समान स्वास्थ्य सुविधाएं देने में 28 राज्य फेल

28 राज्यों के नौकरशाहों ने ठेंगे पर रखा सुप्रीम कोर्ट का आदेश

समान स्वास्थ्य सुविधाएं देने में 28 राज्य फेल

सुप्रीम कोर्ट ने जारी की अवमानना नोटिस

20 नवंबर को हाजिर हों, अन्यथा कार्रवाई

नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (एजेंसियां)। स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में 28 राज्य फेल साबित हुए हैं। इन राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश के बावजूद रोगियों को आईसीयू और सीसीयू सुविधाएं देने में समान मानक तैयार नहीं किया। राज्य सरकारों की इस लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अवमानना नोटिस जारी की है और इन प्रदेशों के मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायाधीश एनके सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकारों को कारण बताओ नोटिस जारी की है। खंडपीठ ने प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के संबंधित मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस का जवाब हलफनामे के साथ लेकर 20 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित होने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष नौकरशाहों को नोटिस जारी करते हुए यह भी कहा है कि न्यायालय के प्रति इस तरह के लापरवाह रवैये के लिए उनके खिलाफ क्यों न कार्रवाई की जाए। 20 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के समक्ष हाजिर रहने की हिदायत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि इसमें किसी भी तरह की बहानेबाजी नहीं चलेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शीर्ष नौकरशाहों को अवमानना की नोटिस दी है, उनमें अरुणाचल प्रदेशअसमछत्तीसगढ़गोवागुजरातहिमाचल प्रदेशझारखंडकर्नाटककेरल, मध्य प्रदेशमहाराष्ट्रमणिपुरमिजोरमओड़ीशापंजाबराजस्थान, सिक्किमतेलंगानात्रिपुरापश्चिम बंगालचंडीगढ़दिल्लीजम्मू और कश्मीरपुडुचेरीलक्षद्वीपद्दाखअंडमान और निकोबार द्वीप समूहदादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट अस्पतालों में चिकित्सा लापरवाही और आईसीयू एवं सीसीयू के लिए एक समान मानकों के अभाव की गंभीर शिकायत से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में सीसीयू के मानकीकरण के व्यापक मुद्दे की निगरानी रखने का फैसला किया और केंद्र एवं राज्य सरकारों मिल कर एक समान रूपरेखा पर काम करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का आदेश कई बार जारी किया, लेकिन जमीनी स्तर इसका कभी पालन नहीं किया गया।

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इस साल पांच अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक राज्य को निर्देश दिया कि वे कारपोरेट अस्पतालों सहित सभी हितधारकों के साथ बैठक करके आईसीयू एवं सीसीयू में भर्तीउपचारस्टाफिंगस्वच्छता और बुनियादी ढांचे के लिए मसौदा मानदंड तैयार करें। न्यायालय ने शीर्ष स्वास्थ्य सचिवों को व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी लेने और प्रस्तावों पर हस्ताक्षर करने के लिए भी कहा। 19 अगस्त को जब मामले पर फिर से विचार किया गयातो न्यायालय ने पाया कि इतनी तेजी के बावजूदयह प्रक्रिया अधूरी रह गई। न्यायालय ने सख्ती से कहा कि एक व्यापक रोडमैप के बिना कोई भी प्रभावी निर्देश जारी नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों की राय सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटीएमिकस क्यूरी करण भरिहोके और एम्स के प्रोफेसर डॉ. नितीश नाइक की तीन सदस्यीय समिति गठित की। न्यायालय ने राज्यों को 30 सितंबर तक अपनी रिपोर्ट पूरी करके 5 अक्टूबर तक समिति को भेजने का निर्देश दिया।

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18 सितंबर को कुछ राज्यों ने और समय मांगा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने समय सीमा थोड़ी बढ़ा दीलेकिन चेतावनी दी कि अगर समय-सीमा का पालन नहीं किया गया तो इसके परिणाम भुगतने होंगे। फिर भी 13 अक्टूबर तक न्यायालय ने पाया कि दो दर्जन से अधिक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश अपनी रिपोर्ट जमा करने में विफल रहे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि कोर्ट के धैर्य की परीक्षा हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, हम विभिन्न राज्यों द्वारा दिखाई गई लापरवाही से हैरान होने के बजाय दुखी हैंक्योंकि इस अभ्यास के संबंध में न्यायालय द्वारा अत्यधिक उदारता दिखाए जाने के बावजूद संबंधित अधिकारियों ने इस न्यायालय के आदेशों को बहुत हल्के में लिया है।

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कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि आगे से अनुपालन न करने या लापरवाही से रिपोर्ट प्रस्तुत करने पर संबंधित अधिकारियों और राज्योंदोनों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ हीकोर्ट ने तीन-सदस्यीय समिति से अनुरोध किया कि वह पहले से उपलब्ध सामग्री पर विचार-विमर्श शुरू करे और एक मसौदा रिपोर्ट तैयार करे। मामले की अगली सुनवाई 20 नवंबर को हगी। इस दौरान देशभर के शीर्ष स्वास्थ्य अधिकारियों के कोर्ट में उपस्थित होने की उम्मीद है।

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