बच्चों के खिलाफ अपराध बढ़े, 17,000 लड़कियां अगवा हुईं

 एनसीआरबी की हाथी चाल: 2025 के अंत में आई 2023 की रिपोर्ट

बच्चों के खिलाफ अपराध बढ़े, 17,000 लड़कियां अगवा हुईं

एक वर्ष में पॉक्सो के तहत दर्ज हुए 66 हजार मामले

जबरन बाल विवाह की घटनाओं में हुई बेतहाशा वृद्धि

 

नई दिल्ली, 03 अक्टूबर (एजेंसियां)। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबीकी ताजा रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में बच्चों के खिलाफ अपराधों में पिछले वर्षों की तुलना में बड़ी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2022 की तुलना में 2023 में ऐसे मामलों में 9.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई और कुल 1,77,335 मामले सामने आएजबकि 2022 में यह संख्या 1,62,449 और 2021 में 1,49,404 थी।

बाल विवाह के दर्ज मामलों की संख्या 2023 में पिछले वर्ष की तुलना में छह गुना बढ़ी है। इसमें अकेले असम में कुल मामलों का लगभग 90 प्रतिशत दर्ज किया गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों में यह जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिकसाल 2023 में 16,737 लड़कियों और 129 लड़कों को जबरन शादी के लिए अगवा किया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2023 में इस अधिनियम के तहत 6,038 मामले दर्ज किए गएजो कि 2022 में 1,002 मामलों और 2021 में 1,050 मामलों की तुलना में काफी अधिक हैं। इनमें असम ने 5,267 मामले दर्ज किएइसके चलते यह राज्य सबसे अधिक मामलों वाला राज्य बना। इस सूची में अन्य अधिक संख्या वाले राज्यों में तमिलनाडु (174), कर्नाटक (145) और पश्चिम बंगाल (118) शामिल हैं। कई राज्य और केंद्रीय राज्य जैसे छत्तीसगढ़नगालैंडलद्दाख और लक्षद्वीप में इस दौरान कोई मामला दर्ज नहीं किया गया।

2005 की तुलना में बच्चों के खिलाफ अपराध का आंकड़ा करीब दस गुना ज्यादा हैजो स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। राज्यों के आंकड़ों पर नजर डालें तो मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 22,393 मामले दर्ज हुएइसके ठीक बाद महाराष्ट्र में 22,390 मामले सामने आए। उत्तर प्रदेश ने 18,852, राजस्थान ने 10,577 और असम ने 10,174 मामलों की रिपोर्ट की। यह आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि बच्चों के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं और कुछ राज्यों में स्थिति बेहद चिंताजनक है।

साल 2023 में बच्चों के खिलाफ हत्या के प्रयास से जुड़े कुल 290 मामले दर्ज किए गएजिनमें पीड़ितों की संख्या 337 रही। इस आधार पर अपराध दर 0.1 प्रति लाख आबादी रही। इसी तरहउजागर करने और परित्याग से जुड़े मामलों की संख्या 653 रहीजिनमें 664 बच्चे पीड़ित बने। इन मामलों की भी अपराध दर 0.1 प्रति लाख आबादी दर्ज की गई। साल 2023 में बच्चों के अपहरण और किडनैपिंग से जुड़े कुल 79,884 मामले दर्ज किए गएजिनमें 82,106 बच्चे पीड़ित बने। इन अपराधों की दर 18.0 प्रति लाख आबादी रही। ये सभी मामले भारतीय दंड संहिता (आईपीसीकी धारा 363, 363A, 364, 364A, 365, 366, 366A, 367, 368 और 369 के तहत दर्ज हुए।

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राज्यवार आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र इस सूची में सबसे आगे रहाजहां 12,089 मामले और 12,971 पीड़ित सामने आए। इसके बाद मध्य प्रदेश में 9,833 मामले और 9,900 पीड़ितओडिशा में 5,905 मामले और 5,906 पीड़ितराजस्थान में 4,441 मामले और 4,465 पीड़ित तथा कर्नाटक में 3,228 मामले और 3,292 पीड़ित दर्ज किए गए। एनसीआरबी के आंकड़े उन राज्यों को दर्शाते हैं जहां बाल अपहरण और व्यपहरण के सर्वाधिक मामले सामने आते हैं।

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साल 2023 में बच्चों से जुड़े गंभीर अपराधों के आंकड़े भी सामने आए। बाल तस्करी के कुल 397 मामले दर्ज हुएजिनमें 1,425 बच्चे पीड़ित थे। वहींबच्चों से बलात्कार के 849 मामले दर्ज किए गएजिनमें 852 पीड़ित शामिल थे। अगर भारतीय दंड संहिता (आईपीसीके तहत दर्ज सभी अपराधों को देखें तो साल 2023 में बच्चों के खिलाफ कुल 98,399 मामले और 1,05,094 पीड़ित दर्ज किए गए।

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साल 2023 में बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामले सबसे ज्यादा कुछ चुनिंदा राज्यों में दर्ज हुए। मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 15,840 मामले दर्ज हुए और 16,546 बच्चे पीड़ित बने। इसके बाद महाराष्ट्र में 13,461 मामले और 14,473 पीड़ितउत्तर प्रदेश में 10,089 मामले और 10,335 पीड़ितबिहार में 7,018 मामले और 7,397 पीड़ितजबकि राजस्थान में 6,180 मामले और 6,237 पीड़ित सामने आए। ये आंकड़े बताते हैं कि बच्चों के खिलाफ अपराधों में सबसे आगे ये पांच राज्य रहे।

साल 2023 में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों मेंजो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज (पॉक्सो) एक्ट के तहत दर्ज हुएकुल 67,694 मामले और 68,636 पीड़ित सामने आए। इनमें सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुएजहां 8,706 घटनाएं और 8,966 पीड़ित थे। इसके बाद महाराष्ट्र में 8,639 मामले और 8,761 पीड़ितमध्य प्रदेश में 6,517 मामले और 6,559 पीड़िततमिलनाडु में 4,581 मामले और 4,728 पीड़ितजबकि कर्नाटक में 3,878 मामले और 3,992 पीड़ित दर्ज किए गए। ये पांच राज्य पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज अपराधों में सबसे ऊपर रहे।

साल 2023 में पॉक्सो एक्ट की धारा 4 और 6 को आईपीसी की धारा 376 के साथ मिलाकर देखे तो कुल 40,434 मामले दर्ज हुएजिनमें 40,846 पीड़ित थे। इनमें से ज्यादातर मामले लड़कियों से जुड़े थे। 40,046 मामले और 40,423 पीड़ित। वहींलड़कों से जुड़े 388 मामले दर्ज हुएजिनमें 423 पीड़ित शामिल थे। इसी तरहपॉक्सो एक्ट की धारा 8 और 10 को आईपीसी की धारा 354 के साथ मिलाकर देखें तो कुल 22,444 मामले दर्ज हुएजिनमें 22,868 पीड़ित थे। इनमें से 22,149 मामले लड़कियों से जुड़े थेजिनमें 22,557 पीड़ित थींजबकि 295 मामले लड़कों से जुड़े थेजिनमें 311 पीड़ित दर्ज किए गए।

साल 2023 में बच्चों से जुड़े कई गंभीर मामले पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज किए गए। पॉक्सो की धारा 12 और आईपीसी की धारा 509 के तहत कुल 2,826 मामले दर्ज हुएजिनमें 2,910 पीड़ित थेजिनमें से 2,778 मामले लड़कियों और 48 मामले लड़कों से जुड़े थे। वहींपॉक्सो की धारा 14 और 15 को आईपीसी की धारा 376, 354 और 509 के साथ मिलाकर देखें तो 722 मामले दर्ज हुएजिनमें 727 पीड़ित थेजिनमें से 698 मामले लड़कियों और 24 मामले लड़कों से जुड़े थे।

पॉक्सो एक्ट और आईपीसी की धारा 377 के तहत 734 मामले दर्ज हुएजिनमें 745 पीड़ित थेइसमें 48 मामले लड़कियों और 686 मामले लड़कों से जुड़े थे। इसके अलावापॉक्सो की धारा 17 से 22 के तहत 534 मामले दर्ज हुएजिनमें 540 पीड़ित थेजिनमें से 513 मामले लड़कियों और 21 मामले लड़कों के थे। साल 2023 में बाल विवाह प्रतिबंध कानून के तहत भी 6,038 मामले दर्ज हुएजिनमें 6,051 बच्चे पीड़ित बने। ये आंकड़े बच्चों के खिलाफ अपराधों और बाल संरक्षण की गंभीरता को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।

साल 2023 में साइबर अपराध/सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत बच्चों से जुड़े 1,681 मामले दर्ज हुएजिनमें 1,736 पीड़ित थे। इसमें 1,499 मामले और 1,536 पीड़ित ऐसे थे जो बच्चों को यौन कृत्यों में दिखाने वाले सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से जुड़े थे। सभी अपराधों को मिलाकर देखें तो बच्चों के खिलाफ कुल 1,77,335 मामले और 1,86,521 पीड़ित दर्ज किए गए। राज्यों की स्थिति देखें तो मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 22,393 मामले और 23,149 पीड़ितमहाराष्ट्र में 22,390 मामले और 23,555 पीड़ितउत्तर प्रदेश में 18,852 मामले और 19,362 पीड़ितराजस्थान में 10,577 मामले और 10,684 पीड़ित और असम में 10,174 मामले और 10,404 पीड़ित दर्ज किए गए। ये पांच राज्य बच्चों के खिलाफ अपराधों में सबसे आगे रहे।

साल 2023 में बच्चों के खिलाफ अपराधों से जुड़े मामलों के निपटान की स्थिति भी सामने आई। पुलिस द्वारा निपटाए गए मामलों की संख्या साल के अंत तक कुल 1,74,667 रही। इसमें 158 मामले जांच के दौरान रद्द किए गए, 65 मामले ठहराए गए और 82,930 मामले जांच के लिए लंबित रहे। अदालतों द्वारा निपटाए गए मामलों के अनुसारकुल 57,424 ट्रायल पूरे किए गएजबकि 63,335 मामले अदालतों द्वारा निपटाए गए और 5,90,755 मामले ट्रायल के लिए लंबित रहे। अभियुक्तों के निपटान के आंकड़ों के मुताबिकबच्चों के खिलाफ अपराधों में कुल 19,371 लोग दोषी पाए गएजिनमें 19,135 पुरुष और 236 महिलाएं शामिल थीं। वहीं, 3,290 लोग बरी किए गए (3,227 पुरुष और 63 महिलाएं) और 47,025 लोग (45,839 पुरुष और 1,186 महिलाएं) आरोपमुक्त हुए।

साल 2023 में पॉक्सो एक्ट के तहत बच्चों के पीड़ितों की उम्र और अपराधियों के संबंध से जुड़े आंकड़े सामने आए। 6 साल से कम उम्र के बच्चों में 28 लड़के और 734 लड़कियां शामिल थींकुल 762 पीड़ित बने। 6 से 12 साल के बच्चों में 141 लड़के और 3,088 लड़कियांकुल 3,229 पीड़ित थे। 12 से 16 साल के समूह में 157 लड़के और 15,287 लड़कियांकुल 15,444 पीड़ित बने। 16 से 18 साल की उम्र में 97 लड़के और 21,314 लड़कियांकुल 21,411 पीड़ित थीं। सभी उम्र के बच्चों को मिलाकर कुल 423 लड़के और 40,423 लड़कियांयानी 40,846 पीड़ित हुए। पीड़ितों के अपराधियों के संबंध की जानकारी देखें तो 39,076 मामले ऐसे थे जहां आरोपित पीड़ित को जानता था। इसमें 3,224 मामले परिवार के सदस्य, 15,146 मामले परिवार के दोस्तपड़ोसीनियोक्ता या अन्य परिचित व्यक्ति और 20,706 मामले दोस्तोंऑनलाइन दोस्तों या विवाह के बहाने रहने वाले साथी से जुड़े थे। इसके अलावा, 1,358 मामले ऐसे थे जिनमें अपराधी अज्ञात थे या पहचाने नहीं जा पाए। कुल मिलाकर 40,434 मामले दर्ज हुए।

एनसीआरबी 2023 के आंकड़े यह साफ करते हैं कि बच्चों के खिलाफ अपराध भारत में अब भी गहरी और जड़ें जमाई समस्या बनी हुई है। अपहरण से लेकर साइबर शोषण तक सभी श्रेणियों में लगातार वृद्धि यह दर्शाती है कि मजबूत कानूनों के बावजूद बच्चे अब भी बेहद असुरक्षित हैं। मध्य प्रदेशमहाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य लगातार अपराधों की सूची में शीर्ष पर बने हुए हैंजो प्रभावी कानून प्रवर्तन और जनता में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को उजागर करता है। नीतियों से आगेअसली चुनौती यह है कि मामलों की त्वरित सुनवाई हो और सबसे छोटे नागरिकों के लिए सार्थक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

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