं तो भक्तों और श्रद्धालुओं में गहरी नाराजगी देखने को मिली। यह आरोप लगाया गया कि लड्डू में प्रयुक्त घी शुद्ध नहीं है और उसमें मिलावट की जा रही है। इस गंभीर मामले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में एक विशेष जांच टीम गठित कर विस्तृत जांच के आदेश दिए थे। टीम ने शुरुआती चरण में कई गड़बड़ियों का संज्ञान लिया और यह संदेह जताया गया कि इसमें ट्रस्ट के कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत हो सकती है।
इसी बीच सीबीआई डायरेक्टर ने जांच का दायित्व जे. वेंकट राव को सौंपा। यह फैसला तकनीकी रूप से सही था या नहीं, इस पर विवाद खड़ा हो गया। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष तथ्यों पर आधारित नहीं है और जांच एजेंसी की कार्यप्रणाली को बाधित करता है। अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी के पास यह अधिकार है कि वह अपनी टीम का गठन करे और उसे आवश्यकतानुसार पुनर्गठित भी करे, बशर्ते जांच की दिशा निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहे।
सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि किसी अधिकारी की नियुक्ति को लेकर तकनीकी आपत्ति से जांच की सत्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि जे. वेंकट राव एक अनुभवी अधिकारी हैं और उनके नेतृत्व में जांच तेजी से आगे बढ़ रही है। इस दलील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि जांच की प्रगति संतोषजनक है और उसमें पक्षपात के कोई संकेत नहीं मिले हैं, तो केवल नाम या पद के आधार पर विवाद खड़ा करना जांच को प्रभावित करेगा और न्यायिक प्रक्रिया को लंबा खींचेगा।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी पक्ष को जांच की पद्धति पर गंभीर आपत्ति है तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। लेकिन जांच एजेंसी की आंतरिक संरचना पर सवाल उठाना और उस पर तकनीकी आधार पर अवमानना का आरोप लगाना न्याय में देरी और अनावश्यक विवाद को जन्म देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जैसी संस्थाओं को अपनी जिम्मेदारी निभाने का पूरा अधिकार है और न्यायालय का काम यह सुनिश्चित करना है कि जांच निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से आगे बढ़े।
इस फैसले से सीबीआई को बड़ी राहत मिली है क्योंकि हाईकोर्ट के आदेश ने न केवल उसकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए थे बल्कि उसकी साख पर भी असर डाला था। अब सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि जांच एजेंसी को अपने स्तर पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। अदालत ने कहा कि जनता का विश्वास तभी कायम रह सकता है जब जांच पारदर्शी ढंग से आगे बढ़े और उसमें किसी भी प्रकार का पक्षपात न दिखे।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति लड्डू घोटाले की जांच जारी रखने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि एसआईटी की रिपोर्ट मिलने के बाद अगली सुनवाई की जाएगी और तब तक सभी पक्ष जांच की प्रक्रिया में सहयोग करें। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल सीबीआई के लिए राहत लेकर आया है बल्कि इससे यह संदेश भी गया है कि न्यायपालिका जांच की प्रक्रिया में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करेगी, लेकिन पारदर्शिता और निष्पक्षता को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी।
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