स्वदेशी, आत्मनिर्भरता और विश्व नेतृत्व की राह पर भारत: भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का विजयादशमी भाषण
अमेरिका की टैरिफ नीति पर प्रहार, भारत को दिया आत्मनिर्भर बनने का मंत्र, गांधी-शास्त्री को याद कर रेखांकित की राष्ट्रभक्ति
नागपुर, 2 अक्टूबर (एजेंसियां)।विजयादशमी के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में दिए अपने वार्षिक भाषण में देश और दुनिया को कई संदेश दिए। उन्होंने जहां अमेरिका की टैरिफ नीति की आलोचना करते हुए कहा कि यह केवल उनके स्वार्थ को ध्यान में रखकर बनाई गई है, वहीं भारतवासियों से आह्वान किया कि वे स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ें। भागवत ने कहा कि वैश्विक संबंध आवश्यक हैं, लेकिन किसी भी देश की नीति केवल निर्भरता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि हमें अपनी शक्ति और संसाधनों पर विश्वास करते हुए आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाने चाहिए, साथ ही विश्व के सभी मित्र देशों के साथ आपसी सम्मान और स्वेच्छा पर आधारित संबंध बनाए रखने चाहिए।
भागवत ने कहा कि आज पूरी दुनिया भारत की ओर देख रही है। वैश्विक चिंताओं और चुनौतियों का समाधान केवल वही देश कर सकता है, जो विविधता में एकता और मानवीय मूल्यों का आदर्श प्रस्तुत करे। उनके अनुसार, भारत इस भूमिका के लिए सबसे उपयुक्त है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मांड भारत से अपेक्षा कर रहा है कि वह उदाहरण बने और दुनिया को दिशा दिखाए।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का विजयादशमी भाषण केवल एक पारंपरिक संबोधन नहीं था, बल्कि यह भारत के भविष्य की दिशा और दृष्टि को प्रस्तुत करने वाला था। उन्होंने जहां अमेरिका की स्वार्थपूर्ण नीतियों पर निशाना साधा, वहीं भारत को आत्मनिर्भर बनने का आह्वान किया। विविधता में एकता, सामाजिक समरसता और वैश्विक नेतृत्व की उनकी बातें इस बात को दर्शाती हैं कि भारत की राह केवल स्वदेशी और आत्मनिर्भरता से होकर ही गुजरेगी।
महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री को याद कर उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत का भविष्य उसके अतीत से ही प्रेरणा ले सकता है। विजयादशमी का यह संदेश पूरे राष्ट्र के लिए प्रेरणादायी है कि अच्छाई और सत्य हमेशा विजयी होंगे, बशर्ते समाज संगठित होकर सही दिशा में आगे बढ़े।
स्वदेशी और आत्मनिर्भरता पर जोर
मोहन भागवत ने अपने भाषण में अमेरिका द्वारा अपनाई गई नई टैरिफ नीति पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह नीति अमेरिकी हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, लेकिन इसका असर दुनिया के हर देश पर पड़ता है। भागवत ने कहा कि दुनिया में कोई भी देश अकेले नहीं चल सकता, सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं, लेकिन यह निर्भरता मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत को अपने संसाधनों पर भरोसा कर आत्मनिर्भर बनना होगा और स्वदेशी की राह पर चलना होगा।
उन्होंने कहा कि हमें अपने मित्र देशों के साथ संबंध बनाए रखने चाहिए, लेकिन यह संबंध केवल हमारी स्वेच्छा से और आपसी सहयोग पर आधारित होने चाहिए। उन्होंने इस संदर्भ में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विचार को सबसे उपयुक्त बताते हुए कहा कि यही भारत की पहचान बनेगी और यही उसे वैश्विक नेतृत्व की राह पर ले जाएगी।
विविधता और सामाजिक समरसता पर बल
भागवत ने अपने भाषण में भारत की विविधता को विशेष रूप से रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जब भी कोई विदेशी विचारधारा भारत में आई, हमने उसे अपनाया और अपनी संस्कृति के साथ उसका समन्वय किया। यही भारत की ताकत है। लेकिन आज कुछ ताकतें इस विविधता को भिन्नता में बदलने का प्रयास कर रही हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि किसी भी समाज में भिन्नता को भड़काकर असहमति और अराजकता पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने कहा कि जब समाज में अलग-अलग मान्यताओं वाले लोग रहते हैं, तो स्वाभाविक है कि कभी-कभी शोर और असहमति हो सकती है। लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि कानून और सद्भाव का उल्लंघन न हो। उन्होंने कानून अपने हाथ में लेने, हिंसा और गुंडागर्दी का सहारा लेने और शक्ति प्रदर्शन जैसे कृत्यों की कड़ी निंदा की। भागवत ने कहा कि ये सभी पूर्व नियोजित षड्यंत्र हैं जिनका उद्देश्य समाज को बांटना है।
उन्होंने समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे ऐसे प्रयासों से दूर रहें और आपसी संवाद, सहयोग और सम्मान के साथ आगे बढ़ें। उनके अनुसार, भारत की ताकत उसकी विविधता में है और यदि हम इसे भिन्नता में बदलने की अनुमति देंगे तो यह हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाएगी।
महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धांजलि
अपने वार्षिक विजयादशमी भाषण में मोहन भागवत ने महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती पर विशेष श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि गांधी जी न केवल स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे, बल्कि उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत की आत्मा को पहचाना और उस पर आधारित भारत की कल्पना की।
उन्होंने कहा कि गांधी जी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। सत्य, अहिंसा और आत्मबल के उनके सिद्धांत भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं। भागवत ने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि हम गांधी जी के आदर्शों को व्यवहार में लाएँ और उनके बताए मार्ग पर चलकर भारत को विश्वगुरु बनाएँ।
भागवत ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी स्मृति ताजा की। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी सादगी, विनम्रता, सत्यनिष्ठा और दृढ़ संकल्प के प्रतीक थे। उन्होंने राष्ट्र के लिए अपना जीवन बलिदान किया और ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देकर भारत को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने का मंत्र दिया। भागवत ने कहा कि शास्त्री जी का जीवन हमें सिखाता है कि एक व्यक्ति सच्चे अर्थों में मानव कैसे बन सकता है और समाज व राष्ट्र के लिए किस प्रकार योगदान दे सकता है।
विजयादशमी का संदेश और समाज की जिम्मेदारी
भागवत ने विजयादशमी के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है और हमें यह स्मरण दिलाता है कि संगठित होकर ही हम बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों और आम नागरिकों से आह्वान किया कि वे समाज को मजबूत बनाने में योगदान दें और भारत को आत्मनिर्भर व शक्तिशाली बनाने की दिशा में कार्य करें।
भागवत ने कहा कि भारत को आज केवल अपनी ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की जिम्मेदारी उठानी है। उन्होंने कहा कि विश्व में बढ़ती चुनौतियों, आतंकवाद, असमानता और पर्यावरण संकट जैसी समस्याओं का समाधान भारत ही दे सकता है। भारत की संस्कृति और मूल्य ही दुनिया को शांति और स्थिरता की राह दिखा सकते हैं।
#RSS, #MohanBhagwat, #VijayadashamiSpeech, #Swadeshi, #AtmanirbharBharat, #USIndiaRelations, #MahatmaGandhi, #LalBahadurShastri, #IndianDiversity, #GlobalLeadership