अमेरिका सात साल बाद शटडाउन की मार में, भारत में वीजा सेवाओं पर भी असर की आशंका
कांग्रेस में गतिरोध से ठप हुआ संघीय तंत्र, पासपोर्ट और वीजा सेवाओं में देरी की चेतावनी
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (एजेंसियां)। सात साल बाद एक बार फिर अमेरिकी सरकार शटडाउन की स्थिति में पहुंच गई है। यह बंद केवल अमेरिका की आंतरिक प्रशासनिक सेवाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर विदेशों में मौजूद अमेरिकी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों की सेवाओं पर भी देखने को मिल सकता है। भारत में पासपोर्ट और वीजा सेवाएँ जारी रहने का आश्वासन तो दिया गया है, लेकिन प्रक्रिया की रफ्तार धीमी होने की आशंका जताई जा रही है।
अमेरिकी दूतावास ने स्पष्ट किया है कि भारत समेत अन्य देशों में पर्यटक वीजा, व्यावसायिक वीजा और रोजगार आधारित H1-B वीजा जैसी श्रेणियों की सेवाएं फिलहाल सामान्य रूप से जारी रहेंगी। लेकिन स्टाफ की संख्या घटने और प्रशासनिक रुकावटों के चलते प्रोसेसिंग टाइम लंबा हो सकता है। दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बयान जारी कर कहा कि पासपोर्ट और वीजा सेवाएँ इस समय प्रभावित नहीं होंगी, लेकिन प्रक्रिया की गति पर असर पड़ना तय है। दूतावास ने यह भी स्पष्ट किया कि पूर्ण संचालन फिर से शुरू होने तक केवल जरूरी सुरक्षा संबंधी जानकारी ही साझा की जाएगी।
सात साल बाद हुआ यह शटडाउन अमेरिकी राजनीति में गहरे ध्रुवीकरण का परिणाम है। कांग्रेस में सहमति न बनने की वजह से आम नागरिक से लेकर प्रवासी समुदाय तक सभी प्रभावित हो रहे हैं। भारत में फिलहाल सेवाएँ जारी रहने का आश्वासन दिया गया है, लेकिन देरी अवश्य होगी। यह स्थिति कितने दिनों तक बनी रहती है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि अमेरिकी कांग्रेस कितनी जल्दी बजट पर सहमति बना पाती है। यदि समझौता जल्द नहीं होता, तो न केवल अमेरिकी नागरिकों, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेषकर भारत जैसे देशों को भी इस शटडाउन का खामियाजा भुगतना पड़ेगा
शटडाउन का वास्तविक अर्थ और उसका असर
शटडाउन का सीधा अर्थ है कि अमेरिकी सरकार के वे सभी विभाग और एजेंसियाँ, जिन्हें अनिवार्य श्रेणी में नहीं रखा गया है, तत्काल प्रभाव से बंद कर दी जाती हैं। इस दौरान हजारों संघीय कर्मचारी कामकाज से दूर हो जाते हैं और उन्हें बिना वेतन के अनिश्चितकालीन छुट्टी पर भेज दिया जाता है। इन्हें तकनीकी भाषा में ‘फर्लो’ कहा जाता है। इसके उलट वे कर्मचारी जिनकी सेवाएँ जीवन और संपत्ति की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं, जैसे सेना, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, पुलिसिंग और आपात सेवाएँ, उन्हें बिना वेतन के ही काम करना पड़ता है। यह स्थिति तब तक बनी रहती है जब तक कि कांग्रेस में बजट और खर्च विधेयक को लेकर समझौता नहीं हो जाता।
शटडाउन का असर व्यापक होता है। पर्यटक स्थलों का संचालन रुक जाता है, वैज्ञानिक शोध और सरकारी अनुदान से चल रहे प्रोजेक्ट ठप हो जाते हैं, प्रशासनिक मंजूरियों की प्रक्रियाएँ अटक जाती हैं और सबसे अहम बात यह कि आम नागरिक और विदेशी नागरिकों से जुड़ी सेवाएँ प्रभावित होने लगती हैं। यही कारण है कि भारत समेत अन्य देशों में अमेरिकी दूतावासों ने पहले से ही चेतावनी जारी कर दी है कि निर्धारित अपॉइंटमेंट्स तो जारी रहेंगे, लेकिन देरी की संभावना बनी हुई है।
शटडाउन की जड़ में है कांग्रेस का गतिरोध
अमेरिकी राजनीति में शटडाउन एक गंभीर परिघटना है, जो तब होती है जब कांग्रेस के दोनों सदनों में बजट और खर्च विधेयक पर सहमति नहीं बन पाती। इस बार भी रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच स्वास्थ्य सेवा खर्च को लेकर गहरी खींचतान देखने को मिली। रिपब्लिकन पार्टी, जिसका नेतृत्व तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर रहे थे, कांग्रेस में बहुमत रखते हुए भी सीनेट में आवश्यक 60 वोट नहीं जुटा सकी। सीनेट में डेमोक्रेट्स का प्रभाव होने के कारण रिपब्लिकन विधेयक पास नहीं कर पाए। डेमोक्रेट्स का आरोप था कि प्रस्तावित विधेयक से आम अमेरिकियों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं महंगी हो जातीं, इसलिए वे इसके समर्थन में नहीं आए। यही टकराव अमेरिकी प्रशासन को शटडाउन की ओर ले गया।
भारत में क्या होगा असर
भारत में अमेरिकी वीजा सेवाओं की बड़ी मांग रहती है। हर साल हजारों भारतीय छात्र शिक्षा के लिए, पेशेवर रोजगार के लिए और आम नागरिक पर्यटन के लिए अमेरिका जाते हैं। H1-B वीजा तो विशेष रूप से भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए अहम है। अमेरिकी दूतावास ने भले ही स्पष्ट किया हो कि सेवाएँ जारी रहेंगी, लेकिन स्टाफ की कमी और प्रशासनिक बाधाओं के चलते इंटरव्यू की तारीखें आगे खिसक सकती हैं और पासपोर्ट-वीजा प्रक्रिया में देरी हो सकती है। इससे न केवल छात्रों और पेशेवरों को नुकसान होगा, बल्कि अमेरिकी कंपनियों को भी भर्ती और कार्यशक्ति प्रबंधन में दिक्कत का सामना करना पड़ेगा।
पिछले शटडाउन का अनुभव और वर्तमान आशंका
अमेरिका के इतिहास में कई बार शटडाउन हुए हैं, लेकिन सबसे लंबा शटडाउन 2018-19 में हुआ था, जब डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में सरकार लगभग 35 दिनों तक बंद रही। इस दौरान हजारों आवेदनों की प्रक्रिया ठप हो गई और महीनों तक बैकलॉग बना रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा शटडाउन यदि लंबा खिंचता है तो हालात और कठिन हो जाएंगे। प्रोसेसिंग टाइम बढ़ेगा, नए आवेदनों पर असर पड़ेगा और पहले से तय अपॉइंटमेंट्स को भी पूरा करने में अधिक समय लग सकता है।
शटडाउन की वैश्विक छवि पर असर
शटडाउन केवल प्रशासनिक संकट नहीं है, बल्कि यह अमेरिका की राजनीतिक अस्थिरता को भी उजागर करता है। जब विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बार-बार बजट गतिरोध में फंसकर सरकारी सेवाएँ रोक देती है, तो इससे उसकी वैश्विक छवि कमजोर होती है। खासतौर पर उन देशों में, जो अमेरिकी तकनीक और सेवाओं पर निर्भर हैं, शटडाउन अविश्वास पैदा करता है। भारत जैसे देशों के लिए यह स्थिति और भी संवेदनशील है क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय अमेरिका के वीजा, शिक्षा और रोजगार पर निर्भर रहते हैं।
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